रैगिंग पर निबंध - Essay on Ragging in Hindi Language
एक समय तक यह सामान्य परिचय प्रक्रिया थी, मगर आज इसनें जूनियर विद्यार्थियों के लिए आतंक का रूप ले लिया हैं.
अक्सर देखा जाता हैं कि बच्चें किसी बड़े शिक्षा संस्थान में प्रवेश से इतने भयभीत नहीं होते हैं उतनी प्रताड़ना उन्हें रैगिंग में मिलती हैं. नयें प्रवेश पाने वाले बालक बालिकाओं को इस दौरान बेहद शर्म तथा अपमान का सामना करना पड़ता हैं.
अक्सर देखा जाता हैं कि बच्चें किसी बड़े शिक्षा संस्थान में प्रवेश से इतने भयभीत नहीं होते हैं उतनी प्रताड़ना उन्हें रैगिंग में मिलती हैं. नयें प्रवेश पाने वाले बालक बालिकाओं को इस दौरान बेहद शर्म तथा अपमान का सामना करना पड़ता हैं.
कई बार उनमें कुंठा घर कर जाती हैं और वे गलत कदम भी उठा लेते हैं. नवयुवकों को प्रताड़ित करने वाली रैगिंग आज की उभरती हुई एक भयानक समस्या हैं
अतः समय रहते इसे एक गम्भीर अपराध मानते हुए रोकने के लिए कठोर कानून बनाने की आवश्यकता हैं.
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग जैसी संस्थाएं इस तरह की घटनाओं से वाकिफ होने के बावजूद सत्रारंभ में ऐसे कोई प्रावधान नहीं करती हैं
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग जैसी संस्थाएं इस तरह की घटनाओं से वाकिफ होने के बावजूद सत्रारंभ में ऐसे कोई प्रावधान नहीं करती हैं
जिससे नवागंतुक विद्यार्थियों को रैगिंग का सामना न करना पड़े. एक लम्बे अरसे से कई स्टूडेंट्स और संगठन इसका विरोध करते आए हैं.
मगर उनकी बातों की तरफ कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया जाता हैं. इस तरह की गम्भीर समस्याएं आश्वासन भर से ठीक नहीं होनी वाली हैं, यही वजह हैं कि आज बड़े स्तर पर प्रतिष्ठित युनिवर्सिटी में रैगिंग की समस्याओं के मामले सामने आ रहे हैं.
रैंगिंग की पीड़ा या कष्ट उन्ही लोगों को पता हैं जिन्होंने अपने सीनियर से इसे भुगता हैं. नतीजे में उन्हें या तो सीनियर की जी हुजूरी करनी पड़ती हैं अथवा पढ़ाई छोड़ दे या अपनी जान से हाथ गंवा दे.
रैंगिंग की पीड़ा या कष्ट उन्ही लोगों को पता हैं जिन्होंने अपने सीनियर से इसे भुगता हैं. नतीजे में उन्हें या तो सीनियर की जी हुजूरी करनी पड़ती हैं अथवा पढ़ाई छोड़ दे या अपनी जान से हाथ गंवा दे.
वर्ष 1956 में यूसीजी एक्ट बनाने का उद्देश्य रैगिंग विरोधी कानून ही था, मगर यह आज पूरी तरह अप्रासंगिक प्रतीत होता हैं. यह आज भी उसी स्तर पर निरंतर जारी हैं. हर साल हजारों छात्र रैंगिंग का शिकार हो रहे हैं.
भारत में रैंगिंग के इतिहास में वर्ष 2009-10 का सत्र बेहद खराब रहा, जिसमें सर्वाधिक संख्या में स्टूडेंट्स को जान से हाथ धोना पड़ा अथवा उन्होंने कॉलेज आना ही छोड़ दिया.
भारत में रैंगिंग के इतिहास में वर्ष 2009-10 का सत्र बेहद खराब रहा, जिसमें सर्वाधिक संख्या में स्टूडेंट्स को जान से हाथ धोना पड़ा अथवा उन्होंने कॉलेज आना ही छोड़ दिया.
महाराष्ट्र इस प्रकार के मामलों में अव्वल नम्बर पर था. मेडिकल, इंजीनियरिंग क्षेत्र के कॉलेज में इस तरह के सर्वाधिक मामले पाए गये थे.
इसी वर्ष माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने रैंगिंग को मानवाधिकारों का हनन बताते हुए, देश के सभी शिक्षण संस्थानों को इससे कड़ाई से निपटने के सख्त आदेश दिए थे.
इसी वर्ष माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने रैंगिंग को मानवाधिकारों का हनन बताते हुए, देश के सभी शिक्षण संस्थानों को इससे कड़ाई से निपटने के सख्त आदेश दिए थे.
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने भी यूसीजी एक्ट 1956 को प्रभावी बनाकर इसे सख्ती से लागू किया तथा यह निर्देश भी दिया कि इसकी अवहेलना करने वाली संस्थाओं के प्रति दंडात्मक कार्यवाही की जाएगी.
रैगिंग क्यों की जाती है?
रैगिग का सबसे अहम कारण बदला अथवा प्रतिशोध है. जब शिक्षण संस्थान में एक नव प्रवेशित छात्र को उनके सीनियर्स द्वारा प्रताड़ित कर रैगिग का शिकार किया जाता है
तो वह भी अपने साथ की गई ज्यादतियों का बदला अपने जूनियर्स के साथ लेता हैं. इस तरह रैगिग का यह चक्र चलता रहता हैं.