100- 200 Words Hindi Essays 2024, Notes, Articles, Debates, Paragraphs Speech Short Nibandh

Translate

विद्या ददाति विनयम पर निबंध | Vidya Dadati Vinayam Essay In Hindi

विद्या ददाति विनयम पर निबंध | Vidya Dadati Vinayam Essay In Hindi दोस्तों इस लेख में दो निबंध लिखे गए हैं जो मनुष्य जीवन में विद्या की महत्वपूर्णता को बताते हैं। निबंध का विषय "विद्या ददाति विनयम्" के अर्थ के साथ साथ अलग-अलग स्वरूपों को भी लिखा गया है। विद्या मनुष्य के लिए कितनी ज़रूरी है और विद्या से प्राप्त विनय किस प्रकार जीवन में विशिष्ट होती है इसका विस्तृत वर्णन किया गया है।

विद्या ददाति विनयम पर निबंध | Vidya Dadati Vinayam Essay In Hindi

विद्या ददाति विनयम पर निबंध | Vidya Dadati Vinayam Essay In Hindi


इन निबंधों में "विद्या ददाति विनयम्" श्लोक के वास्तविक स्वरूप को प्रस्तुत किया गया है। विद्या और विनय की महत्ता के साथ-साथ इन निबंधों में उनके अलग-अलग संदर्भों की जानकारी मिलेगी। प्रस्तुत निबंधों में श्लोक के सन्दर्भ को अच्छे से जानेगें एवं समझ पाएँगे।


भूमिका


जीवन में विद्या का महत्व सबसे अधिक है जो मनुष्य को उसके हर पड़ाव में सहायक सिद्ध होती है। बिना विद्या के मानव जीवन नीरस है। विद्या से मनुष्य सर्वश्रेष्ठता प्राप्त करता है।


दोस्तों इस निबंध में विद्या की महत्वपूर्णता के साथ-साथ विद्या से परिचित होंगे। इस संबंध में "विद्या ददाति विनयम्" श्लोक को अच्छे से समझ पाएँगे।


परिचय


"विद्या ददाति विनयम्" से तात्पर्य है कि विद्या विनय, विनम्रता प्रदान करती है। विद्या जीवन में महत्वपूर्ण है और विनय के द्वारा जीवन निखार देती है। इस बात की वास्तविकता का ज्ञान विद्या ग्रहण करने पर मिल जाता है।


"विद्या ददाति विनयम्" संबंधित संदर्भ


मनुष्य शुरुवात से अंत तक विद्या के रूप में सीखता ही है। बचपन में अपने अभिभावकों से चलना, उठना, बैठना, बोलना, खाना, संस्कार सीखता है और जैसे जैसे बड़ा होता है जीवन जीने की कला सीखता है।


अनेक पड़ावों पर विभिन्न रूप से मनुष्य विद्या ग्रहण करता है। महापुरुषों ने विद्या से ही अपनी अमित छाप बनाई है। विद्या एक ऐसा धन है जो जितना खर्च किया जाए वह बढ़ता है। 


"विद्या ददाति विनयम्" महत्व


विद्या जीवन की हर परिस्थिति में अनमोल धन समान है जो जीवन को सुख की अनुभूति कराती है। विद्या विनम्रता के रूप में जीवन को एक बहुमूल्य गुण देती है जिससे जीवन के रास्ते सुलभ हो जाते हैं।


विनय मनुष्य को जीवन की हर परिस्थिति का सामना करने के योग्य बनाती है। योग्य व्यक्ति अपनी क्षमता से खुशहाल जीवन प्राप्त कर सकता है।


निष्कर्ष


मनुष्य के जीवन में विनय विद्या से प्राप्त होती है। जो मनुष्य को सत्कर्म की ओर उन्मुख करती है। विद्या जीवन को आलोक प्रदान करती है।


अंतिम शब्द


दोस्तों प्रस्तुत निबंध में "विद्या ददाति विनयम्" के वास्तविक अर्थ को समझाया गया है। जो विद्या और विनय की महत्ता से परिचित कराता है।


2 "विद्या ददाति विनयम्" पर निबंध


भूमिका


मनुष्य को विशिष्टता प्रदान करने वाले कई गुणों का उल्लेख हमारे ग्रंथों, धर्मशास्त्रों, गुरुजनों के वचनों में मिलता है जो मनुष्य को पशु से भिन्न करते हैं।


मनुष्य में परिपक्वता " विद्या" से आती है। विद्या प्राप्ति ही जीवन को नई राह और नए आयाम देती है। जीवन के मनोरथ विनम्रता से पूरे होते हैं। विद्या के साथ विनय का संगम मनुष्य को जीवन पथ पर सफल एवं खुशहाल बनाता है।


दोस्तों जिस प्रकार विद्या ग्रहण करना महत्वपूर्ण है उसी प्रकार " विद्या" द्वारा प्राप्त की गई "विनय" की आवश्यकता होती है जो जीवन में हर कदम पर काम आती है।


प्रस्तुत निबंध में "विद्या ददाति विनयम्" श्लोक के वास्तविक स्वरूप के बारे में लिखा गया है जो सहज रूप से विद्या और विनय की महत्वपूर्णता बताते हैं।


परिचय


"विद्या ददाति विनयम्" उपनिषद् से लिया गया एक संस्कृत का श्लोक है जो विद्या की प्रधानता को दर्शाता है। " विद्या" से तात्पर्य शिक्षा, सीख से है जो ग्रहणीय है।


"विनयम्" से तात्पर्य है विनम्रता, स्वभाव में सहजता का होना। "ददाति" अर्थात देती है या प्रदान करती है या प्राप्त होती है।


 इस श्लोक का मूल अर्थ है कि विद्या के द्वारा मनुष्य को विनम्रता रूपी गुण की प्राप्ति होती है। जो मनुष्य के जीवन में सहायक होती है एवं विशेष रूप प्रदान करती है।


इस श्लोक की महत्ता मनुष्य जीवन में पालन करने से बढ़ती है। सिर्फ विनम्रता का होना ज़रूरी आयाम नहीं देता बल्कि जीवन में विद्या स्वरूप विनय को अपनी आदत में शामिल करना उचित मार्ग दिखाता है।


"विद्या ददाति विनयम्" मूल रूप


जब से मनुष्य अस्तित्व में आया है चाहे प्राचीन काल हो या आधुनिक काल मनुष्य सीखने की प्रक्रिया से गुज़रता रहता है।


पहले धर्म ग्रंथों, धार्मिक शास्त्रों, गुरुजनों से विद्या ग्रहण की जाती थी जिसे जीवन में अपनाया जाता था। विद्या के द्वारा ही मनुष्य में सोचने समझने की शक्ति में बढ़ोत्तरी हुई।


प्राचीन काल के अनेक महापुरुषों ने विद्या प्राप्ति के बल पर मोक्ष की प्राप्ति की एवम् अपनी विशेष पहचान बनाई जो आज भी लोकप्रिय हैं।


उनकी ख्याति जग प्रसिद्ध है जो मर कर भी अमर हो गए। विद्या के द्वारा ही मनुष्य पशुओं से भिन्न अपनी अलग पहचान बनाता है।


विद्या जीवन में सुख, शांति, सफलता, समृद्धि लाती है। विद्या के द्वारा ही मनुष्य जीवन के सफर में उन्नति करता है। विद्या के द्वारा नए प्रयोग नई दिशा को एक मुकाम मिलता है। विद्या मनुष्य जीवन के लिए ज़रूरी तत्व है जो अगर ग्रहण की जाए तो जीवन सँंवर जाता है।


मनुष्य अनेक पड़ावों से गुजरता है। बाल्यकाल जब अपने माता-पिता से अनेक क्रियाएँ जैसे बोलना, उठना, बैठना, चलना, खाना आदि सीखता है।


तत्पश्चात जैसे जैसे युवा होता है शिक्षा संस्थानों, विद्यालय से जुड़ कर भविष्य के लिए शिक्षा प्राप्त करता है। उसके बाद किसी व्यवसाय,नौकरी से जुड़ कर जीवन जीना सीखता है। जिम्मेदारियों को निभाना सीखता है।


जीवन के सफर में जैसे जैसे पड़ाव आते हैं मनुष्य विद्या के माध्यम से अपने लक्ष्य, उद्देश्य, कार्य पूर्ण करता है जो मनुष्य जीवन में आवश्यक होते हैं।


"विद्या ददाति विनयम्" महत्ता


विद्या एक ऐसा धन स्वरूप  है जो जितना खर्च होगा उसकी कीमत उतनी बढ़ेगी और विनय द्वारा विद्या का प्रचार प्रसार होने से विद्या में बढ़ोत्तरी होगी। विद्या सीमित रह जाने पर अपना मोल खो देती है।


जीवन में विनय के द्वारा अच्छे संस्कार दिए जाते हैं। जीवन की कठिनाईयों से बिना डरे विनय एक योग्य रूप प्रदान करती है जिससे मनुष्य अपने दम पर  जीवन निर्वाह के लिए धन की प्राप्ति कर सकता है और एक सफल और खुशहाल जीवन जी सकता है।


विनय का ताल्लुक धर्म से भी है जो मनुष्य को ईश्वर के प्रति आस्थावान बनाती है। विद्या व विनय की वास्तविक अनुभूति जीवन में आंतरिक स्वरूप को उभारती है।


विद्वान लोग जिनमें विनय का गुण विद्यमान रहता है सर्वत्र पूजे जाते हैं। देश हो या विदेश विद्या से पूर्ण व विनय के द्वारा मनुष्य आदर पाते हैं।


विद्या से आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है और आत्मज्ञान से ईश्वर की कृपा दृष्टि मिलती है। चारों दिशाओं में विद्या मान दिलाती है और विनम्रता उस मान को बनाए रखती है।


विद्या - विनय संबंध


धार्मिक शास्त्रों एवं सही मनुष्य से प्राप्त विद्या विनय का निर्माण करती है। विनय मनुष्य के व्यक्तित्व विकास को बढ़ावा देती है।


"विद्या" का वास्तविक अर्थ सिर्फ किताबी ज्ञान का होना या साक्षर होना नहीं है बल्कि मनुष्य के आंतरिक स्वरूप को उभारना एवं मन में विनम्रता के उद्भव से है।


अंतर्मन में विनय की उत्पति ही विनय को सही अर्थ प्रदान करती है। विनय के अभाव में मनुष्य पढ़ लिखकर भी अहंकार के वशीभूत हो जाते हैं।


वर्तमान काल में विद्या का व्यवहारिक रूप ज्यादा दिखता है। वास्तविक रूप की अनुभूति मनुष्य को श्रेष्ठता प्रदान करती है।


विद्या का व्यवहारिक रुप जगत में किताबों आदि से प्राप्त होता है लेकिन मूल स्वरूप अंतर्मन से ही ग्रहण किया जा सकता है। जिसकी प्राप्ति हमें धार्मिक शास्त्रों, अच्छे गुरुजनों अच्छे संस्कार से होती है।


विद्या से विनय की प्राप्ति होती है और विनय से धर्म की और धर्म से पात्रता बढ़ती है जिससे धन की प्राप्ति होती है। विनय के द्वारा अपनी सोच और रुचि को सही दिशा में बढ़ाया जा सकता है जो जीवन को सही रूप प्रदान करती है।


विद्या मनुष्य के अंदर विनय को जन्म देती जो अच्छे संस्कारों व उचित महापुरुषों द्वारा दी गई शिक्षा से संभव होती है। विनय मनुष्य में योग्यता उत्पन्न करती है जो जीवन में हिम्मत बढ़ाती है जिससे मनुष्य अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।


एक योग्य मनुष्य संसार में धन संपदा को प्राप्त कर सकता है एवं खुशहाल जीवन जी सकता है। धन का उचित प्रयोग विनय द्वारा ही किया जा सकता है।


निष्कर्ष


मनुष्य के जीवन में विद्या जितनी ज़रूरी है उतनी ही जीवन को विनय की ज़रूरत होती है जो विद्या से प्राप्त होती है। विद्या मनुष्य जीवन को एक पहचान देती है तो विनय उस पहचान को सही दिशा देती है।