भारतीय गाँव पर निबंध | Essay on Indian Village in Hindi: फ्रेड्स आपका हम स्वागत करते है आज का निबंध हम भारतीय गाँव के बारे में लेकर आए हैं. इस भाषण, निबंध, अनुच्छेद में हम भारत के गाँव के बारे में विस्तार से जानेगे.
भारतीय गाँव पर निबंध | Essay on Indian Village in Hindi
हमारे भारत देश की अर्थव्यवस्था कृषि केंद्रित हैं. सदियों से इसका आधार गाँव, किसान एवं कृषि ही रहा हैं. इसके साथ ही हमें यह समझना चाहिए कृषि करने वाली सम्पूर्ण आबादी गाँवों में निवास करती हैं. भारत की 70 प्रतिशत आबादी गाँवों में बसती हैं. इसी कारण कहा गया है भारत गाँवों में बसता हैं.
इस आधार पर कहा जा सकता है कि यदि भारत के बारे में जानना है तो भारतीय गाँव को देखे बगैर इसे नहीं समझा जा सकता हैं. भारत और गाँव इस तरह से एक दूसरे से पर्याय हैं. हम किस्से कहानियों में स्वर्णिम भारत के बारे में पढ़ते है.
जब यह देश सोने की चिड़िया कहलाता था तथा यहाँ घी दूध की नदियाँ बहा करती थी. उस भारत की समृद्धि का आधार ये गाँव ही थे. ब्रिटिश सत्ता ने भारत के गाँव एवं किसान की कमर तोडकर भारतीय ग्रामीण व्यवस्था को तहस नहस कर दिया.
आज के भारतीय गाँव की वे विशेषताएं नहीं रह गई है जो एक समय में उनकी पहचान हुआ करती थी. आज के गाँव गरीबी, पिछड़ेपन, अशिक्षा आदि के पर्याय बनकर रह गये हैं.
गाँवों की इस दुर्द्र्षा के कई कारण है यदि हम अतीत के कुछ पन्ने पलटे तो प्रतीत होगा कि मध्यकाल के बाद से गाँवों की स्थिति बद से बदतर हुई है इसके लिए विदेशी आक्रान्ताओं के साथ ही स्थानीय शासक भी इस दुर्द्र्षा के जिम्मेवार रहे हैं.
अंग्रेज हो या अन्य आक्रमणकारी जो भी भारत आया किसी ने इसे अपना न समझा. धन लोलुपता के चलते लम्बे अरसे तक आर्थिक लूटमार के चलते भारत के गाँवों को इसके भयंकर दुष्परिणाम भुगतने पड़े. चूँकि उस दौर में अधिक बड़े शहर नहीं हुआ करते थे. गाँव के किसान, पशुपालक एवं उद्योग चलाने वाले व्यापारी वर्ग के पास अथाह सम्पति थी, इस कारण इन आक्रान्ताओं के शोषण का सर्वाधिक शिकार गाँव ही हुआ.
बाहरी शासकों की नीतियों के कारण गाँव के किसान की जर्जर हालात को सेठ साहूकारों एवं जमीदारो ने और अधिक पतला कर दिया. जिसके नतीजे में भारतीय गाँव आज भी उस हालात से निकल नहीं पाए हैं. व्यापक स्तर पर हुए शोषण के चलते शिक्षा गाँव के लोगों को सुलभ नहीं हो पाई, जिसके नतीजे में यहाँ रूढ़िवादी तथा अन्धविश्वास ने अपनी गहरी पैठ जमा ली.
गाँवों तक शिक्षा की पहुँच न होने के कारण ही लोग परम्पराओं तथा सामाजिक बन्धनों में जकड़ते चले गये. भारत की स्वतन्त्रता के सात दशक बीत जाने के बाद भी विकास की मुख्यधारा से अभी तक गाँव दूर ही रहे हैं.
भारतीय गाँवों की दुर्दशा के लिए जातिवाद तथा भाषावाद जैसी विषमताओं का भी बड़ा योगदान रहा है. लोग अपने अहं भाव के कारण अपनी हैसियत से अधिक कर्ज लेकर आज भी जीवन भर साहूकारों के ब्याज के तले दबकर रह जाते हैं.
वहीँ शिक्षा के अभाव में लोगों के पास रोजगार के सिमित साधन होने के कारण बेरोजगारी भी बेहताशा बढ़ी तथा अशिक्षा के कारण ही गाँवों की जनसंख्या में तेजी से बढ़ोतरी होती गई. आबादी बढने के कारण साधनों की सीमितता बढ़ती गई. एक आम ग्रामीण अपने बच्चों का उचित तरीके से न तो भरन पोषण कर पाता है न ही उन्हें अच्छी शिक्षा दिलवा पाता हैं.
जिस तेजी से शहरों की प्रगति हुई है सरकारों द्वारा उतने पर्याप्त प्रयास गाँवों के विकास के लिए नहीं किये हैं 21 वीं सदी के भारत में शहर में जहाँ नवीनतम टेक्नोलॉजी ने हर घर में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है वही गाँव में आज भी लोग मूलभूत सुविधाएं कपड़ा, रोटी, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य के लिए तरस रहे हैं. आज भी कई गाँवों तक बिजली नहीं पहुंची है मध्यकाल की तरह आज भी गाँवों के घरों में गोबर के उपलों से खाना पकता हैं.
घर घर बिजली, उज्वला योजना, मनरेगा तथा कौशल विकास के चलते अब हमारे गाँव भी तरक्की की पहली सीढी चढ़ने के लिए तैयार हो रहे हैं. सरकार गाँवों की क्षमता तथा इसके संसाधनों के सही उपयोग को बढ़ावा दे रही हैं, निश्चय ही किसान, मजदूर आदि के जीवन को समर्थ बनाकर गाँवों के विकास की गति को तीव्र किया जा सकता हैं.
अब सरकारी योजनाओं में गाँव को विशेष स्थान दिया जा रहा हैं. देश के दूर दराज इलाकों में अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, शौचालय के अवसर सुलभ करवाएं जा रहे हैं. इन्टरनेट के कारण गाँव भी अब दुनिया के पटल पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे हैं.
प्रधानमंत्री सड़क योजना एवं रेलवे प्रोजेक्ट से अब गाँवों को शहरों से जोड़ने के प्रयास किये जा रहे हैं. समय समय पर राज्य एवं केंद्र सरकारों द्वारा गाँवों के उत्थान के लिए स्कीम बनाई जा रही हैं.
अंग्रेज हो या अन्य आक्रमणकारी जो भी भारत आया किसी ने इसे अपना न समझा. धन लोलुपता के चलते लम्बे अरसे तक आर्थिक लूटमार के चलते भारत के गाँवों को इसके भयंकर दुष्परिणाम भुगतने पड़े. चूँकि उस दौर में अधिक बड़े शहर नहीं हुआ करते थे. गाँव के किसान, पशुपालक एवं उद्योग चलाने वाले व्यापारी वर्ग के पास अथाह सम्पति थी, इस कारण इन आक्रान्ताओं के शोषण का सर्वाधिक शिकार गाँव ही हुआ.
बाहरी शासकों की नीतियों के कारण गाँव के किसान की जर्जर हालात को सेठ साहूकारों एवं जमीदारो ने और अधिक पतला कर दिया. जिसके नतीजे में भारतीय गाँव आज भी उस हालात से निकल नहीं पाए हैं. व्यापक स्तर पर हुए शोषण के चलते शिक्षा गाँव के लोगों को सुलभ नहीं हो पाई, जिसके नतीजे में यहाँ रूढ़िवादी तथा अन्धविश्वास ने अपनी गहरी पैठ जमा ली.
गाँवों तक शिक्षा की पहुँच न होने के कारण ही लोग परम्पराओं तथा सामाजिक बन्धनों में जकड़ते चले गये. भारत की स्वतन्त्रता के सात दशक बीत जाने के बाद भी विकास की मुख्यधारा से अभी तक गाँव दूर ही रहे हैं.
भारतीय गाँवों की दुर्दशा के लिए जातिवाद तथा भाषावाद जैसी विषमताओं का भी बड़ा योगदान रहा है. लोग अपने अहं भाव के कारण अपनी हैसियत से अधिक कर्ज लेकर आज भी जीवन भर साहूकारों के ब्याज के तले दबकर रह जाते हैं.
वहीँ शिक्षा के अभाव में लोगों के पास रोजगार के सिमित साधन होने के कारण बेरोजगारी भी बेहताशा बढ़ी तथा अशिक्षा के कारण ही गाँवों की जनसंख्या में तेजी से बढ़ोतरी होती गई. आबादी बढने के कारण साधनों की सीमितता बढ़ती गई. एक आम ग्रामीण अपने बच्चों का उचित तरीके से न तो भरन पोषण कर पाता है न ही उन्हें अच्छी शिक्षा दिलवा पाता हैं.
जिस तेजी से शहरों की प्रगति हुई है सरकारों द्वारा उतने पर्याप्त प्रयास गाँवों के विकास के लिए नहीं किये हैं 21 वीं सदी के भारत में शहर में जहाँ नवीनतम टेक्नोलॉजी ने हर घर में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है वही गाँव में आज भी लोग मूलभूत सुविधाएं कपड़ा, रोटी, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य के लिए तरस रहे हैं. आज भी कई गाँवों तक बिजली नहीं पहुंची है मध्यकाल की तरह आज भी गाँवों के घरों में गोबर के उपलों से खाना पकता हैं.
घर घर बिजली, उज्वला योजना, मनरेगा तथा कौशल विकास के चलते अब हमारे गाँव भी तरक्की की पहली सीढी चढ़ने के लिए तैयार हो रहे हैं. सरकार गाँवों की क्षमता तथा इसके संसाधनों के सही उपयोग को बढ़ावा दे रही हैं, निश्चय ही किसान, मजदूर आदि के जीवन को समर्थ बनाकर गाँवों के विकास की गति को तीव्र किया जा सकता हैं.
अब सरकारी योजनाओं में गाँव को विशेष स्थान दिया जा रहा हैं. देश के दूर दराज इलाकों में अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, शौचालय के अवसर सुलभ करवाएं जा रहे हैं. इन्टरनेट के कारण गाँव भी अब दुनिया के पटल पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे हैं.
प्रधानमंत्री सड़क योजना एवं रेलवे प्रोजेक्ट से अब गाँवों को शहरों से जोड़ने के प्रयास किये जा रहे हैं. समय समय पर राज्य एवं केंद्र सरकारों द्वारा गाँवों के उत्थान के लिए स्कीम बनाई जा रही हैं.
पंचायती राज व्यवस्था के द्वारा गाँव के लोगों को ही उनकी योजना बनाने का अधिकार दिया जा रहा हैं. इस तरह प्रत्येक नागरिक, समाज व सरकार के समन्वित प्रयासों से आदर्श भारतीय गाँवों की नई रूपरेखा तैयार की जा सकेगी.
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