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भाषा का महत्व पर निबंध | Essay On Importance Of Language In Hindi

भाषा का महत्व पर निबंध Essay On Importance Of Language In Hindi- नमस्कार दोस्तों स्वागत है, आपका आज के हमारे आर्टिकल में आज हम भावो को प्रकट करने के माध्यम भाषा के हमारे जीवन में महत्व के बारे में आज के आर्टिकल में विस्तार से जानने का प्रयास करेंगे.

भाषा का महत्व पर निबंध Essay On Importance Of Language In Hindi

भाषा का महत्व पर निबंध Essay On Importance Of Language In Hindi

अपने मन के अंदर चल रहे विचारों को लोगों के सामने प्रस्तुत करने का सबसे मुख्य जरिया हमारी भाषा ही है। हमारी भाषा हमारे मुंह से निकलने वाले शब्दों का समूह होता है जिसके द्वारा हम अपने अंदर मौजूद बातें अन्य लोगों को बता सकते हैं।


भाषा वह माध्यम है, जिसके द्वारा हम अपने विचार और भावनाओं को अभिव्यक्ति कर सकते है। व्यक्ति की भाषा और बोलने का रवैया उसके चरित्र का निर्धारक माना जाता है।


भाषा विचार को लिखित माध्यम में अभिव्यक्त करने का जरिया है। भाषा में मातृभाषा और राजभाषा या राष्ट्रीय भाषा के रूप में इसे बांट सकते है। जो भाषा माता द्वारा सिखाई जाती है, वो मातृभाषा कहलाती है।


भाषा के द्वारा ही हम किसी भी व्यक्ति के सामने अथवा किसी समाज विशेष के सामने अपने विचारों को प्रकट कर सकते हैं।


इस दुनिया में हजारों भाषाएं बोली पढ़ी और समझी जाती है परंतु जिस भाषा को हमारी पीढ़ियां बोलती आती है उसे हमारी मातृभाषा कहा जाता है


और अधिकतर लोग अपनी मातृभाषा से अत्यधिक प्रेम करते हैं और वह अपने घर में अथवा अपने समाज के बीच में अपनी मातृभाषा का ही इस्तेमाल करते हैं जिसे की अंग्रेजी में मदर टंग कहा जाता है।


अपनी मातृभाषा से तो हर व्यक्ति बचपन से ही परिचित होता है परंतु व्यक्ति को दूसरे समाज की भाषा अथवा दूसरे किसी देश की भाषा जल्दी समझ में नहीं आती है। हालांकि व्यक्ति अगर थोड़ा सा प्रयास करें तो वह दूसरे समाज की भाषा भी अवश्य ही सीख सकता है।


दुनिया के वैज्ञानिकों के द्वारा भाषाओं को अलग-अलग शाखा में बांटा गया है। जैसे कि हिंदी भाषा को वैज्ञानिकों ने भारतीय आर्य भाषा की शाखा बताया हुआ है और हिंदी भाषा के अंतर्गत जो अवधि, बुंदेलखंडी या फिर ब्रजभाषा आती है


यह सभी हिंदी भाषा की उप भाषाएं हैं अर्थात आप इस प्रकार से भी समझ सकते हैं की अवधि, बुंदेली और ब्रजभाषा की माता खड़ी हिंदी भाषा ही है। कभी कबार दो अलग-अलग भाषाओं में भी काफी समानता होती है और उनके शब्दों का एक जैसा ही मतलब होता है।


जो भाषाए किसी निश्चित इलाके तक बोली जाती हैं उन्हें स्थानीय भाषा कहा जाता है और हमारे भारत देश में हर 50 किलोमीटर पर भाषाएं बदलती रहती है।


किसी जगह पर हमें अवधी भाषा बोलने वाले लोग प्राप्त होते हैं तो 50-100 किलोमीटर आगे जाने पर हमें बुंदेलखंडी भाषा बोलने वाले लोग मिलते हैं। 


अलग-अलग भाषाओं के अपने-अपने व्याकरण मौजूद होते हैं जिनमें उन भाषाओं के विभिन्न शब्दों का अर्थ ऐसी भाषाओं में बताया जाता है.


जो भाषा अधिकतर लोग बोल, पढ अथवा समझ सकते हैं। भाषाओं के द्वारा विभिन्न प्रकार के ग्रंथों का और किताबों का निर्माण किया गया है।


मनुष्य के द्वारा करोड़ों साल पहले ही भाषा के महत्व को पहचान लिया गया था और इसीलिए मनुष्य के द्वारा लगातार भाषा का विकास किया जा रहा है।


जिस प्रकार से इंसानी सभ्यता का विकास हो रहा है उसी प्रकार से भाषा का भी विकास हो रहा है। यही वजह है कि लगातार भाषा में बदलाव भी हो रहे हैं।


सामान्य तौर पर भाषा अपने विचारों का आदान प्रदान करने का एक जरिया होता है। भाषा के बिना मनुष्य अपूर्ण होता है।


भाषा विभिन्न प्रकार की लिपियों में लिखी जाती है जबकि नेपाली, संस्कृत, मराठी, हिंदी इत्यादि भाषाएं देवनागरी लिपि में लिखी जाती है। हमारी जो भाषा होती है उसमें ही हमारे विचार, हमारी जाति, राज्य, वर्ग झलकती है।


समाज में रहते हुए अन्य लोगों के साथ बातचीत करने के लिए अथवा अपने विचारों को प्रकट करने के लिए हमारी भाषा बहुत ही महत्वपूर्ण जरिया होती है।


यह भाषा का ही असर है कि हमारी जैसी ही भाषा बोलने वाले अन्य व्यक्ति के साथ हम काफी तेजी के साथ घुलमिल जाते हैं वही जो व्यक्ति हमारी भाषा के अलावा कोई अन्य भाषा बोलता है उसके साथ घुलने मिलने में हमें थोड़ा सा अधिक समय लग जाता है।


यह भाषा का ही प्रभाव है कि लाखों साल पहले लिखे गए वेद, उपनिषद, पुराण जैसे ग्रंथ आज तक सुरक्षित हैं और आज लोग उन्हें पढ़ने के लिए लालायित हो रहे हैं।


सभी इतिहासकारों के द्वारा और साहित्यकारों के द्वारा पाठकों और श्रोताओं की संभावनाओं के साथ एकाकार करने में सक्षम हो, ऐसी भाषा को ही आधार बनाया गया है।