भारत अमेरिका संबंध पर निबंध | essay on Indo American relationship in hindi: नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत है भारत अमेरिका संबंध आर्टिकल के माध्यम से आप यह जानेंगे भारत और अमेरिका के संबंध शुरू से लेकर आज तक किस तरह उन में उतार-चढ़ाव आए कौन सी परिस्थितियां जिम्मेदार रही.
भारत और अमेरिका के बीच सहयोग और टकराव के क्या कारण रहे जैसे प्रश्नों के जवाब आप इस आर्टिकल के माध्यम से जान पाएंगे हो सकता है कुछ तथ्यात्मक जानकारी उपलब्ध ना हो परंतु यह आर्टिकल पढ़ने के बाद आपकी समझ उस स्तर पर पहुंच जाएगी कि आप भारत और अमेरिका के मध्य संबंधों बदलते परिपेक्ष्य तथा विश्व राजनीति में इनके असर को भलीभांति जान सकेंगे
भारतीय विदेश नीति के जनक प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू माने जाते हैं जब देश स्वतंत्र हुआ तब विश्व दो प्रतिस्पर्धी गुटों के द्वारा शीत युद्ध की आगोश में था.
भारत अमेरिका संबंध पर निबंध | essay on Indo American relationship in hindi
भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच संबंध स्वतंत्रता आंदोलन के समय से चले आ रहे हैं और 1947 में भारत को यूनाइटेड किंगडम से आजाद होने के बाद भी जारी हैं। इन संबंधों ने आतंकवाद और चीन के प्रभाव जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर सहयोग का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया है।
1954 में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने पाकिस्तान को केंद्रीय संधि संगठन (CENTO) का सहयोगी बनाया, जिसके परिणामस्वरूप भारत ने सोवियत संघ के साथ रणनीतिक और सैन्य संबंध बनाए। 1961 में, भारत शीत युद्ध में अमेरिका या यूएसएसआर के साथ गठबंधन करने से परहेज करने के लिए गुटनिरपेक्ष आंदोलन का संस्थापक सदस्य बन गया।
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान, पाकिस्तान के लिए निक्सन प्रशासन के समर्थन ने 1991 में सोवियत संघ के विघटन तक संबंधों को प्रभावित किया। वर्तमान में, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच घनिष्ठ संबंध हैं और वे द क्वाड और I2U2 ग्रुप जैसे बहुपक्षीय समूहों के साथ अपना सहयोग भी बढ़ा रहे हैं।
भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच घनिष्ठ संबंध बढ़ते जा रहे हैं और ये संबंध दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण हैं।
भारतीय उपमहाद्वीप में फ्रांस और ब्रिटेन के बीच की यह महत्वपूर्ण घटनाएँ इतिहास के महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं। 1778 में फ्रांस ने ब्रिटेन के खिलाफ युद्ध की घोषणा की और इससे भारत में एक महत्वपूर्ण लड़ाई का आरंभ हुआ। इस युद्ध के दौरान मैसूर साम्राज्य के सुल्तान हैदर अली ने फ्रांस के साथ सहयोग किया और एक क्रांतिकारी युद्ध में भाग लिया।
मैसूर साम्राज्य के और फ्रेंको-मैसूरियन सेनाओं के मिलकर कई अभियानों में लड़ाई लड़ी, जिसमें पश्चिमी और दक्षिणी भारत के कई स्थानों पर अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष था।
इस संघर्ष के परिणामस्वरूप, 1783 में संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन के बीच पेरिस की संधि हस्ताक्षर की गई, जिससे अमेरिकी क्रांतिकारी युद्ध समाप्त हुआ। इस संधि के बाद, ब्रिटेन ने फ्रांस को पांडिचेरी वापस कर दिया और कुडालोर को अंग्रेजों को वापस कर दिया।
इस प्रकार, भारतीय उपमहाद्वीप में फ्रांस और ब्रिटेन के बीच के संघर्ष ने इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखा और अमेरिकी क्रांति के साथ-साथ इस क्षेत्र के इतिहास को भी प्रभावित किया।
भारत और अमेरिका में समानता ओं की बात करें तो दोनों देश बड़े लोकतांत्रिक देश हैं दोनों ही देश पर निरपेक्षता पर बल देते हैं यहां व्यक्ति की स्वतंत्रता तथा प्रेस की स्वतंत्रता कानून का शासन इत्यादि वे कारक हैं जो दोनों देशों में लगभग समान है.
भारतीय विदेश नीति के जनक प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू माने जाते हैं जब देश स्वतंत्र हुआ तब विश्व दो प्रतिस्पर्धी गुटों के द्वारा शीत युद्ध की आगोश में था.
शीतयुद्ध प्रत्यक्ष संघर्ष ना होकर विचारों की लड़ाई थी जिसमें अमेरिका ने सोवियत संघ के प्रभाव को रोकने के लिए जहां सैनिक संगठन के रूप में नाटो की स्थापना की वही आर्थिक रूप से पश्चिमी यूरोप के देशों को अपने पक्ष में लाने के लिए मार्शल योजना की नीति का अनुसरण किया.
इस प्रारंभिक दौर में भारत और अमेरिका के संबंध ट ज्यादा मजबूत नहीं रहे इसके कई कारण थे जिनमें प्रमुख कारण भारत द्वारा गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व करना भारत ने 1949 ईस्वी में साम्यवादी चीन को मान्यता दी जो अमेरिका विरोधी रुक माना जाता है.
अमेरिका दक्षिण एशिया में एक ऐसे मित्र की तलाश में था जो उसके लिए सैनिक अड्डे बनाने के लिए भूभाग प्रदान करें तथा सभी पक्षों पर उसके साथ खड़ा रहे उसी तलाश में अमेरिका ने 1954 में पाकिस्तान को सेंटो और सीटो जैसी संधियों में शामिल किया और पाकिस्तान को हथियार आर्थिक सहायता प्रदान की जिनका प्रयोग पाकिस्तान भारत के विरुद्ध करता रहा जिसके कारण भारत और अमेरिका के संबंधों में कड़वाहट आई.
भारत और अमेरिका के बीच संबंध मजबूत होने का दौर चीन के युद्ध 1962 से हुआ चीन सोवियत संघ का सदस्य था और उसने जब भारत पर आक्रमण किया तो अमेरिका ने इस युद्ध में भारत का साथ दिया लेकिन यह संबंध ज्यादा दिनों तक स्थाई नहीं रह सके क्योंकि 1965 तथा 1971 में पाकिस्तान के साथ लड़े गए युद्ध में अमेरिका ने पाकिस्तान का खुलकर साथ दिया.
इस प्रारंभिक दौर में भारत और अमेरिका के संबंध ट ज्यादा मजबूत नहीं रहे इसके कई कारण थे जिनमें प्रमुख कारण भारत द्वारा गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व करना भारत ने 1949 ईस्वी में साम्यवादी चीन को मान्यता दी जो अमेरिका विरोधी रुक माना जाता है.
अमेरिका दक्षिण एशिया में एक ऐसे मित्र की तलाश में था जो उसके लिए सैनिक अड्डे बनाने के लिए भूभाग प्रदान करें तथा सभी पक्षों पर उसके साथ खड़ा रहे उसी तलाश में अमेरिका ने 1954 में पाकिस्तान को सेंटो और सीटो जैसी संधियों में शामिल किया और पाकिस्तान को हथियार आर्थिक सहायता प्रदान की जिनका प्रयोग पाकिस्तान भारत के विरुद्ध करता रहा जिसके कारण भारत और अमेरिका के संबंधों में कड़वाहट आई.
भारत और अमेरिका के बीच संबंध मजबूत होने का दौर चीन के युद्ध 1962 से हुआ चीन सोवियत संघ का सदस्य था और उसने जब भारत पर आक्रमण किया तो अमेरिका ने इस युद्ध में भारत का साथ दिया लेकिन यह संबंध ज्यादा दिनों तक स्थाई नहीं रह सके क्योंकि 1965 तथा 1971 में पाकिस्तान के साथ लड़े गए युद्ध में अमेरिका ने पाकिस्तान का खुलकर साथ दिया.
जिसके कारण भारत को मजबूर होकर रूस के साथ 20 वर्षीय मैत्री संधि करनी पड़ी जिसके कारण भारत और अमेरिका की दूरियां और अधिक बढ़ गई इसके तुरंत ही बाद भारत ने 1974 में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया जिसके बाद अमेरिका ने भारत पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए.
अमेरिका की नाराजगी का एक और कारण भारत अफगानिस्तान के मुद्दे पर सोवियत संघ का विरोध ना करना भी था दरअसल 1979 में जब अफगानिस्तान में सोवियत संघ ने हस्तक्षेप किया तब भारत ने सोवियत संघ के विरुद्ध आवाज नहीं उठाई अमेरिका का आरोप था कि जब अमेरिका इस तरह किसी देश में हस्तक्षेप करता है तो भारत विश्व के मंचों पर इसका विरोध करता है लेकिन आज वही भारत ने चुप्पी साध रखी है.
शीत युद्ध के अंतिम दौर में भारत ने अपनी विदेश नीति में परिवर्तन करने की ओर कदम बढ़ाएं क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी इसी दौर में भारत ने अपनी विदेश रक्षा स्वास्थ्य आर्थिक शिक्षा इत्यादि की नवीन नीतियां लागू करने पर बल दिया भारत ने अपने बाजार को विश्व के लिए खोलने की ओर कदम बढ़ाएं जिसको 1990 तक आते-आते पूर्ण कर लिया इसे वैश्वीकरण उदारीकरण के नाम से जाना जाता है.
वैश्वीकरण की प्रक्रिया के बाद भारत एक बड़े बाजार के रूप में उभरा लेकिन उस समय अमेरिका भी विश्व की एकमात्र विश्व शक्ति के रूप में स्थापित हो चुका था और वह भारत विरोधी गतिविधियां अपनाए हुए था
अमेरिका की नाराजगी का एक और कारण भारत अफगानिस्तान के मुद्दे पर सोवियत संघ का विरोध ना करना भी था दरअसल 1979 में जब अफगानिस्तान में सोवियत संघ ने हस्तक्षेप किया तब भारत ने सोवियत संघ के विरुद्ध आवाज नहीं उठाई अमेरिका का आरोप था कि जब अमेरिका इस तरह किसी देश में हस्तक्षेप करता है तो भारत विश्व के मंचों पर इसका विरोध करता है लेकिन आज वही भारत ने चुप्पी साध रखी है.
शीत युद्ध के अंतिम दौर में भारत ने अपनी विदेश नीति में परिवर्तन करने की ओर कदम बढ़ाएं क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी इसी दौर में भारत ने अपनी विदेश रक्षा स्वास्थ्य आर्थिक शिक्षा इत्यादि की नवीन नीतियां लागू करने पर बल दिया भारत ने अपने बाजार को विश्व के लिए खोलने की ओर कदम बढ़ाएं जिसको 1990 तक आते-आते पूर्ण कर लिया इसे वैश्वीकरण उदारीकरण के नाम से जाना जाता है.
वैश्वीकरण की प्रक्रिया के बाद भारत एक बड़े बाजार के रूप में उभरा लेकिन उस समय अमेरिका भी विश्व की एकमात्र विश्व शक्ति के रूप में स्थापित हो चुका था और वह भारत विरोधी गतिविधियां अपनाए हुए था
जिसका कारण भारत का परमाणु मिसाइल कार्यक्रम तथा भारत द्वारा परमाणु नियंत्रण संधि पर हस्ताक्षर नहीं करना बताएं जाते हैं इसी दौर में अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ संबंधों को मजबूती दी चाहे वह सैन्य क्षेत्र में हो या आर्थिक क्षेत्र में.
वैश्वीकरण के बाद भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में मजबूती से अर्थव्यवस्था ने अपने पैर जमाने शुरू किए 2001 में आतंकवादी घटना के बाद अमेरिका बोखला गया तथा उसे पाकिस्तान के साथ मजबूत संबंध रखने उसे आर्थिक सहायता देने के मायने समझ में आए तथा अब अमेरिका को एशिया में ऐसे देश की तलाश थी जो आतंकवाद का विरोध करता हो.
वैश्वीकरण के बाद भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में मजबूती से अर्थव्यवस्था ने अपने पैर जमाने शुरू किए 2001 में आतंकवादी घटना के बाद अमेरिका बोखला गया तथा उसे पाकिस्तान के साथ मजबूत संबंध रखने उसे आर्थिक सहायता देने के मायने समझ में आए तथा अब अमेरिका को एशिया में ऐसे देश की तलाश थी जो आतंकवाद का विरोध करता हो.
आर्थिक रूप से चीन को टक्कर दे सकने में समर्थ हो तथा एक बड़ा बाजार जो अमेरिकी उत्पादों के निर्यात में सहायक हो और इन सब अमेरिकी आवश्यकताएं भारत पूरी कर सकता था जिसके कारण अमेरिका ने रिश्तो का नया दौर शुरू करने की ओर कदम बढ़ाएं.
जिसका भारत ने स्वागत किया वही 1990 से 2000 तक भारत अपनी आंतरिक समस्याओं से अस्थिरता से आंतरिक मुद्दों तक ही सीमित रहा वैश्विक हस्तक्षेप कम ही रहा.
इस प्रकार भारत अमेरिका संबंधों का नेहरू युग इंदिरा युग तथा उसके बाद वैश्वीकरण का दौर मे संबंध ज्यादा स्थाई या मधुर नहीं रहे.
भारत अमेरिका संबंधों का नया दौर 2000 के बाद से शुरू हुआ जहां भारत एक बड़े बाजार के रूप में उभर कर सामने आया तो दूसरी तरफ भारत अपने राजनीतिक आर्थिक और कूटनीतिक स्तर पर व्यापक सुधार करके एक बड़ी महाशक्ति की ओर अग्रसर हुआ.
इस प्रकार भारत अमेरिका संबंधों का नेहरू युग इंदिरा युग तथा उसके बाद वैश्वीकरण का दौर मे संबंध ज्यादा स्थाई या मधुर नहीं रहे.
भारत अमेरिका संबंधों का नया दौर 2000 के बाद से शुरू हुआ जहां भारत एक बड़े बाजार के रूप में उभर कर सामने आया तो दूसरी तरफ भारत अपने राजनीतिक आर्थिक और कूटनीतिक स्तर पर व्यापक सुधार करके एक बड़ी महाशक्ति की ओर अग्रसर हुआ.
इस दौर में अमेरिका का सबसे बड़ा प्रतिस्पर्धी चीन बना जिसको भारत न केवल कड़ी टक्कर दे सकता था बल्कि अमेरिका अपने हितों को भारत के माध्यम से संपूर्ण विश्व में पूरा कर सकता था जिसके कारण अमेरिका ने भारत की ओर अपने कदम तेजी के साथ बढ़ाएं.
इसी दौर में आतंकवाद एक बड़ा मुद्दा बना जिसके चलते भारत और अमेरिका के बीच 2008 में रक्षा समझौते हुए इसी वर्ष भारत और अमेरिका के मध्य व्यापारिक समझौते भी संपन्न हुए और भारत अमेरिका के संबंध अब तक के सबसे सर्वोच्च स्तर पर थे.
2008 नहीं अमेरिका ने भारत पर लगाए हुए प्रतिबंध हटा दिए जिसके बाद भारत परमाणु ईंधन अमेरिका से खरीद सकता था 2010 में ऊर्जा संसाधन के क्षेत्र में भी समझौते हुए 2013 में आतंकवाद की रोकथाम और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में दोनों देशों के मध्य कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए.
2014 में भारत में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सरकार बनी जो पूर्ण रूप से राष्ट्रवाद पर बल देते हैं तथा बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत और अमेरिका के मध्य कई टकराव के बिंदु भी उभर कर सामने आए
वर्तमान में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनावी प्रचार में यह घोषणा की कि यदि राष्ट्रपति निर्वाचित होकर आते हैं तो वे H1B वीजा को समाप्त कर देंगे यह एक खास प्रकार का वीजा है.
2014 में भारत में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सरकार बनी जो पूर्ण रूप से राष्ट्रवाद पर बल देते हैं तथा बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत और अमेरिका के मध्य कई टकराव के बिंदु भी उभर कर सामने आए
वर्तमान में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनावी प्रचार में यह घोषणा की कि यदि राष्ट्रपति निर्वाचित होकर आते हैं तो वे H1B वीजा को समाप्त कर देंगे यह एक खास प्रकार का वीजा है.
जिसमें वीजा धारक को 6 साल के लिए अमेरिका में ऐसे काम करने की अनुमति मिल जाती है जिसकी योग्यता अमेरिकी कंपनियों के पास लगभग नहीं होती एक रिपोर्ट के अनुसार इस वीजा के तहत तीन लाख भारतीय अमेरिका में वर्तमान में कार्यरत है.
इस वीजा का अमेरिका नागरिकों द्वारा इसलिए विरोध किया गया उनका मानना है कि भारत के लोग अमेरिका में आकर उनसे उनके रोजगार के अवसर है छीन लेंगे राष्ट्रपति बनने के बाद तुमने एक तो वीजा बनाने पर रोक लगा दी बहुत ही सीमित संख्या में वीजा बन रहे हैं दूसरा वीजा बनाने की फीस को कई गुना बढ़ा दिया इस मुद्दे को भारत कई बार उठाता है और इसमें संशोधन की मांग करता है.
दूसरी और अमेरिका भी भारत पर यह आरोप लगाता है कि भारत अपने बाजार में अमेरिकी उत्पादों की बिक्री को हतोत्साहित कर रहा है जबकि भारत का मानना है कि हमारे यहां इन करों की दर अन्य एशियाई देशों की तुलना में काफी ज्यादा कम है यदि आमीन को और ज्यादा कम करेंगे तो हमारे घरेलू उत्पाद को नुकसान उठाना पड़ेगा जिससे रोजगार के अवसर कम हो जाएंगे.
वर्तमान में रक्षा क्षेत्र में इस्लामिक स्टेट में आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के लिए भारत और अमेरिका दोनों एक मंच पर आ रहे हैं.
संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में भारत की ओर से स्थाई सदस्यता की मांग लंबे समय से की जा रही है वर्तमान में अमेरिका भी भारत को स्थाई सदस्य बनाने के पक्ष में है. हाल ही में अमेरिका में संपन्न हाउ डी मोदी कार्यक्रम दोनों देशों के मजबूत संबंधों तथा भविष्य में नए आयामों को स्थापित करते हुए इन संबंधों को एक नई दिशा देने की ओर संकेत करता है.
इस वीजा का अमेरिका नागरिकों द्वारा इसलिए विरोध किया गया उनका मानना है कि भारत के लोग अमेरिका में आकर उनसे उनके रोजगार के अवसर है छीन लेंगे राष्ट्रपति बनने के बाद तुमने एक तो वीजा बनाने पर रोक लगा दी बहुत ही सीमित संख्या में वीजा बन रहे हैं दूसरा वीजा बनाने की फीस को कई गुना बढ़ा दिया इस मुद्दे को भारत कई बार उठाता है और इसमें संशोधन की मांग करता है.
दूसरी और अमेरिका भी भारत पर यह आरोप लगाता है कि भारत अपने बाजार में अमेरिकी उत्पादों की बिक्री को हतोत्साहित कर रहा है जबकि भारत का मानना है कि हमारे यहां इन करों की दर अन्य एशियाई देशों की तुलना में काफी ज्यादा कम है यदि आमीन को और ज्यादा कम करेंगे तो हमारे घरेलू उत्पाद को नुकसान उठाना पड़ेगा जिससे रोजगार के अवसर कम हो जाएंगे.
वर्तमान में रक्षा क्षेत्र में इस्लामिक स्टेट में आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के लिए भारत और अमेरिका दोनों एक मंच पर आ रहे हैं.
संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में भारत की ओर से स्थाई सदस्यता की मांग लंबे समय से की जा रही है वर्तमान में अमेरिका भी भारत को स्थाई सदस्य बनाने के पक्ष में है. हाल ही में अमेरिका में संपन्न हाउ डी मोदी कार्यक्रम दोनों देशों के मजबूत संबंधों तथा भविष्य में नए आयामों को स्थापित करते हुए इन संबंधों को एक नई दिशा देने की ओर संकेत करता है.