दहेज प्रथा पर निबंध Essay on Dowry System in Hindi : किसी भी आधुनिक सभ्य समाज में सामाजिक कुरीतियों का होना समाज की प्रगति में बड़ा बाधक होता हैं. दहेज प्रथा को ही ले लीजिए देश की महिलाओ के जीवन में नासूर बनी यह सामाजिक प्रथा कानूनन प्रतिबंध के बावजूद धडल्ले से चलती हैं. जब तक समाज एक जुट होकर प्रतिक्रिया नहीं करेगा यह हजारों बहिनों के जीवन को बर्बाद करता चला जाएगा.
Essay on Dowry System in Hindi
भारतीय संस्कृति में दंगल में भावनाओं की प्रधानता रही है इन भावनाओं की अभिव्यक्ति कई रूपों में होती रही है प्राचीन काल से ही हमारे यहां अन्न दान विद्या धन आदि को महत्व दिया गया है.
इन दोनों के अंतर्गत कन्यादान को भी प्रमुख स्थान माना जाता था माता-पिता अपनी आर्थिक स्थिति के आधार पर कन्या को आभूषण वस्त्र अन्य वस्तुएं देते थे जिससे कन्या को गृहस्थ जीवन में प्रवेश करते समय सहायता मिल जाती थी.
आता पिता का सहयोग एक प्रकार से दही जी था लेकिन इसमें किसी भी प्रकार का जवाब नहीं था दहेज प्रथा में बदलाव प्रारंभ में देश के साथ जो मंगल में भावना थी उसमें धीरे-धीरे बदलाव आने लगा है इसका परिणाम यह हुआ कि कन्यादान माता पिता के लिए बोझ बन गया दहेज की मांग के कारण बाल विवाह अनमेल विवाह आदि होने लगी.
दहेज प्रथा एक कलंक - धीरे-धीरे देश बताने अपना भयंकर रूप धारण कर लिया जिसके कारण कन्या विवाह एक समस्या बन गई है कई बार तो मुंह मांगा भेज ना मिलने पर दुल्हे सहित बारात लौट जाती है उस समय कन्या पक्ष से जुड़े लोगों की क्या दशा होती होगी यह हमारे लिए विचारणीय बात है अतः दहेज प्रथा एक कलंक है.
दहेज प्रथा के कारण
हमारे देश के कानूनों में दहेज की प्रथा को गैर कानूनी रूप दिया गया हैं. समाज का बड़ा वर्ग आज भी इस प्रथा को समाप्त करने के पक्ष में हैं. इसके उपरान्त क्यों आज भी दहेज लेने और देने पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाई जा रही हैं.
जब हम इस प्रथा से जुड़े विभिन्न पहलुओं को समझने का प्रयास करेगे तो हमें वे कारण मालूम होंगे जिनके कारण दहेज प्रथा कानूनी रूप से प्रतिबंधित होने के बावजूद समाज में स्वीकार्य रूप ले चुकी हैं.
कोई भी समाज अपनी परम्पराओं को बहुत महत्व देता हैं. भारतीय समाज में भी ऐसा ही हैं. कई सदियों से बेटी को विवाह पर भेट देने की परम्परा चली आ रही हैं. देश के अलग 2 हिस्सों में इसके अलग नाम हैं. अधिकतर लोग मानते हैं ये दहेज प्रथा हमारी परम्परा का हिस्सा हैं. इस कारण हम इससे अलग नही हो सकते हैं.
जबकि सच्चाई यह हैं कि बेटी को विवाह में भेट जो सदियों पहले तक दी जाती थी उसका यह विकृत रूप हैं. उस समय यह स्वैच्छिक परम्परा थी जबकि आज मजबूरी का सवाल बन चुकी हैं. वैसे भी भारत की परम्परा के अतीत में इस तरह की परम्परा के पद चिह्न नहीं मिलते हैं. यह बाद में कुछ क्षेत्रों से आरम्भ की गई.
दहेज प्रथा आज भी विद्यमान हैं इसका दूसरा कारण झूठी सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रश्न हैं. बहुत से लोग अपनी प्रतिष्ठा को बचाने या बनाने के उद्देश्य से महंगे महंगे उपहार देते और लेते हैं. एक तरह की प्रतियोगिता के रूप में परिवर्तित हो चुकी हैं. बड़ी बहू से अधिक छोटी बेटी से दहेज माँगना, पड़ोस की बहू से कीमती सामान माँगना आदि आम बात चुकी हैं.
तीसरा बड़ा कारण कठोर कानूनों तथा उनकी पालना का अभाव हैं. कहने को तो दहेज निषेध एक्ट, व घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 ये दो कानून दहेज उन्मूलन के लिए हैं. मगर धरातल की सच्चाई कुछ और ही बया करती हैं. अधिकतर अधिकारी जिन्हें इन नियमों की पालना करवानी होती हैं. कुछ लोग अपने बेटे बेटी की शादी में भी दहेज लेते व देते हैं. ऐसे में इस प्रथा को खत्म करने के लिए कानूनों को भी कठोर बनाना होगा और उनकी पालना भी कठोरता से सुनिश्चित करनी होगी.
दहेज प्रथा के कुप्रभाव effect of dowry system in our society In Hindi
आज हमारे समाज में दहेज प्रथा कोड के रूप में फैली हुई है इस प्रथा के कारण कन्या व उनके माता-पिता को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है शादी में उचित दहेज ना मिलने पर बहू को परेशान किया जाता है उसके साथ मारपीट की जाती है.
कई बार उसकी हत्या कर दी जाती है या आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया जाता है धन देने की स्थिति में माता-पिता योग्य लड़कों से शादी कर देते हैं कभी-कभी दहेज की कमी के कारण विवाहित को छोड़ भी दिया जाता है इतना ही नहीं गए ना दे पाने के कारण लड़कियां अविवाहित रह जाती है.
दहेज दुल्हन के परिवार की तरफ से दूल्हे को दी जानी वाली सम्पति, धन आदि की प्रथा हैं, जो गरीब और मध्यम परिवार की बेटियों के लिए अभिशाप बन चूका हैं. दहेज प्रथा ने कई सामाजिक महिला अपराधों को जन्म दिया हैं. इस प्रथा के क्या क्या दुष्परिणाम हैं इन्हें समझने का प्रयास करते हैं.
बेटी बोझ लगती है
दहेज जैसी कुप्रथा के कारण जब किसी माता पिता के घर कन्या का जन्म होता हैं तभी से उसके विवाह को लेकर चिंताएं शुरू हो जाती हैं. जो परिवार आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न है वे थोड़ी थोड़ी बचत करके बेटी की शादी की सभी जिम्मेदारियों को किसी तरह पूरा कर देते हैं. मगर निम्न आर्थिक पृष्ठभूमि के माता पिता ऐसा नहीं कर पाते हैं वे बेटी के विवाह के समय वर पक्ष की दहेज मांग को पूरा करने के लिए या तो ऋण लेते हैं अथवा अपनी सम्पति को बेच देते हैं.
अभिशापित जीवन बन जाता है
बेटी को बड़ी होने पर विदा करने के लिए कई माँ बाप अपने जीवन भर की पूरी पूंजी लुटा देते हैं. ऐसे में उन्हें शेष जीवन अभावों में अथवा बैंकों के कर्ज को अदा करने में व्यतीत करना पड़ता हैं. बेटी भी अपने माता पिता को ऐसे आर्थिक चंगुल में फंसे देखकर कभी भी खुश नहीं रह पाती हैं.
भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है
अधिकांश वे ही लोग रिश्वत लेते हैं जिनकी कमाई घर की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं होती हैं जिस व्यक्ति के घर पुत्री ने जन्म लिया हो उन्हें बेटी के विवाह और दहेज की जरूरतों को पूरा करने के लिए अनैतिकता का सहारा लेकर भी किसी तरह पैसा एकत्र करना पड़ता हैं. इस दौरान वह अनुचित साधनों जैसे टेक्स चोरी रिश्वत आदि गलत कार्यों में मजबूरी के चलते अपना ईमान बेचना पड़ता हैं.
बेटी की प्रताड़ना
दहेज प्रथा हजारों बेटियों के जीवन में अभिशाप की तरह आए दिन उन्हें घुट घुटकर जीने पर विवश करती हैं. कई बार ससुराल पक्ष वाले पर्याप्त दहेज न मिलने पर दुल्हन को मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताड़ित करते हैं. उनके दहेज की तुलना अन्य बहुओं से करके नित्य उपहास का पात्र बनाया जाता हैं. एक बेटी को हमेशा मानसिक तनाव और अवसाद में जीने पर विवश कर दिया जाता हैं.
कन्या भ्रूण हत्या
कई बार देखा गया हैं बहुत से माता पिता घर में बेटी के जन्म से नाखुश नजर आते हैं. बेटी के जन्म के समय ही उनके सामने दहेज देने वाली बात आ जाती हैं. जो लोग आर्थिक स्थिति में बेहद कमजोर हैं कई बार बेटी के जन्म लेते ही अथवा गर्भ में ही उसकी हत्या करवा देते हैं. इस तरह दहेज की कुप्रथा हर साल हजारों बेटियों का जीवन छीन लेती हैं.
दहेज़ प्रथा रोकने के उपाय
दहेज प्रथा को रोकने के लिए हमारे देश में दहेज विरोधी कानून बनाया जा चुका है फिर भी लोग दहेज लेने और देने नहीं मानते हैं सरकार इस घिनौनी प्रथा को समाप्त करने के लिए बराबर कोशिश कर रही है लेकिन अकेले सरकार की कोशिशों से कुछ नहीं होगा.
हमारे युवक और युवतियों को भी इसे रोकने के लिए कदम उठाने होंगे इससे हो सकता है कि आने वाला कल दहेज विरोधी कल हो. भारत में दहेज प्रथा को गैर कानूनी बनाने के लिए दहेज निषेध अधिनियम, 1961 हैं. इस कानून के अनुसार दहेज लेने और देने वाले तथा इसमें सहयोग करने वालों को 5 वर्ष की कारावास और 15 हजार रूपये के जुर्माने का प्रावधान हैं. यदि विवाह के पश्चात ससुराल पक्ष की ओर से स्त्रीधन को लेकर उन्हें प्रताड़ित किया जाता हैं तो इसमें लड़की के पति अथवा ससुराल पक्ष के लोगों के लिए तीन साल की कैद और जुर्माने का प्रावधान हैं.
उपसंहार - इस समस्या के कारण नारी समाज पर अत्याचार हो रहे हैं बहुओं को अनेक प्रकार के कष्ट सहन करने पड़ते हैं यह हमारे लिए बड़े दुख की बात है हमें देश का विरोध करना चाहिए नारी को पूरा सम्मान मिलना चाहिए और उनके प्रति मानवीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए.