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सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार पर निबंध | Essay On Corruption In Public Life In Hindi

सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार पर निबंध | Essay On Corruption In Public Life In Hindi-नमस्कार दोस्तों आज हम हमारे सामाजिक जीवन में सार्वजिनक भ्रष्टाचार के बारे में पढेंगे.

सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार पर निबंध | Essay On Corruption In Public Life In Hindi

सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार पर निबंध | Essay On Corruption In Public Life In Hindi

किसी समाज अथवा देश की समस्याएं तब तक बनी रहती हैं, जब तक कि समाज की ओर से उसका मुखर रूप से प्रतिरोध नहीं किया जाता हैं.

आजादी के बाद से भारत के सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार ने एक आदत के रूप में स्थान बना लिया हैं. भारतीय समाज की मौन स्वीकृति और इस व्यवस्था के प्रति अपनी उदासीन मनोवृत्ति के कारण आज हमारे देश को दुनियां के सबसे अधिक भ्रष्ट व्यवस्था वाले देशों में गिना जाता हैं.

गुलाम मानसिकता और परिवर्तन के प्रति नकारात्मक सोच के चलते भ्रष्टाचार ने हमारे देश के हरेक तंत्र और विभाग को अपने प्रभाव में ले लिया हैं. भारत पर सदियों से विदेशी आक्रमण होते रहे, लोगों ने समझौतों के साथ जीवन जीने की आदत बना ली, 

भारत की स्वतंत्रता के बाद भी यही दृष्टिकोण बना रहा. यहाँ के स्थानीय शासक भी भारतीय आमजन के हितैषी न बनकर अपने स्वार्थ सिद्धि की ओर अपने व्यवहार को बनाते गये.


नतीजा यह रहा कि मुश्किलों से घिरे जीवन में किसी तरह अपना काम बनाने के लिए नैतिकता को ताक पर रखने में जरा भी संकोच नहीं किया.राजनेताओं, अधिकारियों और विभागों के कर्मचारियों के लिए रिश्वत कमाई का एक सुलभ साधन बन चूका हैं.

हमारी पुलिस व्यवस्था पर भ्रष्टाचार के मामले में सदैव सवाल उठते रहे हैं. जो भी जितने बड़े पद पर होता हैं उसके भ्रष्ट आचरण का दायरा उतना ही बड़ा होता जाता हैं.

हमारे राजनेताओं ने आजादी के बाद से जितने घोटाले किये, यदि उतना धन देश की गरीब जनता पर व्यय किया होता तो वाकई में आम आदमी के जीवन में चमत्कारी बदलाव देखने को मिल सकते थे. 

मगर हमारी व्यवस्था ने ऐसे बदनीयत लोगों को प्रश्रय देने का काम किया हैं. भ्रष्ट लोगों के लिए हमारी सरकारी व्यवस्था एक इको सिस्टम की तरह काम करती हैं, पद व्यक्ति को प्रभावित करने की पर्याप्त शक्ति रखते हैं जिससे भ्रष्टाचार का जन्म होता हैं.

स्वतन्त्रता के बाद भारत ने अंग्रेजों द्वारा बनाई गई सभी व्यवस्थाओं को हुबहू स्वीकार कर लिया था, अंग्रेजों की शासन प्रणाली के तहत तो केवल किसी तरह कानून व्यवस्था बनाकर राजस्व वसूली ही मुख्य काम था.

आज भी विरासत के रूप में हम उसी व्यवस्था को लेकर आगे चल रहे हैं. किसी भी विभाग में लाखों कर्मचारी होते हैं जिन पर चंद पर्यवेक्षक अधिकारी उनके कामकाज व गतिविधियों का निरिक्षण कर ही नहीं पाते हैं.

काम के अतिरिक्त दवाब के बीच निर्भय होकर लोगों को अपनी आय बढ़ाने के पर्याप्त और सुरक्षित अवसर मिल जाते हैं.

देश के सभी राज्यों में लगभग एक तरह की सरकारी व्यवस्थाएं हैं. सरकार के कामों में अधिकता के कारण भी भ्रष्टाचार के पर्याप्त अवसर बने रहते हैं. उदाहरण के लिए देश के सभी जिलों में भूमि के अभिलेख माप तोल का सारा जिम्मा पटवारी के कंधे पर होता हैं.

वह अपनी इच्छा के मुताबिक़ भूमि के स्वामित्व और गोचर के सम्बन्ध में निर्णय ले सकते हैं, धांधली की पूरी सम्भावनाएं बनी रहती हैं.

हमारे देश की अधिकतर आबादी गाँवों में निवास करती हैं. लोगों में कानून के प्रति समझ बेहद अल्प हैं.

जब वह किसी सरकारी काम के लिए दफ्तर को निकलता हैं तो ढीली कार्यप्रणाली में सेवा की आड़ में कई बार उसे शुल्क के नाम पर लूटा जाता हैं तो कई बार नियमों के अनुकूल उनके काम को बनाने के प्रयास में पैसे मांगे जाते हैं.

भारत में जुगाड़ बहु प्रचलित शब्द हैं, वाकई यह वह जादुई छड़ी मानी जाती हैं जिसके सहारे आप कोई भी काम किसी भी ओहदे पर बैठे अधिकारी से निकलवा सकते हैं.

सरकारी जमीन पर पटवारी से अपने नाम करवाना हो, बिजली चोरी का चालान कम करवाना, बिल राशि कम करवाना, गाँव या शहर में दूकान या ठेला लगाना हो तो भी पुलिस को प्रसाद देना ही पड़ता था.

लोकतांत्रिक व्यवस्था में सब मिलकर खाओं का परिदृश्य हमारे देश में कई बार उजागर हुआ हैं, छोटे स्तर पर यह किस पैमाने पर काम करता हैं व्यक्ति को अंदाजा तभी होता हैं जब वह उस चंगुल में फंसता हैं.

विगत एक दशक से भारत के सार्वजनिक जीवन में चाहे वह छोटे अधिकारी, बाबू से लेकर नेता, नौकरशाही की बात हो रिश्वत का चलन काफी कम हुआ हैं.

वर्तमान में केंद्र में मोदी सरकार ने देश में दशकों से चली आ रही रिश्वतखोरी की परम्परा को कुछ समय के लिए विराम सा लगा दिया हैं.

सरकार चाहे उतने कठोर कानून बना दे, जब तक जनमानस इस प्रवृत्ति के खिलाफ खड़ा नहीं होगा, भारत से भ्रष्टाचार को खत्म नहीं किया जा सकेगा.

सोशल मिडिया और स्मार्टफोन के दौर में भ्रष्टाचार के मामले कुछ कम जरुर हुए हैं. लोगों ने कई बार ऐसे दीमकों को देश के सामने नंगा भी किया हैं.मगर सदियों पुरानी व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन किये बगैर इसे रोका नहीं जा सकेगा.

जब प्रत्येक नागरिक अपने थोड़े  फायदे के लिए रिश्वत की ओर नहीं जाएगा तभी सिस्टम में सुधार होगा, और उसे व्यवस्था मजबूर नहीं कर पाएगी.

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