खुदीराम बोस पर निबंध Essay on Khudiram Bose in Hindi
महान भारतीय क्रांतिकारी खुदीराम बोस जी का पूरा नाम खुदीराम त्रिलोक नाथ बोस था। इनका जन्म साल 1989 में 3 दिसंबर के दिन पश्चिम बंगाल के हबीबपुर नाम के इलाके में पिता त्रिलोक नाथ बोस और माता लक्ष्मी प्रिया देवी के परिवार में हुआ था।
खुदीराम बोस जी जब पढ़ाई कर रहे थे तभी इनके अंदर देशभक्ति की भावना उबाल मारने लगी थी और जैसे जैसे समय व्यतीत होता गया वैसे वैसे खुदीराम बोस के मन में अंग्रेजों से बदला लेने की भावना और भी प्रबल होती गई, क्योंकि उन्होंने अपनी आंखों के सामने अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा भारतीय लोगों पर किए जाने वाले अत्याचारों को देखा था।
खुदीराम बोस जी ने साल 1902 और 1903 की क्रांति में सक्रिय रूप से भाग लिया और इसी क्रांति के दरमियान उनकी मुलाकात अन्य क्रांतिकारी औरोबिंदो एवं भगिनी से हुई।
खुदीराम बोस जी ने मेदिनीपुर में मौजूद एक विद्यालय में साल 1996 में दाखिला लिया और इस प्रकार से वह विद्यालय में पढ़ाई भी करने लगे साथ ही साथ क्रांतिकारियों का साथ भी देने लगे। खुदीराम बोस जी जब अपनी जवानी की दहलीज पर थे तब उनके मन में अंग्रेजों के प्रति इतना गुस्सा था कि वह अंग्रेज अधिकारियों के सामने बेझिझक बोलने से भी नहीं डरते थे।
भारतीय क्रांतिकारियों का साथ देते देते साल 1905 में खुदीराम बोस एक राजनीतिक पार्टी में भी शामिल हो गए और पार्टी में रहते हुए उनके द्वारा अंग्रेजों का विरोध किया जाने लगा जिसकी वजह से अंग्रेज काफी भयभीत होने लगे और खुदीराम बोस से अपने आप को खतरा महसूस करते हुए कई अंग्रेज अधिकारी खुदीराम बोस के सामने आने से भी डरते थे।
खुदीराम बोस जी के द्वारा मेदिनीपुर के पास एक पुलिस स्टेशन में बम ब्लास्ट की घटना को अंजाम दे दिया गया था और वहां से वह भाग निकले थे। इसके बाद वह अपने दोस्त प्रफुल्ल चाकी के साथ मुजफ्फर शहर चले गए और वहां पर अपने नाम को बदलकर रहने लगे। हालांकि फिर भी उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ अपनी बगावत को बंद नहीं किया। उन्होंने अंग्रेज अधिकारी किंग्स फोर्ड को मारने की भी योजना बनाई परंतु वह उसमें सफल नहीं हो सके। इसके बाद अंग्रेजी पुलिस के द्वारा खुदीराम बोस की तलाश तेज कर दी गई।
लंबे समय के पश्चात खुदीराम बोस को बम ब्लास्ट की घटना को अंजाम देने के तकरीबन 3 सालों के बाद अंग्रेजी पुलिस के द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और गिरफ्तार करने के बाद खुदीराम बोस पर मुकदमा चलाया गया। मुकदमा में खुदीराम बोस को आरोपी पाया गया और उनके अपराध के लिए अदालत के द्वारा खुदीराम बोस को फांसी की सजा सुनाई गई।
इसके पश्चात अंग्रेजी पुलिस के द्वारा 11 अगस्त 1908 को खुदीराम बोस को फांसी के फंदे पर लटका दिया गयाल इस प्रकार से भारत का एक महान क्रांतिकारी हमेशा हमेशा के लिए भारत माता को छोड़कर चला गया। हालांकि उन्होंने अपने जीवन काल में जो काम किए थे उसकी वजह से वह आज भी इतिहास में अमर है।