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भगवान महावीर पर निबंध | Essay on Lord Mahavir in Hindi

भगवान महावीर पर निबंध | Essay on Lord Mahavir in Hindi: आपका स्वागत करते हैं. आज के आर्टिकल में हम भगवान महावीर के जीवन पर निबंध जानेगे. जैन धर्म की नीव रखने वाले महावीर स्वामी ने हिन्दू धर्म से पृथक एक सम्प्रदाय बनाया, लाखों करोड़ों जैन समुदाय के लोग इन्हें भगवान का दर्जा देते हैं. आज के निबंध में हम महावीर का जीवन परिचय, जीवनी, निबंध, इतिहास, शिक्षाएं कार्य व योगदान को इस शोर्ट एस्से में जानेगे.

भगवान महावीर पर निबंध Essay on Lord Mahavir in Hindi Language

भगवान महावीर पर निबंध | Essay on Lord Mahavir in Hindi

विश्व शांति, कल्याण तथा सुख समृद्धि के लिए अपना जीवन अर्पित करने वाले महावीर जी को हम ऐसे ही महान नहीं कहते उन्होंने अपने जीवन में अनेक उदारता के कार्य किये तथा अपने सुखी जीवन का त्याग कर संसार के लिए सुखी जीवन की खोज की.

भगवान महावीर सतज्ञान आज भी हमारे लिए पथ प्रदर्शक के रूप में काम आता है. उनके सिद्धांत का आज भी देश के अनुनाई अनुसरण करते है.

भगवान महावीर जैन धर्म के प्रमुख आन्दोलनकर्ता तथा पर्वतक माने जाते है. वैसे तो जैन धर्म के पर्वतक ऋषभदेव को माना जाता है. महावीर स्वामी ईसा पूर्व जैन आन्दोलनकर्ता रहे थे.

महावीर स्वामी को भारत के प्रमुख आचार्यो में गिना जाता है. इन्हें २४ वा तीर्थकार माना जाता है. ये महात्मा बुद्ध के बाद भारत के सबसे श्रेष्ठ आचार्य रहे है.

महावीर स्वामी जी का जन्म 600 ईसा पूर्व हुआ था. इनके बचपन का नाम वर्धमान था. ये क्षत्रिय परिवार से सम्बंधित थे. इनके पिता का नाम सिद्धार्थ तथा माता का नाम त्रिशल था. जो कुंडलग्राम में रहते थे.

शिक्षा दीक्षा का कार्य उनके परम्परा के अनुसार ही महल में ही हुई तथा वे जीवन में हमेशा विचित्र से रहते थे. वे शिक्षा में काफी तेज तथा प्रभावी थे. उनकी कला और पराक्रम का कोई मोल नहीं था.

स्वामीजी ने शिक्षा ग्रहण करने के बाद अपने इस स्वार्थी जीवन को एक बेहतर आयाम देने के लिए तथा पारिवारिक संबंधो को तोड़ने के लिए भगवान् ने ३० वर्ष की आयु में अपना घर त्याग दिया.

गृहस्थी जीवन का त्याग करने के बाद लगातर १२ वर्ष की कठोर तपस्या तथा मानसिक भक्ति के कारण वर्धमान  को ज्ञान की प्राप्ति हुई तथा इस ज्ञान ने इन्हें वर्धमान से महावीर बना दिया.

माना जाता है, कि ज्ञान बांटते से बढ़ता है. इसी धारणा का प्रयोग महावीर जी करते थे. उन्होंने न केवल ज्ञान की प्राप्ति की बल्कि ज्ञान का प्रचार पुरे संसार में किया तथा सभी को उपदेश देने लगे.

भगवान के उपदेशो को सुनकर लोग अपना भला करने में समर्थ हो रहे थे. राजा से लेकर आम आदमी तक अनेक लोग भगवान के शिष्य बन गए तथा ज्ञान की प्राप्ति करने लगे. महावीर जी ने पांच प्रमुख उपदेश दिए जो आज भी प्रसिद्ध है.

आज हम जिन विचारों का अध्ययन करते है. जिसमे जिओ और जीने दो, सदा सत्य बोलो, हिंसा मत करो, सभी के साथ अच्छा व्यवहार करे.

जरुरत के अनुसार ही धन इकट्ठा करो, चोरी न करे. ये सभी विचार महावीर जी से हमें प्राप्त हुए है. जिनका आज हम अनुसरण कर रहे है.

भगवान महावीर के अनुसार जो इन सिंद्धांतो पर चलता है. उसका जीवन सफल हो जाता है. इसका कई महापुरुषों ने अनुसरण किया है. तथा मोक्ष की प्राप्ति है. आज हमे स्वामी जी के जीवन से कुछ सीखकर उनका अनुसरण करना चाहिए.

72 वर्ष की आयु में भगवान महावीर का निर्वाण पावापुरी में हुआ जिसे आज जैन धर्म के लोगो का प्रमुख तीर्थस्थल मानते है. आज हम सभी इन्हें भगवान मानते है. और इनकी पूजा की जाती है.

Essay on Lord Mahavir in Hindi

महावीर स्वामी का जन्म ५९९ ई पूर्व वैशाली के निकट कुंडग्राम में ज्ञातक क्षत्रिय कुल में हुआ था. उनके पिता का नाम सिद्धार्थ था जो ज्ञात्रक गणराज्य के प्रधान थे. उनकी माता का नाम त्रिशला था.

जो लिच्छवि वंश के राजा चेटक की बहिन थीं. महावीर स्वामी के बचपन का नाम वर्द्धमान था. युवा होने पर वर्द्धमान का विवाह यशोदा नामक राजकुमारी से किया. कालान्तर में उनके एक पुत्री का जन्म हुआ जिसका नाम अणोज्या या प्रियदर्शना था.

अपने माता पिता की मृत्यु के पश्चात वर्द्धमान ने अपने बड़े भाई नन्दिवर्धन से आज्ञा लेकर 30 वर्ष की आयु में घर त्याग दिया और सन्यास धारण कर लिया.

कैवल्य ज्ञान प्राप्त करना- वर्द्धमान ज्ञान प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या करने लगे. इस तपस्या में उन्हें घोर कष्ट उठाने पड़े. उनके कपड़े फट गये और इसके बाद उन्होंने फिर वस्त्र धारण नहीं किये. लोगों ने उन पर नाना प्रकार के अत्याचार किये.

परन्तु उन्होंने कभी धैर्य नहीं खोया. अंत में 12 वर्ष की कठोर तपस्या के बाद जम्भीय ग्राम के निकट ऋजु पालिका नदी के तट पर वर्द्धमान को कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई. कैवल्य ज्ञान प्राप्त करने के बाद वर्द्धमान जिन निग्रंथ और महावीर के नामों से पुकारे जाने लगे.

धर्म प्रचार- ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात महावीर स्वामी ने अपने धर्म का प्रचार करना शुरू कर दिया. वे 30 वर्ष तक मगध, काशी, कोसल, वैशाली आदि प्रदेशों में जैन धर्म की शिक्षाओं का प्रचार करते रहे. उनकी शिक्षाओं से प्रभावित होकर अनेक राजा महाराजा, व्यापारी तथा अन्य लोग जैन धर्म के अनुयायी बन गये.

जैन साहित्य से ज्ञात होता है कि मगध के सम्राट बिम्बिसार तथा अजातशत्रु, लिच्छवि वंश के राजा चेटक अवंति प्रद्योत आदि महावीर स्वामी के अनुयायी थे. वैशाली तो उनके धर्म प्रचार का प्रमुख केंद्र था.

निर्वाण प्राप्त करना- अंत में 72 वर्ष की आयु में 527 ई पूर्व में पावापुरी नामक स्थान पर महावीर स्वामी का देहांत हो गया. इस स्थान पर भव्य स्थल बनाया गया है. जहा अनुनायी इनकी पूजा करते है.

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