अभिमन्यु पर निबंध essay on Abhimanyu in Hindi: महाभारत के एक महत्वपूर्ण पात्र अभिमन्यु के बारे में आपकों कहानी स्टोरी, हिस्ट्री इतिहास इस निबंध स्पीच में बता रहे हैं. चलिए अभिमन्यु पर लिखा यह निबंध पढ़ते हैं.
essay on abhimanyu in hindi
जब जब वीर बालकों का प्रसंग आता है तो वीर बालक अभिमन्यु का नाम अवश्य आता हैं. जो महाभारत के युद्ध में वीरता से लड़ते हुए मारा गया. चन्द्रदेव का अवतार कहा जाने वाला महारथी बालक पांडव अर्जुन और सुभद्रा का पुत्र था. भगवान कृष्ण रिश्ते में अभिमन्यु के मामा थे जो स्वयं अर्जुन के सारथि बनकर इस युद्ध में शामिल थे.
अभिमन्यु का बचपन अपने ननिहाल द्वारका में ही बीता, राजसी रीतिरिवाज से उनका विवाह राजा विराट की बेटी उत्तरा के साथ हुआ. इनके परीक्षित नामक पुत्र भी हुआ जो इन्हें इंतकाल के बाद जन्म लिया. महाभारत के बाद यह कुरुवंश का एकमात्र जीवित प्रतिनिधि था जिसने कौरवों के वंश को आगे बढ़ाया था.
पुराने जमाने में लड़े जाने वाले युद्धों में रणनीति बेहद उच्च स्तर की हुआ करती थी, जो महाभारत में भी दो पक्षों द्वारा बार बार उपयोग में ली गई जिन्हें चक्रव्यूह कहा जाता हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार बताते है कि अभिमन्यु ने अपनी माता सुभद्रा की कोख में ही अर्जुन से चक्रव्यूह भेदने की बात सुन ली थी. मगर सुभद्रा के निद्रामग्न हो जाने के कारण वे चक्रव्यूह के बाहर निकलने की विधि नहीं सुन पाए थे.
महाभारत के इस युद्ध में कौरवों की सेना का नेतृत्व गुरु द्रोण कर रहे थी, वे नित्य मिल रही पराजयों से बहुत चिंतित हो रहे थे. अतः उन्होंने युद्ध समाप्ति के बाद पांडवों को हराने के लिए एक चक्र्व्यूह की योजना तैयार की जिसे अगले दिन उपयोग में लेना था.
गुरु द्रोण जानते थे कि पांडवों की सेना में केवल दो लोग ही चक्रव्यूह भेद सकते हैं एक अर्जुन और दूसरे श्रीकृष्ण . उस समय अर्जुन युद्ध भूमि से दूर लड़ रहे थे जबकि कृष्ण द्वारा शस्त्र न चलाने की प्रतिज्ञा की हुई थी. ऐसे में पांडवों के लिए एक चक्रव्यूह को भेदने वाला कोई नहीं था. ऐसे में सोलह वर्षीय युवा बालक अभिमन्यु युधिष्ठिर के पास जाकर जिद्द करता है कि वह चक्रव्यूह को भेदेगा.
युधिष्ठिर गहरी चिंता में पड़ गये. वे अभिमन्यु के पराक्रम से परिचित थे. मगर 16 वर्ष के बालक को युद्ध के मैदान में शत्रुओं की पूरी सेना के हवाले कर देना भी नहीं चाहते थे. अभिमन्यु की हठ के आगे धर्मराज उसे युद्ध में जाने की आज्ञा देते हैं.
अभिमन्यु अपनी सेना के साथ चक्रव्यूह में प्रवेश करता हैं. वह दुश्मन सेना को अस्त व्यस्त करता हुआ उस चक्रव्यूह के सात में से छः चक्र को भेदने में सफल हो जाता हैं. कौरवों सेना के सभी महारथी बालक की वीरता देखकर दंग थे. इतने में वह लड़ते लड़ते बेहोश होकर भूमि पर गिर पड़ता हैं. जिस पर जयद्रथ अपना गदा से प्रहार कर उसके जीवन का अंत कर देता हैं.
कौरव सेना को तितर बितर कर अपार नुक्सान करने वाले अभिमन्यु की हत्या के बाद जयद्रथ उसके शव के साथ अनादर कर उसके सिर पर लात मारता हैं. जब यह बात अर्जुन को पता चली तो उन्होंने अपने पुत्र के अपमान का बदला जयद्रथ के वध के रूप में प्रतिज्ञा की तथा अगले सवेरे जयद्रथ अर्जुन के हाथों मारा गया.