भ्रष्टाचार पर निबंध | Essay on Corruption in Hindi: नमस्कार फ्रेड्स आज का निबंध स्पीच भारत में भ्रष्टाचार की समस्या पर दिया गया हैं. आज के निबंध में हम इसके अर्थ, परिभाषा, कारण, प्रभाव, निदान तथा रोकने के उपायों के बारे में विस्तार से चर्चा करेगे. तो चलिए इस निबंध को पढ़ना आरम्भ करते हैं.
भ्रष्टाचार पर निबंध Essay on Corruption in Hindi
समसामयिक भारत में यदि किसी सामाजिक समस्या पर सबसे ज्यादा बहस छिड़ी है तो वह भ्रष्टाचार ही है. आज यह सबसे ज्वलंत मुद्दा बन चूका हैं. जिसके पीछे एक इंडिया अगेंस्ट करप्शन नामक गैर सरकारी संगठन की भूमिका हैं.
भ्रष्टाचार वह व्यवहार या क्रिया है जिससे निजी या व्यक्तिगत लाभ के लिए सामाजिक मानदंडों व औपचारिक कानूनों का सरेआम उल्लंघन कर सार्वजनिक शक्ति या सत्ता का दुरूपयोग किया जाता हैं.
भाई भतीजावाद, रिश्वतखोरी, पक्षपात, सार्वजनिक धन की हेरा फेरी कर वंचना, कर्तव्य विचलन, अनैतिक व्यवहार आदि भ्रष्टाचार के उदाहरण हैं. संरक्षण दुरविन्योग भी शामिल हैं.
भ्रष्टाचार आज एक सामान्य शब्द बन चूका है, इसका शाब्दिक अर्थ है होता है भ्रष्ट आचरण। किसी व्यक्ति द्वारा अपने कार्य से अपने स्वार्थ सिद्धि की कामना के लिए समाज के नैतिक मूल्यों को नजरअंदाज किया जाता है, भ्रष्टाचार कहलाता है। भ्रष्टाचार आज एक चिंता का विषय है, यह तेजी से बढ़ता जा रहा है. इससे कोई अछूत नही है.
भ्रष्टाचार आज हर व्यक्ति करने लगा है, पर इस विषय में नेताओ को सबसे अधिक भ्रष्ट बाताया जाता है. वास्तिवकता तो यह है, कि इसके बहाने देश का हर आम आदमी से लेकर बड़े बड़े पदाधिकारियों के लिए यह एक व्यवसाय बन चूका है.
हमारे यहाँ चपरासी से लेकर प्रधानमंत्री तक भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे है या लिप्त पाए गये हैं. यह अलग बात है कि व्यवस्था की कमी के कारण आरोप साबित नहीं हो पाते व सजा से बच जाते हैं.
भ्रष्टाचार एक विशुद्ध भारतीय सामाजिक प्रघटना नहीं है बल्कि यह एक विश्वव्यापी तथ्य है कि विकसित देशों की तुलना में गरीब देशों में इसकी मात्रा अधिक होती हैं.
गैर क़ानूनी तरीकों से धनार्जन करना ही भ्रष्टाचार है, इसमे भ्रष्टाचारी व्यक्ति अपने निजी लाभ को प्राप्त करने के लिए सार्वजानिक या आमजन का शोषण कर उनका धन अवैध रूप से अर्जित करता है.
बढ़ता भ्रष्टाचार हमारे देश की प्रगति के लिए एक चिंता का विषय बना हुआ है. यह देश के विकास में बाधा बन रहा है. हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार हो रहा है. जो धन के साथ ही कई प्रतिभाओ को जीवन में आगे बढ़ने से रोक रहा है.
भ्रष्टाचार क्या है?
भ्रष्टाचार लोगो द्वारा अपनाया जाने वाला एक ऐसा अनैतिकता का आचरण है, इसमे व्यक्ति अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए देश की सम्पति को नुकसान पहुंचाता है. इसमे उन्हें तनिक भी देरी नही करते है. मौका मिलते ही वे अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए तैयार रहते है.
केवल धन के मामले में किये गए घोटाले को ही भ्रष्टाचार नही कहते है. परीक्षाओ में भेदभाव करना. पैसे के दवारा किसी खिलाडी का सिलेक्शन करना या किसी भी चीज में मिलावट करना भी एक तरह का भ्रष्टाचार कहलाता है.
भ्रष्टाचार की परिभाषा एवं अर्थ (Definition and meaning of corruption)
- डी एच बेली के अनुसार निजी लाभ के विचार के फलस्वरूप सत्ता का दुरूपयोग जो कि धन से सम्बन्धित नहीं भी हो सकता है भ्रष्टाचार हैं.
- एन्द्रीस्की ऐसे तरीको को सार्वजनिक शक्ति का निजी लाभ के लिए प्रयोग जो कानून का उल्लंघन करता हैं.
- जे नाय- भ्रष्टाचार निजी लाभों के लिए सार्वजनिक पदों का दुरूपयोग को दर्शाता हैं,
- मैरिस सैफेल- भ्रष्टाचार वह व्यवहार है जो मानदंडों व सार्वजनिक भूमिका निर्वाह के कर्तव्यों को संचालित करने या निजी लाभों के लिए पद का दुरूपयोग या उचित उपयोग के विचलन से हैं.
उपर्युक्त परिभाषाओं के विवेचन से स्पष्ट होता है कि भ्रष्टाचार वह व्यवहार या सामाजिक क्रिया है जिसमें व्यक्तिगत हितों को समूह कल्याण पर प्राथमिकता दी जाती है तथा सार्वजनिक शक्ति/ सत्ता को गैर संस्था गत तरीके प्रयुक्त किया जाता है और जिसकी पहचान सामाजिक समस्या के रूप में होती हैं.
वर्तमान में भ्रष्टाचार एक अत्यंत गम्भीर समस्या है जो सामाजिक आर्थिक विकास व रोजगारमूलक अवसरों में बाधक बनकर गरीबी जैसे अत्यंत ही गंभीर स्थिति के जन्ममूलक कारक के रूप में अभिव्यक्त होता है. जो कि अन्तः भारत को विकसित राष्ट्र राज्य बनने की दिशा में एक बाधक बन जाता हैं. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के अनुसार गरीबों के लिए आवंटित धन में से केवल 15 प्रतिशत की ही वास्तविक पहुँच गरीब तक होती हैं.
भ्रष्टाचार के कारण (Causes Of corruption)
भ्रष्टाचार की उत्पत्ति का कोई एक या कुछ ही कारण नहीं है बल्कि इसके अनेक उद्भवकारी कारक हैं क्योंकि भ्रष्टाचार एक सामाजिक यथार्थ है इसके निम्नलिखित कारण हैं.
- स्वहित आधारित नये राजनितिक वर्ग का उदय- इसे सर्वप्रमुख कारण माना जा सकता हैं. क्योंकि भारत में राजनीति एक नियामक संस्था है. ऐसे नयें राजनीतिक अभिजात वर्ग का अस्तित्व हैं जो सार्वजनिक नीतियों या कार्यक्रमों नीतियों व कार्यक्रमों में राष्ट्रहित की तुलना में स्वहित को अधिक प्राथमिकता देते है. इनमें देशभक्ति, त्याग व दूरदर्शिता तथा नैतिक मूल्यों का नितांत अभाव देखा गया हैं. यह नव्य राजनीतिक वर्ग, अधिकारियों, नौकरशाहों व व्यापारी नेताओं अपराधियों, तस्करों आदि से सांठ गाँठ करके विकासमूलक कार्यक्रमों के स्थान पर स्वहित पर ही केंद्रित रहता हैं. राजनीति में ईमानदारी, देश भक्ति, जनहित की भावना व प्रगतिशील सोच आजादी के प्रथम दो दशक तक रही. 1967 के चौथे आम चुनाव के बाद से राजनीतिक सूचिता व प्रतिबद्धता विचलित हो गई.
- सरकारी आर्थिक नीतियाँ- यह भ्रष्टाचार का दूसरा प्रमुख कारण हैं. अधिकांश घोटाले उन क्षेत्रों में हुए है जहाँ निति निर्माण व मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया सरकारी नियंत्रण में हैं. अतः मुख्य समस्या अर्थतंत्र को भ्रमित सरकारी नियमों से मुक्त कर स्पष्ट व पारदर्शी नियमों की आवश्यकता हैं. अत्यधिक नियंत्रित अर्थव्यवस्था में देश के आर्थिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. तथा बड़े बड़े रोजगारमूलक व विकास मूलक प्रोजेक्ट स्थापित नहीं हो पाते और यदि हो भी जाते है तो असफल हो जाते है.
- आवश्यक वस्तुओं की कमी- यह भी भ्रष्टाचार का कारण है. जब मांग अधिक होती है तथा आपूर्ति सुनिश्चित नहीं हो पाती तो भ्रष्टाचार पैदा हो जाता है. तथा शक्तिशाली वर्ग भ्रष्टाचार के द्वारा निम्न वर्ग को इन आवश्यकतामूलक वस्तुओं से वंचित कर देता हैं.
- व्यवस्था में परिवर्तन- प्रत्येक समाज में मूल्य व मानदंडों की व्यवस्था समयानुसार बदल जाती है. आज नैतिकता, ईमानदारी, त्याग, परमार्थ, नरसेवा नारायण सेवा के मूल्यों का स्थान भौतिकता, बेईमानी, स्वहित, स्वसुख को प्राथमिकता जैसे मूल्यों ने ले लिया हैं. परिणामतः समाज में भ्रष्टाचार तेजी से फ़ैल रहा है. आज भेंट स्वीकारना तार्किकता का पर्याय बन गया हैं.
- अप्रभावी प्रशासनिक संगठन- प्रशासनिक कमजोरी से भी भ्रष्टाचार बढ़ा है. नियंत्रण व सतर्कता का अभाव प्रशासनिक अधिकारियों को अत्यधिक शक्ति देना, त्रुटीपूर्ण सूचना व्यवस्था, गैर जिम्मेदारी पूर्ण दृष्टिकोण, लालफीताशाही आदि ने न केवल प्रशासकों को भ्रष्टाचार के अवसर प्रदान किये है बल्कि भ्रष्टाचार के बाद वे बच भी जाते हैं.
उपर्युक्त के अलावा भ्रष्टाचार के कारणों को आर्थिक, सामाजिक, मुलायम सामाजिक व्यवस्था, राजनीतिक कारण, न्यायिक कारण की श्रेणी में रखा जा सकता हैं. स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार एक जटिल एवं सामाजिक समस्या है. जिसके अनेक उद्भवकारी कारक हैं. भ्रष्टाचार की सम्भावना उन क्षेत्रों में अधिक होती है जहाँ महत्वपूर्ण निर्णय किये जाते है जैसे ठेके स्वीकृत करना, कर संग्रह का मूल्यांकन, आपूर्ति को मान्यता देना, बिल पास करना, चैक पास करना, अनापत्ति प्रमाण पत्र देना आदि.
भ्रष्टाचार के प्रभाव Effects Impact of corruption)
चूँकि भ्रष्टाचार एक सामाजिक यथार्थ है अतः समाज पर इसका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक हैं. भ्रष्टाचार का निम्नलिखित प्रभाव समाज पर पड़ता हैं.
- यह देश के आर्थिक विकास में बाधक है.
- यह योग्यता में बाधक बनकर अकुशलता को बढ़ावा देता है जिससे कार्य दक्षता में गिरावट आती हैं.
- इसने नैतिक मूल्यों में गिरावट की हैं.
- यह भाई भतीजावाद, साम्प्रदायिकता, क्षेत्रवाद, भाषावाद, संकीर्ण विचारधाराओं को बढ़ावा दिया हैं.
- इसने व्यक्तिगत चरित्र का पतन किया हैं. तथा सस्ती सफलता के लिए अभिमुखित किया हैं.
- हिंसा व अराजकता को प्रोत्साहित सामाजिक व्यवस्था को अस्थित किया हैं.
- प्रशासन में अनुशासनहीनता व गैर जिम्मेदारी दृष्टिकोण को प्रेरित किया हैं. फलतः अफसरों की विश्वसनीयता लोगों में कम हुई हैं.
- इसने खाद्य पदार्थों में मिलावट को प्रोत्साहित किया हैं. जिससे स्वास्थ्य नकारात्मक रूप से प्रभावित हुआ हैं.
- भ्रष्टाचार ने राजनीतिक क्षेत्र में भी अस्थिरता का माहौल निर्मित किया है.
- भ्रष्टाचार अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में भारत की पहचान एवं विश्वसनीय को धूमिल किया है जो कि विनिवेश, राजनीतिक पकड़ व वित्तीय विनिमय में बाधक हैं.
भ्रष्टाचार रोकने के उपाय (Measures to prevent corruption)
भ्रष्टाचार पर नियंत्रण हेतु पहले बड़े प्रयास के रूप में 1962 में के संस्थानम की अध्यक्षता में भ्रष्टाचार निरोधक समिति का गठन किया गया, इसके बाद तो मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों आदि के खिलाफ अनेक आयोग गठित किये गये.
इस समिति की सिफारिशों पर ही 1964 में CVC यानी केन्द्रीय सतर्कता आयोग का गठन किया गया. केंद्र सरकार ने निम्नलिखित विभागों की स्थापना भ्रष्टाचार विरोधी उपायों के तहत की.
- केंद्रीय जांच ब्यूरों
- केन्द्रीय सतर्कता आयोग
- कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग में प्रशासनिक सतर्कता आयोग
- मंत्रालयों, राष्ट्रीयकृत बैंकों, सार्वजनिक उपक्रमों, विभागों में घरेलू सतर्कता इकाइयाँ
भ्रष्टाचार के विरुद्ध भारत में वर्तमान स्थिति
वर्तमान में भारत में 17 राज्यों में लोकायुक्त नियुक्त हैं. हाल ही में LAC नामक गैर सरकारी संगठन ने स्वतंत्र लोकपाल की स्थापना हेतु भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चला रखा हैं. इसका नेतृत्व अन्ना हजारे जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया, विशेषकर राजनीतिक सुचिता, काला धन व भ्रष्टाचार से निर्णायक संघर्ष हेतु इन्होने आम आदमी पार्टी का गठन किया.
भ्रष्टाचार पर निबंध | Corruption Essay in Hindi
वर्तमान काल में धन को सबसे महत्वपूर्ण और बहुमूल्य चीज माना है यह काफी हद तक सही भी है क्योंकि पैसों के कारण लोग भ्रष्ट आचरण पर हर कार्य को करने में संभव होते हैं। लोग पैसों के लालच में स्वार्थी बन गए हैं जिस कारण भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है।
लोगों की मानवीयता समाप्त हो चुकी है अपनी नैतिक शिक्षा को भूल कर लोग भ्रष्ट आचरण का सहारा लेकर पैसों की सहायता से नौकरी प्राप्त करते हैं या अन्य किसी भी कार्य को करने में संभव होते हैं।
भ्रष्टाचार का हिंदी अर्थ भ्रष्ट आचरण या बुरा आचरण होता है। जो लोग मानवीयता को भूलकर भ्रष्ट आचरण को अपनाते हैं वह भ्रष्टाचारी कहलाते हैं। देश की संपूर्ण व्यवस्था में भ्रष्टाचार छा गया है हर कार्य में भ्रष्टाचार अपनी जगह काबू कर चुका है लोग सत्य के मार्ग को छोड़क भ्रष्टाचार की नीतियों पर चल रहे हैं।
हमारे देश में बढ़ते भ्रष्टाचार को रोकने के लिए सरकार द्वारा भ्रष्टाचार निवारण के लिए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 लागू किया गया है जिसके तहत भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले रिश्वतखोर रिश्वत लेने वाले तथा रिश्वत देने वाले दोनों को अपराधी घोषित किया गया है जो व्यक्ति रिश्वत देता या लेता पकड़ा गया उसके लिए सजा का प्रावधान भी किया गया है।
पर संकोच जनक बात यह है कि लोग रिश्वत की सहायता से भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम से भी बच जाते हैं इसी कारण भ्रष्टाचार लगातार बढ़ता जा रहा है। इसलिए हमें देश की कानून व्यवस्था को बेहतर बनाने की जरूरत है।
भ्रष्टाचार की सहायता से लोग नौकरी तक प्राप्त करते हैं हमारे देश में सरकार भी भ्रष्टाचार मैं समाहित है यदि देश की यही स्थिति रही तो आने वाले समय में भ्रष्टाचार देश की बर्बादी का प्रमुख कारण बन जाएगा आज के राजनेता धन की सहायता से वोट लेते हैं
कुछ राजनेता झूठे वायदे और जनता को लालच देकर चुनाव में विजय बन जाते हैं। इसके परिणाम स्वरूप वही राजनेता जनता के लिए परेशानी बन जाता है।
आज हमारे देश में किसी भी कार्य को करने के लिए हमें रिश्वत देने की जरूरत पड़ती है जो कि गैर कानूनी है पर आम जनता कर्मचारियों के डर के कारण और अपने कार्य को पूरा करने के लिए रिश्वत देने को तैयार हो जाती है।
भ्रष्टाचार दिन प्रतिदिन निरंतर गति से बढ़ता जा रहा है जो देश की आम जनता के लिए संकट बन रहा है
भ्रष्टाचार दिन प्रतिदिन निरंतर गति से बढ़ता जा रहा है जो देश की आम जनता के लिए संकट बन रहा है
भ्रष्टाचार का प्रमुख कारण राजनेता दलेल नौकर और बेरोजगार हैं जो अपने लालच को पूरा करने के लिए भ्रष्टाचार जैसे अपराध को बढ़ावा दे रहे हैं।
एक राष्ट्र के विकास में एक मजबूत प्रशासन और बेहतर अर्थव्यवस्था का होना जरूरी है पर हमारे देश में उसके विपरीत भ्रष्टाचार एक व्यवसाय बन चुका है जो लोगों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है.
और देश की अर्थव्यवस्था को कमजोर बनाता है. इसी कारण हमारा देश आज तक विकसित नहीं हो सका है अभी भी हमारे पास समय है अभी भी हम नैतिकता के पथ पर चलकर राष्ट्र का विकास कर सकते हैं और भ्रष्टाचार से मुक्त हो सकते हैं।
भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए हमें सरकार द्वारा बनाए गए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 का सहारा लेना चाहिए। यह अधिनियम कृषि बैंक सोसाइटी शिक्षक कर्मचारी आदि पर लागू होता है.
उक्त सभी सरकारी कर्मचारी होते हैं यदि यह रिश्वत की मांग करते हैं तो हम उन पर मुकदमा दर्ज करवा सकते हैं। हम सभी को अपनी स्थिति मैं सुधार के लिए भ्रष्टाचार को दूर करना होगा।
हम सभी को मिलकर हमारी समाज और हमारे देश को भ्रष्टाचार की इसबीमारी से मुक्त कराना है तथा हम सभी को एकजुट होकर भ्रष्टाचार के कलंक को हमेशा हमेशा के लिए मिटाना होगा। जिससे हम हमारा समाज हमारा राष्ट्र भ्रष्टाचार की इस धोखाधड़ी से मुक्त हो पाएगा।
सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार पर निबंध | Essay On Corruption In Public Life In Hindi
किसी समाज अथवा देश की समस्याएं तब तक बनी रहती हैं, जब तक कि समाज की ओर से उसका मुखर रूप से प्रतिरोध नहीं किया जाता हैं.
आजादी के बाद से भारत के सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार ने एक आदत के रूप में स्थान बना लिया हैं. भारतीय समाज की मौन स्वीकृति और इस व्यवस्था के प्रति अपनी उदासीन मनोवृत्ति के कारण आज हमारे देश को दुनियां के सबसे अधिक भ्रष्ट व्यवस्था वाले देशों में गिना जाता हैं.
गुलाम मानसिकता और परिवर्तन के प्रति नकारात्मक सोच के चलते भ्रष्टाचार ने हमारे देश के हरेक तंत्र और विभाग को अपने प्रभाव में ले लिया हैं. भारत पर सदियों से विदेशी आक्रमण होते रहे, लोगों ने समझौतों के साथ जीवन जीने की आदत बना ली,
भारत की स्वतंत्रता के बाद भी यही दृष्टिकोण बना रहा. यहाँ के स्थानीय शासक भी भारतीय आमजन के हितैषी न बनकर अपने स्वार्थ सिद्धि की ओर अपने व्यवहार को बनाते गये.
नतीजा यह रहा कि मुश्किलों से घिरे जीवन में किसी तरह अपना काम बनाने के लिए नैतिकता को ताक पर रखने में जरा भी संकोच नहीं किया.राजनेताओं, अधिकारियों और विभागों के कर्मचारियों के लिए रिश्वत कमाई का एक सुलभ साधन बन चूका हैं.
हमारी पुलिस व्यवस्था पर भ्रष्टाचार के मामले में सदैव सवाल उठते रहे हैं. जो भी जितने बड़े पद पर होता हैं उसके भ्रष्ट आचरण का दायरा उतना ही बड़ा होता जाता हैं.
हमारे राजनेताओं ने आजादी के बाद से जितने घोटाले किये, यदि उतना धन देश की गरीब जनता पर व्यय किया होता तो वाकई में आम आदमी के जीवन में चमत्कारी बदलाव देखने को मिल सकते थे.
मगर हमारी व्यवस्था ने ऐसे बदनीयत लोगों को प्रश्रय देने का काम किया हैं. भ्रष्ट लोगों के लिए हमारी सरकारी व्यवस्था एक इको सिस्टम की तरह काम करती हैं, पद व्यक्ति को प्रभावित करने की पर्याप्त शक्ति रखते हैं जिससे भ्रष्टाचार का जन्म होता हैं.
स्वतन्त्रता के बाद भारत ने अंग्रेजों द्वारा बनाई गई सभी व्यवस्थाओं को हुबहू स्वीकार कर लिया था, अंग्रेजों की शासन प्रणाली के तहत तो केवल किसी तरह कानून व्यवस्था बनाकर राजस्व वसूली ही मुख्य काम था.
आज भी विरासत के रूप में हम उसी व्यवस्था को लेकर आगे चल रहे हैं. किसी भी विभाग में लाखों कर्मचारी होते हैं जिन पर चंद पर्यवेक्षक अधिकारी उनके कामकाज व गतिविधियों का निरिक्षण कर ही नहीं पाते हैं.
काम के अतिरिक्त दवाब के बीच निर्भय होकर लोगों को अपनी आय बढ़ाने के पर्याप्त और सुरक्षित अवसर मिल जाते हैं.
देश के सभी राज्यों में लगभग एक तरह की सरकारी व्यवस्थाएं हैं. सरकार के कामों में अधिकता के कारण भी भ्रष्टाचार के पर्याप्त अवसर बने रहते हैं. उदाहरण के लिए देश के सभी जिलों में भूमि के अभिलेख माप तोल का सारा जिम्मा पटवारी के कंधे पर होता हैं.
वह अपनी इच्छा के मुताबिक़ भूमि के स्वामित्व और गोचर के सम्बन्ध में निर्णय ले सकते हैं, धांधली की पूरी सम्भावनाएं बनी रहती हैं.
हमारे देश की अधिकतर आबादी गाँवों में निवास करती हैं. लोगों में कानून के प्रति समझ बेहद अल्प हैं.
जब वह किसी सरकारी काम के लिए दफ्तर को निकलता हैं तो ढीली कार्यप्रणाली में सेवा की आड़ में कई बार उसे शुल्क के नाम पर लूटा जाता हैं तो कई बार नियमों के अनुकूल उनके काम को बनाने के प्रयास में पैसे मांगे जाते हैं.
भारत में जुगाड़ बहु प्रचलित शब्द हैं, वाकई यह वह जादुई छड़ी मानी जाती हैं जिसके सहारे आप कोई भी काम किसी भी ओहदे पर बैठे अधिकारी से निकलवा सकते हैं.
सरकारी जमीन पर पटवारी से अपने नाम करवाना हो, बिजली चोरी का चालान कम करवाना, बिल राशि कम करवाना, गाँव या शहर में दूकान या ठेला लगाना हो तो भी पुलिस को प्रसाद देना ही पड़ता था.
लोकतांत्रिक व्यवस्था में सब मिलकर खाओं का परिदृश्य हमारे देश में कई बार उजागर हुआ हैं, छोटे स्तर पर यह किस पैमाने पर काम करता हैं व्यक्ति को अंदाजा तभी होता हैं जब वह उस चंगुल में फंसता हैं.
विगत एक दशक से भारत के सार्वजनिक जीवन में चाहे वह छोटे अधिकारी, बाबू से लेकर नेता, नौकरशाही की बात हो रिश्वत का चलन काफी कम हुआ हैं.
वर्तमान में केंद्र में मोदी सरकार ने देश में दशकों से चली आ रही रिश्वतखोरी की परम्परा को कुछ समय के लिए विराम सा लगा दिया हैं.
सरकार चाहे उतने कठोर कानून बना दे, जब तक जनमानस इस प्रवृत्ति के खिलाफ खड़ा नहीं होगा, भारत से भ्रष्टाचार को खत्म नहीं किया जा सकेगा.
सोशल मिडिया और स्मार्टफोन के दौर में भ्रष्टाचार के मामले कुछ कम जरुर हुए हैं. लोगों ने कई बार ऐसे दीमकों को देश के सामने नंगा भी किया हैं.मगर सदियों पुरानी व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन किये बगैर इसे रोका नहीं जा सकेगा.
जब प्रत्येक नागरिक अपने थोड़े फायदे के लिए रिश्वत की ओर नहीं जाएगा तभी सिस्टम में सुधार होगा, और उसे व्यवस्था मजबूर नहीं कर पाएगी.
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