यदि मैं प्रधानाचार्य होता पर निबंध Essay On If I Were the Principal In Hindi
शिक्षा को मानव की मूलभूत आवश्यकताओं में शामिल किया जाता है। शिक्षा के केंद्र विद्यालय महाविद्यालय तथा यूनिवर्सिटी होते हैं। शिक्षा के केंद्रों पर पढ़ाई बेहतरीन तरीके से हो इसके लिए अनुकूल वातावरण का पाया जाना अनिवार्य हो जाता है।
वर्तमान में स्कूलों के वातावरण को बिगाड़ने में प्रमुख भूमिका राज नेताओं का हस्तक्षेप है जिसके कारण गुरुजनों में उदासीनता देखने को मिलती है. इन सबका दुष्प्रभाव छात्रों पर पड़ता है जिससे शिक्षण स्तर में लगातार कमी देखी जा रही है।
विद्यालय में सबसे महत्वपूर्ण पद प्रधानाचार्य का होता है प्रधानाचार्य ही वह व्यक्ति है जो स्कूल की शैक्षणिक तथा गैर शैक्षणिक संपूर्ण गतिविधियों को नियंत्रित तथा समन्वित करता है. विभिन्न प्रकार के उत्तरदायित्व के लिए अंतिम रूप से प्रधानाचार्य ही जिम्मेदार होता है.
स्कूल में संपूर्ण शिक्षण व्यवस्था की योजना बनाने का उत्तरदायित्व भी प्रधानाचार्य का होता है। प्रधानाचार्य का प्रमुख दायित्व स्कूल का संचालन बेहतरीन तरीके से करना है। यदि मैं प्रधानाचार्य होता तो अपने कर्तव्यों का पालन निष्ठा के साथ करता जिससे विद्यालय का संचालन बेहतरीन होता।
विद्यार्थी के जीवन में अनुशासन का महत्व सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है। इसलिए यदि मैं प्रधानाचार्य होता तो सबसे पहले अनुशासन पर ध्यान देता मैं भी अनुशासन में रहता और छात्रों को अनुशासन में रहने के लिए प्रेरित करता.
अनुशासन शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए आवश्यक तत्व है। विद्यालय के अन्य शिक्षक तथा कर्मचारियों से भी मैं अनुशासन में रहने की अपील करता. विद्यालय के गुरुजनों तथा विद्यार्थियों से समय पर आने तथा समय पर जाने के लिए कहता तथा सभी प्रकार की विद्यालय गतिविधियों को अनुशासित रूप से संचालित करने का प्रयास करता.
यदि मैं प्रधानाचार्य होता तो दूसरा प्रमुख कार्य शिक्षा के स्तर में सुधार के लिए करता। विद्यार्थियों की शिक्षण प्रक्रिया का उचित निरीक्षण तथा मार्गदर्शन करता.
यदि मैं प्रधानाचार्य होता तो शिक्षकों को भी प्रतिदिन नया सीखने के लिए कहता। उन्हें कुछ नवीन किताबें भी पढ़ने के लिए देता। क्योंकि वहीं शिक्षक अच्छे से पढ़ा सकता है जो प्रतिदिन स्वयं पढ़कर पढ़ाने के लिए जाता है। साथ ही साथ रेगुलर अपडेट होने वाला शिक्षक विद्यार्थियों का सही ढंग से और उपयुक्त मार्गदर्शन भी कर सकता है।
यदि मैं प्रधानाचार्य होता तो मैं भी कक्षाओं में पढ़ाने के लिए जाता तथा सभी विद्यार्थियों की रूचि के अनुसार पढ़ाने का प्रयास करता ।
यदि मैं प्रधानाचार्य होता तो अभिभावकों से समय-समय पर बातचीत करता . उनसे मिलता उन्हें पता बताता कि आपता कि आपके बच्चों की क्या कमियां है. खूबियां क्या है. किस तरह से पढ़ रहे हैं. किन क्षेत्रों में ज्यादा रूचि ले रहे हैं.अभिभावकों से बच्चों के स्कूल समय के बाद के व्यवहार की जानकारी भी प्राप्त करता.
मैं स्कूल में शिक्षा के साथ-साथ खेलकूद तथा मनोरंजन की गतिविधियों का संचालन भी करवाता, जैसे -स्काउट गाइड ,रेड क्रॉस, एनसीसी तथा विभिन्न प्रकार के खेलों का आयोजन उस समय करवाता जब परीक्षाएं नजदीक ना होती.
मैं सभी विद्यार्थियों को बोलने का पूर्ण अवसर देता ताकि उनमें दबी हुई प्रतिभा निखर कर आए . विभिन्न काव्यात्मक प्रतियोगिताओं का आयोजन कराता.
विद्यार्थियों की सर्जनशीलता पर विशेष रूप से ध्यान देता. प्रत्येक विद्यार्थी की रूचि को जानने का प्रयास करता . महापुरुषों के जीवन पर गोष्ठियों का आयोजन करवा कर सभी विद्यार्थियों को अपनी अपनी रुचि विभिन्न वाद विवाद पेंटिंग्स निबंध लेखन जैसी प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए प्रेरित करता.
बालकों के सर्वांगीण विकास के लिए हर संभव प्रयास करता. क्योंकि विद्यार्थी का योगदान राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण है।
यदि मैं प्रधानाचार्य होता तो विद्यालय की पत्रिका प्रतिवर्ष बदलते समय के अनुसार प्रकाशित करवाता. तथा इस विद्यालय की पत्रिका में विद्यार्थियों की सुरक्षित रचनाओं को अधिक से अधिक शामिल करने की कोशिश करता.
यदि मैं प्रधानाचार्य होता तो मेरा मूल कर्तव्य में इस बात में समझता कि मेरा प्रत्येक विद्यार्थी उच्च संस्कारवान हो. उनमें देश प्रेम का विकास हो. राष्ट्रीय एकता और अखंडता जैसी भावनाओं के विकास के लिए प्रयास करता. विद्यार्थियों को नशे से दूर रखने का प्रयास करता उसके नुकसान बताता. धर्म जाति इत्यादि के आधारों पर किए जाने वाले भेदभाव के प्रति विद्यार्थियों को जागृत करता. सर्वधर्म समभाव और वसुदेव कुटुंबकम जैसी भावनाओं का विकास करता. मैं विद्यार्थियों को ऐसा वातावरण प्रदान करने का प्रयास करता जिसमें विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास संभव हो .
मैं विद्यार्थियों को उनके मूल अधिकारों की जानकारी देता. मूल कर्तव्यों के पालन के लिए प्रेरित करता.
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि विद्यालय के प्रधानाचार्य के पास वह अवसर होता है जिसके द्वारा वह शिक्षा के क्षेत्र में नई क्रांति का आगाज कर सकता है.
प्रधानाचार्य शिक्षाविद् तथा बाल मनोविज्ञान को समझने वाला होना चाहिए. प्रधानाचार्य उपरोक्त गुणों के द्वारा शिक्षा के स्तर को ऊपर उठा सकता है। एक अच्छा प्रधानाचार्य वही होता है जो अपने विद्यालय को एक नई पहचान दे देता है।
यदि मैं प्रधानाचार्य होता तो पूर्ण निष्ठा के साथ कर्तव्यों का पालन करते हुए अपने त्याग अध्ययन तथा कठोर परिश्रम के द्वारा हर संभव प्रयास रहता कि विद्यालय में शिक्षा का स्तर दिनोंदिन उच्चता की ओर बढ़े. सभी विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित हो. शैक्षणिक गतिविधियां बेहतर संचालित हो. शैक्षणिक गतिविधियों के साथ-साथ अन्यत्र गतिविधियों में खेलकूद तथा विभिन्न कार्यक्रमों, समारोह, प्रतियोगिताओं का आयोजन करवाता.
इस प्रकार यदि मैं प्रधानाचार्य होता तो विद्यालय को वास्तविक अर्थों में शिक्षा का केंद्र बनाने का हर संभव प्रयास करता और बनाकर रहता.
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