Essay On Ramcharitmanas In Hindi रामचरितमानस पर निबंध: हिन्दुओं के लिए रामचरितमानस एक महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा इसकी रचना की गई थी. मेरा प्रिय ग्रंथ (My Favourite Book) होने के साथ ही यह मेरी आस्था से जुड़ा हुआ हैं. आज के निबंध में हम रामचरितमानस के बारे में जानकारी प्राप्त करेगे.
रामचरितमानस पर निबंध Essay On Ramcharitmanas In Hindi
वैसे मै किताबे पढ़ने का बड़ा शौक़ीन हूँ, हमेशा अच्छी किताबो का अध्ययन नियमित रूप से करता हूँ. मैंने आज तक अनेक किताबो का अध्ययन किया लेकिन मुझे सबसे श्रेष्ठ पुस्तक तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस लगी.
रामचरितमानस मेरी प्रिय पुस्तक है. इस पुस्तक को मै अभी तक पांच बार पढ़ चूका हूँ. ये पुस्तक मानवतावादी गुणों और मानवीय धर्मो से जुडी हुई है.
इस पुस्तक को कई भाषाओ में लिखा जा चूका है. पर तुलसीदास ने इस पुस्तक को अवधि भाषा में लिखा था. उन्होंने इस पुस्तक में दोहे श्लोक और चौपायो का प्रयोग भी किया है.
रामचरितमानस में सात कांड है. जिसमे बालकाण्ड,अयोध्याकाण्ड,अरण्यकाण्ड,लंका कांड, सुंदर कांड तथा उतर काण्ड सम्मलित है. जिसमे सभी कांड में तुलसीदास जी ने अपने भाव प्रकट किये है.
यह तुलसीदास की सर्वोत्कृष्ट रचना हैं जिसने तुलसीदास जी को सदा के लिए अमर बना दिया हैं. यह हिंदी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ तथा अद्वितीय ग्रंथ माना जाता हैं.
भाव, भाषा, प्रबंध कौशल, छंद, अलंकार योजना, रचना कौशल आदि सभी दृष्टियों से रामचरितमानस हिंदी साहित्य का अद्वितीय ग्रंथ हैं. इस महाकाव्य की संसार की किसी भी भाषा के सर्वश्रेष्ठ काव्य के साथ तुलना की जा सकती हैं.
रामचरितमानस एक साहित्यिक कृति के रूप में- एक साहित्यिक कृति के रूप में रामचरितमानस में निम्न लिखित विशेषताएं पाई जाती हैं.
प्रबंध सौष्ठव - रामचरितमानस प्रबंध सौष्ठव की दृष्टि से एक सफल महाकाव्य हैं. सम्पूर्ण महाकाव्य सात काण्डों में विभाजित हैं. यह दोहा तथा चौपाइयों में लिखा हुआ संगीतमय काव्य हैं. इसमें महाकाव्य के सभी लक्षण पाए जाते हैं.
रामचरितमानस की कथा बड़ी सुव्यवस्थित हैं. राम, सीता और रावण की कथा मुख्य कथा हैं. बालि और सुग्रीव, हनुमान और सुरसा इत्यादि की कथाएँ गौण कथाएँ हैं. इसमें सभी रसों का समावेश हैं. विशेषकर श्रंगार, वीर और शांत रस का भली प्रकार निर्वाह हुआ हैं.
इसमें मर्मस्पर्शी स्थलों का सुंदर नियोजन हुआ हैं. राम और सीता का जनकपुरी की पुष्पवाटिका में परस्पर दर्शन, स्वयंवर, राम का वन गमन, दशरथ का शोक, चित्रकूट में राम और भरत का मिलन, सीता हरण, लक्ष्मण शक्ति आदि के बड़े मार्मिक प्रसंग हैं.
भाव पक्ष- रामचरितमानस का भाव पक्ष उतना ही सुंदर है जितना कि कला पक्ष. तुलसीदास ने रामचरितमानस में अनेक मर्मस्पर्शी स्थलों का सुंदर नियोजन किया हैं.
राम के वन गमन से उत्पन्न विषाद, दशरथ की मृत्यु, चित्रकूट में राम भरत मिलन, रावण द्वारा सीता का हरण पर राम विलाप, लक्ष्मण के शक्ति लग जाने पर राम विलाप आदि भाव पक्ष की दृष्टि से बड़े मार्मिक प्रसंग हैं.
इन स्थलों के वर्णन में तुलसीदास ने अपनी भाव प्रवणता तथा काव्य ह्रदय की सूक्ष्म से सूक्ष्म अनुभूतियों का चित्रण प्रस्तुत किया हैं. इस प्रकार तुलसीदास मानव ह्रदय की सूक्ष्म मनोवृत्तियो को चित्रित करने में पूर्ण सफल हुए हैं.
कला पक्ष- रामचरितमानस का कला पक्ष बड़ा सशक्त हैं. इसमें रस, अलंकार, छंद, भाषा शैली, अभिव्यंजना शैली आदि का प्रभावशाली ढंग से वर्णन किया गया हैं. जिससे यह महाकाव्य अत्यंत ही उत्कृष्ट कोटि की रचना बन पड़ी हैं. भावपक्ष जितना मार्मिक हैं, कला पक्ष उतना ही चमत्कारपूर्ण हैं.
छंद- रामचरितमानस के प्रमुख छंद दोहा और चौपाई हैं. इसके अतिरिक्त सोरठा, मात्रिक, रोला, हरि गीतिका, कुंडलिया, छप्पय, कवित्त, सवैया आदि छंदों का भी सफल प्रयोग किया गया हैं.
अलंकार- तुलसीदास ने रामचरितमानस में अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया हैं. रामचरितमानस में अलंकार सहज रूप में आए हैं.
उन्होंने अलंकारों का प्रयोग भावों को उत्कर्ष दिखाने, वस्तुओं के रूप गुण और क्रिया को अधिक तीव्र अनुभव कराने के लिए किया हैं. भावों तथा मनोवेगों के चित्रण में उन्होंने उत्प्रेक्षा, रूपक तथा उपमा अलंकारों का अधिक प्रयोग किया हैं.
रस- तुलसीदास कृत रामचरितमानस में सभी रसों का समावेश हैं. विशेषकर श्रृंगार, वीर तथा शांत रस का भली प्रकार निर्वाह हुआ हैं. इसमें शांत रस की प्रधानता हैं. लंकाकाण्ड तथा सुंदरकाण्ड में वीररस का अच्छा प्रयोग हुआ हैं.
भाषा- तुलसीदास का भाषा पर अद्भुत अधिकार था. रामचरितमानस की प्रमुख भाषा अवधि हैं. जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ हैं. भाषा भावपूर्ण एवं भावों की अभिव्यक्ति करने में सक्षम हैं.
भाषा एवं शब्द भावों के अनुरूप हैं. जहाँ वैसा भाव व्यक्त करना होता हैं, वहां महाकवि उसके अनुकूल ही शब्द प्रयुक्त करते हैं. उनकी भाषा की यह विशेषता हैं कि वह भाव और प्रसंग के अनुरूप कठोर या कोमल होती जाती हैं.
चरित्र चित्रण- तुलसीदास ने पात्रों के चरित्र चित्रण में अद्भुत कौशल का प्रदर्शन किया हैं. उन्होंने सभी प्रकार के पात्रों का चरित्र चित्रण किया हैं. जिनमें अच्छे भी हैं और बुरे भी हैं. पुण्यात्मा भी हैं तथा पापी भी हैं.
रामचरित मानस में राम, सीता, भरत, लक्ष्मण, सुग्रीव, बालि, हनुमान, रावण, मेघनाद, मारीच, विभीषण, मन्दोदरी आदि के अत्यंत सजीव चरित्र चित्रित किये गये हैं.
तुलसीदास ने प्रत्येक पात्र के स्वभाव तथा चरित्र का बहुत ही सजीव तथा स्वाभाविक चित्रण किया हैं. राम आदर्श पुत्र, पति, भाई और राजा के रूप में चित्रित किये गये हैं.
राम के चरित्र में शक्ति, शील और सौन्दर्य का अपूर्व मिश्रण हैं. उनके चरित्र में नर और नारायण के रूप का अपूर्व समन्वय कर कवि ने हिन्दू समाज के समक्ष भक्ति का आधार प्रस्तुत किया हैं.
सीता का आदर्श पतिव्रता पत्नी के रूप में, भरत तथा लक्ष्मण का आदर्श भाई के रूप में तथा हनुमान का आदर्श सेवक के रूप में चित्रण हुआ हैं. रामचरितमानस में जैसा आदर्श और उदात्त चरित्र चित्रण हुआ हैं, वैसा अन्यत्र दुर्लभ हैं.
प्रकृति चित्रण- रामचरितमानस में प्रकृति का सुंदर चित्रण हुआ हैं. इस महाकाव्य में वर्षा ऋतु वर्णन, शरद ऋतु वर्णन, दण्डकारन्य वर्णन आदि काफी सजीव और प्रभावशाली हैं.
समन्वय भावना- तुलसीदास कृत रामचरितमानस समन्वय की दृष्टि से भी एक महान ग्रंथ हैं. इसमें महाकवि ने शैव तथा वैष्णव मतों में शिव, पार्वती तथा राम की स्तुति कर एकता स्थापित करने का प्रयास किया हैं. उन्होंने शिव और राम की एकता पर बल देते हुए लिखा हैं कि
"शिव द्रोही मम दास कहावा
सो नर सपनेहु मोहि न भावा"
इसी प्रकार तुलसीदास ने भक्ति तथा ज्ञान का निर्गुण और सगुण का, यथार्थ और आदर्श का, गृहस्थ जीवन और वैराग्य का. ब्राह्मण तथा चांडाल का सुंदर समन्वय स्थापित किया हैं. इस प्रकार रामचरितमानस एक उच्च स्तर की साहित्यिक रचना हैं.
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