मित्रता पर निबंध | Essay On Friendship In Hindi : नमस्कार दोस्तों आपका हार्दिक स्वागत हैं. आज हम दोस्ती, मित्रता यारी पर शोर्ट निबंध, एस्से, भाषण स्पीच, अनुच्छेद पैराग्राफ यहाँ लेकर आए हैं. जीवन में मित्रता यानि फ्रेंडशिप का महत्व अर्थ अच्छा मित्र कौन होता हैं. आज पर केन्द्रित यह निबंध स्टूडेंट्स के लिए सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया हैं.
मित्रता पर निबंध | Essay On Friendship In Hindi
दोस्ती यानी दो हस्ती जब एक साथ मिल जाती है, तो इसे हम दोस्ती कहते है. यह आपसी प्रेमभाव को बढ़ावा देता है. यह खून का रिश्ता नही होता है, पर यह व्यवहार तथा आपसी मेलजोल और स्वभाव से दोस्ती बनती है.
मनुष्य अपने स्वभाव के औरों के साथ मिलजुलकर जीने वाला प्राणी हैं. उसके अन्य लोगों के साथ रिलेशन का सिलसिला जन्म के साथ ही शुरू हो जाता हैं. वह इन सम्बन्धों का निर्वहन करते हुए सम्पूर्ण जीवन कभी सुख तो कभी दुःख के साये में व्यतीत कर देता हैं.
जीवन में हर व्यक्ति के पास एक दोस्त का होना बहुत जरुर होता है, जो जीवन में हमेशा उसे उन्नति करने के लिए प्रोत्साहित करता है. एक सच्चा दोस्त होना जरुरी है, जिसके साथ हम अपनी हर बात रख सकें.
अपनी अवस्था में अपनी समस्याओ को सही ढंग से समझाने के लिए दोस्त सबसे उचित होता है, जो हमारी भावनाओ को सही से समझ पाता है. दोस्त एक जीवन साथी होता है, जो हर राह पर हमें मार्गदर्शित करता है.
आपका मित्र वह है जो आपके विषय में सब कुछ जानता है और उसी रूप में आपसे प्यार करता हैं.
दोस्ती कई लोगो के सफलता का कारण भी बनती है, तो कई लोगो के जीवन की बर्बादी का कारण भी दोस्ती ही होती है. इसलिए जीवन में अच्छे तथा सच्चे दोस्त बनाए जो हमारा साथ दें तथा हमें सही से सही ओर गलत को गलत कहने की हिम्मत रखता हो.
हमेशा हर बात में हां में हां मिलाने वाला दोस्त ही अच्छा नही होता है. सही बात पर समर्थन करना तथा गलत बात पर उसे रोकना दोस्त का कर्तव्य होता है. इसलिए दोस्ती के लिए नही दोस्त के लिए रिश्ते निभाए.
मानव कभी अपने पन से तो कभी मातृत्व भावों को जगाकर या अनुभव कर या प्रेमिक सम्बन्ध के सहारे जीवन जीता हैं. व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन तक ये सम्बन्धों कभी जेवर बनकर काम आते है तो कभी कभी बोझ बनकर इंसान को झुका देते हैं.
ऐसे ही सम्बन्धों में मित्रता भी एक अहम सम्बन्ध हैं जो बालपन से आरम्भ होकर अंतिम साँस तक बनाई और निभाई जाती हैं. अन्य पारिवारिक एवं रक्त सम्बन्धों की तुलना में मित्रता इसलिए अहम है क्योंकि यह लोभ से परे होने के साथ ही आनन्द की खान एवं ईमानदारी एवं सच्चाई के पीलर के सहारे आगे बढ़ती हैं.
किन्तु एक सच्चे मित्र की पहचान विपरीत समय आने पर ही होती हैं. बालपन की दोस्ती अधिक पवित्र, लोभ रहित तथा आनन्द से परिपूर्ण होती हैं. बालकपन की मित्रता मनभावन होती हैं किन्तु किशोरावस्था में यह गंभीर, दृढ तथा शांत स्वरूप धारण कर लेती हैं.
अक्सर एक आदर्श मित्र का भरोसा किसी पर कर देने से लोग मित्रता की कसोटी पर खरे नहीं उतर पाते हैं. जो मित्रता धन, दौलत, रूप, प्रतिभा आदि के वशीभूत होकर की जाती हैं,
वह एक दिन निश्चय ही एक गलती के रूप में हमारे समक्ष उपस्थित होती हैं. युवावस्था में मित्रता का गुण बेहद कम हो जाता हैं जिन्हें भी मित्र बनाया जाता हैं बेहद सतर्कता के साथ यह सम्पन्न किया जाता हैं, क्योंकि इस उम्रः में पड़ी दोस्ती की नीव ताउम्र रहती हैं.
जब धन दौलत, सम्मान का आगमन हो और जीवन में विकास की राहे खुली हो तो सुख के इन दिनों में कभी न जान पहचान वाले भी अपनत्व का भाव दिखाते हैं.
यदि आपकों अपने मित्र की आलोचना नही कर पाते है तो आप सही है, अगर आप बेझिझक आलोचना कर सकते है और ऐसा करने में आपकों आनन्द की प्राप्ति होती है तो आपकों अपनी जीभ सम्भालने की जरूरत हैं.
मगर जो व्यक्ति इनके न रहने के बाद भी हमारा साथ देता हो, हमें हिम्मत देता हो, मुश्किल घड़ी में हमें भरोसा दिलाता हो वही सच्चा मित्र होता हैं.
एक मित्र मुश्किल समय में पालनहार, मार्गदर्शक, कष्ट के पल में स्नेहिल, निर्णय की घड़ी में बड़े की भूमिका निभाता हुआ जीवन में गुरु की भांति पथ प्रदर्शक होता हैं.
वह सदैव अपने दोस्त के फायदे नुकसान को अपना लाभ नुकसान माने. एक सच्चा दोस्त हमारे जीवन में उमंग एवं आनन्द को जन्म देने वाला होता हैं.
मित्रता का अर्थ :कई लोग मित्रता के संबंध में यह भ्रम पाल लेते है कि अधिकतर साथ साथ रहने वाला ही हमारा मित्र होता हैं. जबकि सच्चा मित्र न केवल साथ साथ रहता है.
एक समान कार्य करता हो. इससे बढ़कर वह सदैव हमारा शुभचिंतक तथा हमारी प्रगति तथा विनाश में भी भागीदार होकर सदा ही साथ देता हैं.
केवल सुख के पलों की कामना करना और उसमें ही जीना दोस्ती नहीं हैं. विपदा के पलों में भी सहारा बनकर हर तरह से अपने यार की मदद करने वाला ही सच्चा दोस्त होता हैं.
हालांकि ऐसे कोई विशिष्ट नियम नहीं है कि कौन मित्र होगा, इसलिए हमेशा सोच समझकर से अच्छे और भले व्यक्ति से मित्रता के सम्बन्ध बनाने चाहिए.
आमतौर पर हमउम्रः लोगों से ही अधिक मित्रवत सम्बन्ध बनते हैं. उदाहरण के लिए छोटे बच्चें अपनी क्लास में पढ़ने वाले किसी सहपाठी से ही मित्रता रखेगा.
वयस्क व्यक्ति वयस्क से तथा वृद्ध व्यक्ति अपनी उम्रः के वृद्ध इंसान से ही दोस्ती करना अधिक पसंद करता हैं. दोस्ती में लिंग का प्रभाव भी देखा जाता हैं.
समलिंगी यानि पुरुष पुरुषों से तथा महिला महिला से मित्रता जरते हैं. हालांकि यह सार्वभौमिक नहीं हैं बहुत से विपरीत लिंगी मित्र भी होते हैं.
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि सच्चा मित्र वही होता हैं. जो न केवल हमारे सुख दुःख का साथी हो बल्कि वह एक गुरु तथा स्नेहिल के रूप में सदैव निस्वार्थ मदद का भाव रखे.
भले ही हम रँग रूप और आदतों में भिन्नता रखते हैं. मगर एक दूसरे के प्रिय होने के रिश्ते को मित्रता के रूप में निभाया जाता हैं. वफादारी इस सम्बन्ध का आधार होती हैं, जब तक पारस्परिक वफादारी में कुटिलता नहीं आएगी, दोस्ती यू ही बढ़ती जाएगी.
मित्रता का महत्व : हमारे जीवन में मित्रता का बड़ा महत्व हैं. खून के रिश्ते या जातीय रिश्तों में परस्पर स्वार्थ की भावना किसी न किसी रूप में विद्यमान रहती हैं.
मगर दोस्ती का रिश्ता इन बुराइयों से मुक्त समझा जाता हैं. जहाँ एक दूसरे को अपना समझा जाता हैं. उसके सुख दुःख मुशिबतों को अपना समझकर भावनात्मक रूप से एकता के भाव देने को मिलते हैं. यही सच्ची मित्रता का आशय हैं.
जिस तरह नन्हें बालक को अपने खिलोनो से अतिशय लगाव होता हैं. ठीक वही प्रेम मित्र से होता हैं. वह नन्हा बालक उस निर्जीव वस्तु को अपना साथी समझकर उसके साथ भावनात्मक रूप से एकाकार हो जाता हैं.
कभी उससे बात करता है तो अच्छा न लगने पर उसे मारता भी हैं. सजीवता की समझ विकसित होने के बाद खिलोने की जगह उसकी सखा की हो जाती हैं.
एक शब्द में मित्रता को परिभाषित करना हो तो इसे अपनत्व की संज्ञा दे सकते हैं. ये भाव किसी लौकिक सजीव निर्जीव या पारलौकिक भी हो सकता हैं.
कुछ लोग अपने बचपन के मित्रों के प्रति अपनत्व रखते हैं तो कुछ एक अपनी वस्तुओं यथा गाड़ी आदि से , जिनसे कभी कभी यूँ ही बातें करते भी देखे जा सकते हैं.
कोई अपने स्कूटर या साइकिल से. तो कोई अधिक धार्मिक प्रवृत्ति के लोग ईश्वर को अपना मित्र मानकर उसे ही अपना साथी समझकर एकेले में ही ऐसे व्यवहार करते हैं, जैसे वो उनकी बात सुन रहा हैं.
उपसंहार : यारी अथवा मित्रता सबसे अनमोल मानी जाती हैं. यदि मित्रता सही व्यक्ति से की जाए तो वह सजी वनी का रूप ले लेती हैं.
अगर बिना परख के किसी को अपना मित्र बनाएं तो वह जहर की पुड़ियाँ की तरह जीवन के लिए प्राणघातक भी साबित हो सकती हैं. क्योंकि एक दोस्त के साथ कुछ भी छुपाया नहीं जाता हैं.
ऐसे में कई बार गहरे राज और रहस्य किसी को बताने से जीवन असुरक्षा और ब्लेकमेल जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ता हैं.
अन्य सम्बन्धों की तुलना में मित्रता इसलिए भी अहम हैं क्योंकि इसमें शिष्टाचार, नाप तोल कर कहना आदि का बेहद अल्प स्थान होता हैं. दिल की बात जिसे कही जाए वही मित्रता हैं.
हर कोई चाहता है कि मित्रता जीवन भर चलती रहे. कोई ऐसा पल न आए जब दो सच्चे मित्र बिछड़ जाए. मित्रता रुपी खजाने में सदैव अच्छे गुण ही नहीं मिलते.
आपके मित्र का चरित्र कैसा हैं यदि आपकों इसकी परख नहीं है तो आपकी मित्रता में भले ही दिल की भावनाएं जुड़ी हो वे आपकों गलत पथ पर अग्रसर भी कर सकती हैं.
हमें हमारे दोस्त की हे आदत को परखकर ही दोस्ती करनी चाहिए. क्योकि दोस्ती का संबध बहुत गहरा होता है, ये जीवन को बदल देता है. इसलिए अच्छे चरित्र वाले दोस्त से ही दोस्ती निभाए.