100- 200 Words Hindi Essays 2024, Notes, Articles, Debates, Paragraphs Speech Short Nibandh

भारतीय समाज में नारी का स्थान पर निबंध | Essay on Status Of Women In Modern Indian Society In Hindi

Essay on Status Of Women In Modern Indian Society In Hindi - भारतीय समाज में नारी का स्थान पर निबंध: नमस्कार दोस्तों यदि आप स्वतंत्रता के बाद आधुनिक भारत में स्त्रियों की दशा और दिशा नारी की भारतीय समाज में स्थिति कल और आज, अब और तब पर हिंदी में निबंध खोज रहे हैं. तो भारतीय नारी पर यहाँ शोर्ट हिंदी एस्से दिया गया हैं.

भारतीय समाज में नारी का स्थान पर निबंध | Essay on Status Of Women In Modern Indian Society In Hindi

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में स्त्रियों की स्थिति में काफी सुधार हुआ हैं. डॉ श्रीनिवास के अनुसार पश्चि मीकरण, लौकिकीकरण तथा जातीय गतिशीलता ने स्त्रियों की सामाजिक, आर्थिक स्थिति को उन्नत करने में काफी योगदान दिया हैं.

वर्तमान समय में स्त्री शिक्षा का प्रसार हुआ है, स्त्रियाँ औद्योगिक संस्थानों में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर कार्य कर रही हैं. इसके अलावा अधिनियमों द्वारा स्त्रियों की निर्योग्यताओं को समाप्त कर दिया गया हैं. वर्तमान समय में स्त्रियों की प्रस्थिति को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा जाना जा सकता हैं.

स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात स्त्री शिक्षा का व्यापक प्रसार हुआ हैं. स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व भारतीय समाज लड़कियों को शिक्षा दिलाने के पक्ष में नहीं था, न ही भारतीय समाज में इतनी सुविधाएं उपलब्ध थी, जिससे कि लड़की को शिक्षा प्रदान की जा सके.

वर्ष 1882 में जहा पढ़ी लिखी स्त्रियों की कुल संख्या 2045 थी, वहां सन 1981 में बढकर 7 करोड़ 91 लाख तथा 2001 में 22.67 करोड़ हो गई. 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार देश में 65.46 प्रतिशत महिलाएं साक्षर हैं.

वर्तमान में लड़कियाँ व्यावसायिक शिक्षा भी ग्रहण कर रही हैं. शिक्षण से सम्बन्धित ट्रेनिंग कॉलेजों तथा मेडिकल कॉलेजों व इंजीनियरिंग कॉलेजों में भी लड़कियों की संख्या प्रति वर्ष बढती जा रही हैं. 

उपयुक्त आंकड़ों से यह स्पष्ट हो जाता हैं कि भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात स्त्री शिक्षा का तीव्र गति से प्रसार हो रहा हैं, जो स्त्रियों की स्थिति में सुधार का सूचक हैं.

आर्थिक क्षेत्र में प्रगति

ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाली 80 प्रतिशत स्त्रियाँ आर्थिक दृष्टि से कोई न कोई कार्य करती रही हैं. नगरो में भी निम्न वर्ग की स्त्रियाँ घरेलू कार्यों तथा उद्योगों के माध्यम से कुछ न कुछ कमाती रही हैं. साधारणतः मध्यम और उच्च वर्ग की स्त्रियों द्वारा आर्थिक द्रष्टि से कोई काम करना बुरा समझा जाता रहा हैं.

लेकिन औद्योगीकरण एवं आधुनिकीकरण ने स्त्रियों की आर्थिक निर्भरता को कम करने और उनकी स्थिति के उन्नत करने में योगदान दिया हैं. औद्योगीकरण एवं बाजार वाली अर्थव्यवस्था के परिवार के आर्थिक कार्य विशेषीकृत कम हुआ हैं.

शिक्षा के व्यापक प्रसार नई नई वस्तुओं के आकर्षण, उच्च जीवन स्तर की बलवती इच्छा तथा बढती कीमतों ने अनेक मध्यम एवं उच्च वर्ग की स्त्रियों की नौकरी या आर्थिक दृष्टि से कोई न कोई कार्य करने के लिए प्रेरित किया.

20 वीं शताब्दी ने महिलाओं के लिए व्यवसाय के अनेक अवसर प्रदान किये हैं. अब वे भारतीय विदेश सेवा, भारतीय प्रशासनिक सेवा तथा दूसरी केंद्रीय व राज्य स्तरीय सरकारी सेवाओं में कार्यरत हैं. 

टेलीफोन, टंकण, लिपिक कंप्यूटर, स्वास्थ्य विभाग, शिक्षा, समाज कल्याण, बैंक आदि में महिलाओं की संख्या दिन पर दिन बढती जा रही हैं. इससे स्त्रियों का आर्थिक जगत में स्थान बढ़ता जा रहा हैं.

राजनीतिक चेतना में वृद्धि

स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात स्त्रियों की राजनीतिक चेतना में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई हैं. पार्लियामेंट और विधान मंडलों में स्त्री प्रतिनिधियों की संख्या और विभिन्न गतिविधियों में उसकी सहभागिता, राज्यपाल, मंत्री और यहाँ तक कि प्रधानमंत्री के रूप में उनकी भूमिकाओं से यह स्पष्ट हैं कि इस देश में स्त्रियों की राजनीतिक चेतना दिनोंदिन बढती ही जा रही हैं.

सामाजिक जागरूकता में वृद्धि

पिछले कुछ वर्षों मेर स्त्रियों की सामाजिक जागरूकता में काफी वृद्धि हुई हैं. अब स्त्रियाँ पर्दा प्रथा को बेकार समझने लगी हैं. आज बहुत सी स्त्रियाँ घर की चारदीवारी के बाहर निकलकर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करने लगी हैं. 

आजकल स्त्रियों के विचारों एवं दृष्टिकोण में परिवर्तन आया हैं कि अब वे अंतर्जातिया विवाह, प्रेम विवाह और विलम्ब विवाह को अच्छा समझने लगी हैं. 

जातीय नियमों के प्रति उनकी भी नफरत लगातार बढ़ती जा रही हैं. आज अनेक स्त्रियाँ महिला संगठनों और क्लबों की सदस्य हैं. कई स्त्रियाँ समाज कल्याण कार्यों में लगी हुई हैं. यह परिवर्तन उनकी उच्च सामाजिक प्रगति का प्रतीक हैं.

पारिवारिक क्षेत्र में अधिकारों की प्राप्ति

वर्तमान में हिन्दू स्त्रियों के पारिवारिक अधिकारों में वृद्धि हुई हैं. वर्तमान में स्त्रियाँ संयुक्त परिवार के बन्धनों से मुक्त होकर एकाकी या मूल परिवार में रहना चाहती हैं. 

वे मूल परिवारों की स्थापना कर स्वतंत्र जीवन व्यतीत करना और पारिवारिक मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहती हैं.

अब कुछ बच्चों की शिक्षा, परिवार की आय के उपयोग, पारिवारिक अनुष्ठानों की व्यवस्था और घर के प्रबंध व स्त्रियों की इच्छा को विशेष महत्व दिया जाता हैं. 

अब तो विवाह विच्छेद के मामलों में स्त्रियों को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त हैं. पारिवारिक क्षेत्र में स्त्रियों के बढ़ते हुए अधिकारों और स्वतंत्रता को देखते हुए कुछ लोगों को तो पारिवारिक जीवन के विघटित होने का भय हैं. यह परिवर्तन भी हिन्दू नारी को उच्च स्थिति होने का प्रमाण हैं.

संवैधानिक व कानूनी रूप से स्थिति 

सरकार ने स्त्रियों की स्थिति को सुधारने के लिए अनेक कानूनी व संवैधानिक कदम उठाये हैं. इनमें प्रमुख हैं मूल अधिकारों की संवैधानिक व्यवस्था, हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 तथा 1976 में किया गया संशोधन, दहेज निरोधक अधिनियम 1961 तथा 1986 में किया गया संशोधन, बाल विवाह निरोधक अधिनियम 1978 आदि.

सरकार ने नारियों की स्थिति सुधारने के लिए और भी अनेक अधिनियम पारित किये हैं जैसे हिन्दू उतराधिकार अधिनियम 1956, स्त्रियों व कन्याओं का अनैतिक व्यापार निरोधक अधिनियम 1956 तथा अपराधी संशोधन अधिनियम 1983. 

इस प्रकार कानूनी व संवैधानिक दृष्टि से भारत में हिन्दू स्त्री की सामाजिक व राजनैतिक स्थिति सुद्रढ़ हुई और इसका प्रभाव महिलाओं की प्रस्थिति पर स्पष्ट रूप से पड़ा हैं.

उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता हैं कि वर्तमान में स्त्रियों की स्थिति में काफी सुधार हुआ हैं. वैसे दूसरी ओर इस सत्य को भी स्वीकारना पड़ेगा कि ग्रामीण नारियां आज भी शहर की नारियों की भांति न तो शिक्षा में दिल चस्पी ले रही हैं और न ही वे पुराने जमाने की आस्थाओं को त्यागने हेतु ही उद्यत हैं.

यही कारण हैं कि भारतीय ग्रामों में पुराने जमाने की तरह परम्पराएं अभी तक चल रही हैं. उनमें सुधार न होने पर निश्चित रूप से ग्रामीण नारियों की उन्नति किसी भी तरह से सम्भव नहीं हो सकती. ग्रामीण नारियाँ तो अज्ञानता के घोर अन्धकार से परिपूर्ण हैं इसी कारण उनमें सामाजिक गतिशीलता का अभाव हैं.

Essay on Women in Indian society in Hindi

ईश्वर ने ऐसी अनुपम सृष्टि की रचना की हैं जिनमें कहीं ऊँचे पर्वत, लहलहाते पेड़ पौधे वन नदियाँ सागर खेत चहचहाते पक्षी, रंग बिरंगे फूल उन पर रसपान करते भ्रमर ये सब प्रकृति के निराले रंग रूप ईश्वरीय देन हैं.


मानव के चिर सहायिका के रूप में नारी को पृथ्वी पर भेजा. दोनों ने प्रेम भाव से एक दूजे के साथ जीने का संकल्प दोहराया और इस तरह अभिलाषी मानव को एक जीवनसाथी के रूप में नारी की प्राप्ति हुई. इन्ही नर नारी ने आगे चलकर स्रष्टि को आगे बढ़ाया.

दैवीय रूप नारी जिनके विविध रूप हैं कभी वो मेनका तो कभी राजा दुष्यंत के लिए शंकुलता के रूप में आई शिवजी के लिए वह पार्वती बनकर अवतरित हुई, कृष्ण के लिए राधा के रूप में. कभी देवी दुर्गा का रूप धारण किया तो कभी त्याग, प्रेम, ममत्व की प्रतिमूर्ति बनकर आई.

“यत्र नार्यास्तु पूज्यंते, रमंते तत्र देवताः’वैदिक काल के इस मंत्र को समझने पर पता चलता हैं कि प्राचीन भारत में नारियों को कितना सम्मानीय स्थान प्राप्त था. 

उसके लिए कहा गया कि जहाँ नारी का वास होता हैं वहां देवता निवास करते हैं. वैदिक युग में नारी को समस्त प्रकार के अधिकार प्राप्त थे वह आज के पुरुषों की तरह पूर्ण रूप से स्वतंत्र थी.

उसे नर की अर्द्धांगिनी के रूप में देखा जाता था. जैसे जैसे वक्त बदला समाज में भी बदलाव की हवा लगी, महाभारत के युग में नारी की स्थिति वैदिक युग से कुछ कम हुई तो रामायण युग में भी बहु विवाह की प्रथा ने जन्म ले लिया.

साहित्य ने हमेशा नारी चित्रण को अहम स्थान दिया. उनके गौरव को बनाए रखने के प्रयास हुए. वीर गाथा के काल में नारी ने माँ के रूप में अपने पुत्र को युद्ध में वीरता का परिचय देने की सीख दी. हिंदी काव्य धारा के भक्ति काल अर्थात भारतीय इतिहास के मध्यकाल में नारी की स्थिति दयनीय हो गई.

उन्हें केवल सौन्दर्य, भोग विलास का साधन माने जाने लगा, नारी को घर की चारदीवारी में बंद कर रखा गया उस समय के साहित्यकारों कबीर आदि ने पुरुषों की इस मानसिकता का भरपूर विरोध भी किया.

ये भी पढ़ें