Essay on Raja Ram Mohan Roy in Hindi - राजा राममोहन राय पर निबंध: दोस्तों आपका हम स्वागत करते हैं. आज का हमारा निबंध ब्रह्म समाज के संस्थापक एवं पुनर्जागरण से भारत में अलख जगाने वाले समाज सुधारक राजा राममोहन राय के जीवन पर हैं. आज के निबंध में हम राजा राममोहन राय के जीवन परिचय, जीवनी, इतिहास, योगदान, पुस्तकें आदि के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे.
22 मई सन् 1772 को राधानगर बिहार में राजा राम मोहन राय जी का जन्म हुआ था. विद्यार्थी काल से ही समाज सुधार तथा समाज की समस्याओं की तरफ उनका गहरा रुझान था. बहुविवाह एवं बालविवाह का सबसे पहले इन्होने जमकर प्रतिरोध किया.
उनका वैवाहिक जीवन काफी कठिनाइयों में व्यतीत हुए. राजाराम मोहन राय ने तीन विवाह किये, दुर्भाग्य से उनकी दो पत्नियों का पूर्व में उनका देहांत हो गया था. मोहन राय ने अपने करियर की शुरुआत ईस्ट इंडिया कम्पनी में राजस्व महकमे के एक कर्मचारी के रूप में किया.
सन् 1809 में कलेक्टर के दीवान बने तथा यहाँ उनकी मुलाक़ात कई धर्म से जुड़े विद्वानों से हुई. कई संगोष्ठी के बाद उन्होंने ब्रह्म समाज की स्थापना की. वर्ष 1812 में उन्ही के प्रयासों से भारत के इतिहास में पहली बार सती प्रथा को अवैधानिक घोषित कर दिया था.
Essay on Raja Ram Mohan Roy in Hindi
19 वीं शताब्दी में पाश्चात्य देशों के सम्पर्क में आने के कारण भारत में पुनर्जागरण का सूत्रपात हुआ. जिसके परिणामस्वरूप धार्मिक एवं सामाजिक क्षेत्रों में अनेक सुधारात्मक आंदोलन प्रारम्भ हुए.
इस दिशा में सर्वप्रथम राजा राममोहन राय ने ब्रह्म समाज की स्थापना करके देशवासियों के अज्ञान तथा आडम्बरो को दूर करने का प्रयत्न किया. राजाराम एक महान समाज सुधारक तथा समाजसेवी थे, जिन्होंने कई सराहनीय कार्य किये.
राजा राममोहन राय ने धार्मिक, सामाजिक एवं साहित्यिक सभी क्षेत्रों में तर्कसंगत तथा नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया और ऐसी विचारधारा का प्रसार किया, जिसमें आधुनिक भारत का निर्माण हुआ.
राजा राममोहन राय एक धर्म सुधारक एवं समाज सुधारक- राजा राममोहन राय केवल एक धर्म सुधारक ही नहीं थे, बल्कि उन्होंने सामाजिक और शिक्षा सम्बन्धी सुधारों के लिए कठिन परिश्रम किया.
Essay on Raja Ram Mohan Roy in Hindi - राजा राममोहन राय पर निबंध
राजा राममोहन राय ने धार्मिक, सामाजिक, शैक्षिक आदि क्षेत्रों में उन सुधारों के लिए कार्य किया, जिनसे आधुनिक स्वस्थ भारत का निर्माण हुआ.
धार्मिक सुधार
सभी धर्मों की एकता में विश्वास- राजा राममोहन राय सभी धर्मों को आदर की दृष्टि से देखते थे. वे किसी धर्म के प्रति कोई द्वेष नहीं रखते थे. वह वास्तव में मौलिक सत्य एवं सभी धर्मों की एकता में विश्वास करते थे.
हिन्दू धर्म को परिस्थतियों एवं आवश्यकताओं के अनुकूल बनाना- राजा राममोहन राय ने हिन्दू धर्म की मौलिकता को बनाए रखते हुए उसको भारतीय लोगों की नवीन आवश्यकताओं के अनुरूप बनाया.
उन्होंने ब्रह्म समाज की स्थापना की, जिसने हिन्दू धर्म की बुराइयों को दूर किया और वेदों और उपनिषदों की शिक्षाओं के आधार पर उसे एक ईश्वर की पूजा का आधार बनाया. इस प्रकार उन्होंने धर्म आधुनिक भारत की परिस्थतियों एवं आवश्यकताओं के अनुकूल बनाया.
हिन्दू धर्म को प्रगतिशील बनाने पर बल देना- राजा राममोहन राय हिन्दू धर्म की कुरीतियों को दूर करके उसे प्रगतिशील बनाना चाहते थे. अतः उन्होंने मूर्तिपूजा, बहुदेववाद, पुरोहितवाद आदि का विरोध किया और एकेश्वर वाद का प्रसार किया.
वे धार्मिक सहिष्णुता के प्रबल समर्थक थे और धार्मिक कट्टरता के विरोधी थे. उनके द्वारा स्थापित ब्रह्म समाज ने धार्मिक सहिष्णुता पर बल दिया.
ईसाइयत का विरोध करना- यदपि वे ईसाई धर्म से प्रभावित थे, परन्तु उन्होंने ईसाई धर्म की केवल श्रेष्ठ और व्यावहारिक शिक्षाओं को ही अपनाने पर बल दिया. राजा राममोहन राय ने ईसाई धर्म प्रचारकों की हिन्दू धर्म की आलोचना की प्रवृति की आलोचना की.
मूर्ति पूजा का विरोध- राजा राममोहन राय ने मूर्तिपूजा का घोर विरोध किया और कहा कि मूर्तिपूजा को वेदों और उपनिषदों में कोई मान्यता प्राप्त नहीं हैं. उनका कहना था कि मूर्तिपूजा ही हिन्दू समाज के समस्त दोषों का मूल कारण हैं.
सामाजिक सुधार
राजा राममोहन राय ने निम्नलिखित सामाजिक क्षेत्र में भी अनेक सुधार किये.
सती प्रथा का अंत- राजा राममोहन राय ने सामाजिक क्षेत्र में सबसे अधिक सुधार कार्य स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए किये. उन्होंने सती प्रथा जैसी अमानवीय प्रथा को समाप्त करने के लिए मंच तथा समाचार पत्र दोनों के माध्यम से प्रसार किया.
अंत में विलियम बैटिंक ने वर्ष 1829 ई में सती प्रथा पर प्रतिबन्ध लगा दिया. इस प्रतिबन्ध के विरोध स्वरूप रुढ़िवादी लोगों ने इंग्लैंड की प्रिवी काउंसिल में अपील की, लेकिन वहां यह अपील रद्द कर दी गयी. इस प्रकार सती प्रथा का अंत कराकर राजा राममोहन राय विश्व के समाज सुधारकों की प्रथम पंक्ति में आ गये.
बहुविवाह का विरोध- राजा राममोहन राय ने बहुविवाह के विरुद्ध आवाज उठाई जिससे धीरे धीरे इस प्रकार का वातावरण तैयार हुआ, जिससे बहुविवाह हतोत्साहित किये गये.
विधवा विवाह का समर्थन- राजा राममोहन राय ने देखा कि विधवाओं का पुनः विवाह करके उनकी सभी समस्याओं का समाधान हो सकता हैं. अतः उन्होंने विधवाओं के पुनर्विवाह की आवाज उठाई.
बाल विवाह का विरोध और अंतरजातीय विवाह की वकालत करके भी राजा राममोहन राय ने भारतीय नारियों की दशा सुधारने के लिए कार्य किया.
स्त्री शिक्षा की वकालत- राजा राममोहन राय ने लड़कियों तथा स्त्रियों की शिक्षा प्रसार के लिए पर्याप्त दृढ प्रयास किये.
स्त्रियों को पैतृक सम्पति के अधिकार के समर्थन में आवाज उठाने वाले राजा राममोहन राय पहले व्यक्ति थे, उन्होंने स्त्रियों को पैतृक सम्पति में उचित भाग दिए जाने पर बल दिया.
जाति प्रथा तथा ऊंच नीच के भेदभाव का विरोध- राजा राममोहन जाति प्रथा को भारतीय समाज के पतन के लिए उत्तरदायी मानते थे. अतः उन्होंने जाति प्रथा तथा ऊंच नीच के भेदभाव का विरोध किया तथा सामाजिक समानता पर बल दिया.
रूढ़ियों तथा परम्पराओं के अन्धानुकरण का विरोध- राजा राममोहन राय ने रूढ़ियों तथा परम्पराओं के अन्धानु करण का विरोध किया.
शिक्षा के क्षेत्र में सुधार
राजा राममोहन राय ने पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली का समर्थन किया. उन्होंने अंग्रेजी शिक्षा के अध्ययन पर बल दिया. वर्ष 1819 ई में पाश्चात्य शिक्षा को अपना समर्थन प्रदान करने के लिए कलकत्ता में हिन्दू कॉलेज की स्थापना की.
उनकी मान्यता थी कि अंग्रेजी भाषा के अध्ययन से भारतीयों का दृष्टिकोण उदार तथा विस्तृत होगा. राजा राममोहन राय ने वेदान्त कॉलेज तथा इंग्लिश स्कूल की भी स्थापना की. उन्होंने संवाद कौमुदी तथा मिरातुल समाचार पत्रों का भी प्रकाशन किया.
साहित्यिक क्षेत्र में उनकी देन- राजा राममोहन राय ने साहित्यिक क्षेत्र में भी अपना योगदान दिया. राजा राम मोहन राय ने बंगला. फ़ारसी, अंग्रेजी आदि भाषाओं में अनेक पुस्तकें लिखी और भारतीय साहित्य को सम्रद्ध बनाया.
उन्होंने फ़ारसी भाषा में तुह्फतूल मुवाहिदीन नामक पुस्तक लिखी. उन्होंने संक्षिप्त वेदांत नामक पुस्तक की रचना की और चार उपनिषदों केन, ईश्, मुण्डक तथा कठ का अनुवाद अंग्रेजी तथा बंगला दोनों भाषाओं में किया.
राजा राममोहन राय का मूल्यांकन
इस प्रकार राजा राममोहन राय ने धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा साहित्यिक क्षेत्र में अकथनीय सेवा की. राजा राममोहन राय को उपयुक्त रूप में ही एक नयें युग का अग्रदूत कहा गया हैं.
डॉ रामगोपाल शर्मा लिखते हैं कि राममोहन राय ने भारतीय इतिहास में एक नये युग का प्रवर्तन किया. उन्होंने हिन्दू समाज की कुरीतियों तथा अंधविश्वासों के विरुद्ध विद्रोह किया. उन्होंने भारत में न केवल सांस्कृतिक जागरण किये बल्कि राजनीतिक जागरण की भी पृष्टभूमि तैयार की.
राजा राम मोहन राय की जयंती
राजाराम मोहन राय को आधुनिक भारत के जनक कहा जाता हैं. 22 मई को राजा राम मोहन राय की जयंती मनाई जानी हैं. आज के भारत के सच्चे सपूत एवं महान भारतीय नेता थे. जिन्होंने सैकड़ों वर्षों से बिखरे भारत को एक भाव में बांधकर जागृत करने में अहम भूमिका निभाई.
एक ऐसे समतामूलक भारतीय समाज के निर्माता राजा राममोहन राय ने समाज की तमाम बाधाओं को खत्म कर प्रगति की राह पर लेकर आए. मानवता के सच्चे पुजारी तथा पुनर्जागरण व सुधारवाद का प्रथम प्रर्वतक इन्हें माना गया हैं.
उनका वैवाहिक जीवन काफी कठिनाइयों में व्यतीत हुए. राजाराम मोहन राय ने तीन विवाह किये, दुर्भाग्य से उनकी दो पत्नियों का पूर्व में उनका देहांत हो गया था. मोहन राय ने अपने करियर की शुरुआत ईस्ट इंडिया कम्पनी में राजस्व महकमे के एक कर्मचारी के रूप में किया.
सन् 1809 में कलेक्टर के दीवान बने तथा यहाँ उनकी मुलाक़ात कई धर्म से जुड़े विद्वानों से हुई. कई संगोष्ठी के बाद उन्होंने ब्रह्म समाज की स्थापना की. वर्ष 1812 में उन्ही के प्रयासों से भारत के इतिहास में पहली बार सती प्रथा को अवैधानिक घोषित कर दिया था.
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