मीरा बाई पर निबंध - Essay Meera Bai In Hindi : राजस्थान की महान हिंदी भक्ति कवयित्री मीरा बाई ने अपने पदों भजनों को लिखकर गाकर अपनी भक्ति की. आज के निबंध में हम मीराबाई के जीवन परिचय जीवनी को विस्तार से पढ़ेगे.
मीरा बाई पर निबंध - Essay Meera Bai In Hindi
हिंदी की महान कवयित्री मीरा बाई कृष्ण की अन्यय भक्त थी, वर्ष 1503 के आस पास इनका जन्म जोधपुर के पास ही ग्राम में माना जाता हैं.
बालपन से ही मीरा को कृष्ण जी से अन्यय प्रेम करती थी. वह अपने पास भगवान की मूर्ति रखा करती थी. अपने राजसी जीवन और राजभवन की सुख सम्रद्धि का त्याग कर इन्होने कृष्ण को अपना पति चुनकर उनकी भक्ति में गीत गाती रही, है.
अपना सम्पूर्ण जीवन उन्ही के चरणों में समर्पित कर दिया. मीरा बाई के भक्ति की यह यात्रा कठिनाइयों से मुक्त नहीं रही, जीवन के प्रत्येक भाग को कृष्ण की भक्ति में रंग दिया.
बड़ी होने पर मीरा का विवाह भोज राज के साथ सम्पन्न हुआ था. मगर विवाह के कुछ साल बाद ही भोज राज का देहांत हो गया था. वैवाहिक जीवन के समाप्त होने के बाद ही उसने वैराग्य जीवन को चुना तथा कृष्ण की भक्ति की राह चुन ली.
उनकी साधना की यह राह आसान नहीं थी, उनकी राह के कंटक उनके परिवार वाले ही बने. एक राज परिवार की बहू का साधु संतों के साथ रहना घूमना फिरना स्वीकार्य नहीं था.
कहते हैं मीरा को मनाने के कई प्रयास भी हुए मगर वह नहीं मानी, जहर देकर मारने की बात बात वह अपने पदों में करती हैं मगर वह कृष्ण के प्रेम में इतनी दीवानी हो चुकी होती हैं कि उन्हें कृष्ण का भेजा अमृत प्याला समझ कर पी लेती हैं.
जीवन भर कृष्ण भक्ति में गाते लिखते रही, 1574 में मीराबाई का देहांत हुआ था, इस तरह वह आजीवन कृष्ण को अपना पिय मानकर उनकी भक्ति में लीन हो गई.
आज हम मीरा के पदों एवं भजनों को गाते हैं. इनकी गिनती हिंदी साहित्य के महान भक्तिकालीन कवयित्री के रूप में की जाती रहेगी. समाज के कई व्यक्तियों ने उन पर कई आरोप भी लगाये लेकिन उन्होंने भगवान श्री कृष्ण को मन में ही पति मानकर अपना पूरा जीवन बिता दिया।
मीराबाई ने अपने जीवन में कई संघर्ष किए और कई साधना , तपस्या की फिर 1954 को मीराबाई का देहांत हो गया और तभी से उनको कृष्ण भगवान की प्रथम भक्त के रूप में हम सभी जानने लगे ।
मीराबाई का यह प्रेम अमर प्रेम था वह कृष्ण भगवान की मूर्ति के सामने कीर्तन करके नाचकर कृष्ण भगवान की आराधना करके कृष्ण भगवान के प्रेम रंग में रंग जाती थी ।
मीराबाई के इस प्रेम से उनका भाई भी उनको पसंद नहीं करता था और उनको कई बार मारने की भी कोशिश की गई । उनके भाई के साथ साथ उनके पड़ोसियों ने भी उनको प्रताड़ित करना शुरू कर दिया था.
तब मीराबाई इन सभी से तंग आकर वृंदावन चली गई और वहां पर अपना जीवन व्यतीत करने लगी । मीराबाई के मन में सिर्फ कृष्ण भगवान की मूर्ति बसी हुई थी.
वह कृष्ण भगवान के दर्शन करना चाहती थी और उनका मन हमेशा कृष्ण रंग में रंगा रहता था मानो ऐसा लगता था कि उन्होंने अपना पूरा जीवन कृष्ण भगवान के ऊपर समर्पित कर दिया हो ।
कृष्ण भगवान के अलावा उनको कुछ भी दिखाई नहीं देता था उनको संसार की सुख सुविधाओं से कुछ भी मतलब नहीं था । जब मीराबाई कृष्ण भक्ति के रंग में रंग जाती थी.
और जब कृष्ण जी की मूर्ति के सामने कीर्तन करती थी और नाचती थी तो कई लोग उनके इस कीर्तन का आनंद लेने के लिए आते थे ।
मीराबाई ने सिर्फ कृष्ण भक्ति को अपनाया और कृष्ण भगवान को पाने की इच्छा उनके मन में थी वह कृष्ण भक्ति में पूरी तरह से लीन होकर अपना जीवन व्यतीत करने लगी ।
कहते हैं की मीराबाई का सिर्फ एक ही सपना था कि वह किसी भी तरह से कृष्ण भगवान को अपना बना सकें और कृष्ण जी की भक्ति में अपना जीवन व्यतीत कर सकें.
जब उनकी मृत्यु हुई तब कुछ लोग कहते थे कि वह कृष्ण भगवान में ही समा गई. एक पंक्ति में कहा गया है कि मीरा के प्रभु गिरिधर नागर कहने का अर्थ यह है कि मीरा के तो सिर्फ एक ही प्रभु है और वो हैं श्री कृष्ण ।
मीरा जी जिस तरह से कृष्ण जी से प्रेम करती थी उस तरह का प्रेम आज तक किसी ने श्री कृष्ण जी से नहीं किया, मीरा जी ने अपना सारा जीवन श्री कृष्ण भक्ति में लगा दिया ।
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