गरीबी पर निबंध | Essay on Poverty in Hindi: नमस्कार दोस्तों आपका हार्दिक स्वागत आज हम गरीबी अर्थात निर्धनता पर छोटा बड़ा निबंध, अनुच्छेद, लेख, आर्टिकल स्पीच और पैराग्राफ बता रहे हैं. भारत में गरीबी का स्वरूप, प्रकार, अर्थ कारण और गरीबी उन्मूलन poor elimination पर यह निबंध आपकों बता रहा हूँ.
गरीबी पर निबंध Essay On Poverty In Hindi
20वीं शताब्दी में ही गरीबी व गरीब व्यक्ति हमारी चिंता व जिम्मेदारी अथवा कर्तव्य के विषय बने. खासकर से 1960 के आसपास अर्थात यही वह समय था जब गरीबी सामाजिक समस्या की अवधारणात्मक विषय बनी.
गरीबी ऐसी दशा है जिसमें सामान्यतः भौतिक किन्तु कभी कभी सांस्कृतिक संसाधनों का अभाव भी होता हैं शास्त्रीय दृष्टिकोण से गरीबी को आर्थिक आधार पर परिभाषित किया जाता है जिसमें प्रायः उन्हें गरीब माना जाता है जो भोजन वस्त्र, आवास जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा नहीं कर पाते.
गरीबी या निर्धनता जीवन जीने के साधनों या इस हेतु धन के अभाव की स्थिति है। गरीबी अभाव की स्थिति या स्थिति है जिसमें किसी व्यक्ति या समुदाय के पास न्यूनतम जीवन स्तर के लिए बुनियादी आर्थिक संसाधनों और आवश्यक वस्तुओं का अभाव होता है।
“गरीबी उन सभी संसाधनों और वस्तुओं की पर्याप्त आपूर्ति का ना हो पाना है, जो व्यक्ति तथा उसके परिवार के स्वास्थ्य और कुशलता को बनाये रखने के लिए जरुरी है।” एक व्यक्ति की सम्पूर्ण भोजन, वस्त्र और आवास के प्रबन्ध कर लेने से ही निर्धनता की समस्या समाप्त नहीं हो जाती.
हमारा देश गरीबी में पिछड़ता जा रहा है, जिसका कई कारण है, (1)अशिक्षा (2)अधिक जनसंख्या (3)बेजोज़गारी(4)आर्थिक असमानता (5) सरकारी योजनाओ का पालन न होना(6) भ्रष्टाचार (7)अन्धविश्वाश (8) भूमि का असमान वितरण (9)संसाधनों पर मुट्ठी भर लोगों का नियंत्रण(10) लोकतांत्रिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार आदि.
निर्धनता वह स्थिति है जो शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने में यानी कि जीवित, सुरक्षित निश्चित रहने की आवश्यकताओं की पूर्ति में असमर्थ है. यह परिभाषा जीवित रहने के लिए न्यूनतम आय के सन्दर्भ में हैं.
गरीबी मात्र आर्थिक प्रघटना या आर्थिक अभाव मात्र नहीं है बल्कि यह सामाजिक तथा राजनितिक वंचना भी हैं. अतः गरीबी की अवधारणा में आर्थिक, राजनितिक व सामाजिक पहलू शामिल हैं.
गरीबी को निरपेक्ष व सापेक्ष दोनों रूप में परिभाषित किया जाता हैं. निरपेक्ष अर्थ में जीवन निर्वाह में आवश्यक संसाधनों की कमी के रूप में तथा सापेक्ष अर्थ में समाज के अन्य व्यक्तियों की तुलना में व्यक्ति या समूह के पास संसाधनों की कमी या अभाव को निर्धनता कहा जाता हैं.
समाजशास्त्रियों ने गरीबी सम्बन्धी सापेक्ष परि भाषा को ही अपने अध्ययन का केंद्र बनाया है. इस प्रकार यह व्यक्तिनिष्ठ परिभाषा हैं.
आय को गरीबी आकलन का सबसे प्रमुख कारक माना जाता है जो कि उन आवश्यकताओं पर बल देता है जो स्वास्थ्य व शारीरिक क्षमता को बनाए रखने हेतु आवश्यक हैं. यह संकुचित दृष्टिकोण है जो अब मान्य नहीं हैं.
आज गरीब वह माना जाता है जो अपनी बुनियादी आवश्यकताओं यथा शिक्षा, सुरक्षा, आराम की जीवन पद्धति, रीती रिवाजों जैसी गतिविधियों से वंचित हो. आर्थिक के साथ साथ सांस्कृतिक पहलू भी गरीबी के जन्म देने व बनाए रखने में महत्वपूर्ण हैं.
ये कारक दीर्घावधिमें जीवन चक्र के अनुसार बदलते रहते है. अतः आय व सांस्कृतिक कारकों को असमानता मूलक पहलू समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं. जहाँ असमानता है जहाँ गरीबी होगी तथा जहाँ गरीबी है वहां असमानता होगी.
दोनों परस्पर पूरक है. अतः गरीब वे है जो दैनिक जीवन की न्यूनतम पोषणमूलक आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ होते है 2400 कैलोरी ग्रामीण व 2100 कैलोरी शहरी क्षेत्र में निर्धारित हैं.
तेंदुलकर समिति 2009 ने गरीबी का आधार पोषण के स्थान पर उपभोग व्यय अथवा आय को बनाया है जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मूल्यों पर प्रतिमाह खर्च शामिल हैं. अर्थात गरीबी के अनुमान का तरीका बदल गया. गरीबी का नही.
ऑक्स्फ़र्ड के अर्थशास्त्रियों व UNDP ने भी HPL के सानी पर MPI का विकास किया जिसमें बाल मृत्यु दर, पोषण, स्वच्छ जल की उपलब्धता, ईधन, सेनेतेशन, विद्युत्, स्कूल में नामाकंन तथा विद्यालय में पढ़ने के औसत खर्च, आवास की स्वच्छता, माल्कियत इत्यादि को शामिल कर गरीबी को बहुआयामी प्रघटना माना हैं. MPI मॉडल को सबीना अलकिरे तथा जेम्स फोस्कर ने 2010 में बनाया.
गरीबी रेखा- वह रेखा जो गरीबी की सीमा निर्धारित करती है अर्थात जो औसत आय से नीचे होती है. यही रेखा गरीबी को निर्धारित करती है और अलग अलग देशों में अलग अलग हैं. सामान्यतः यह रेखा कैलोरी के न्यूनतम पोषण स्तर से निर्धारित की जाती हैं.
निर्धनता के कारण- दरिद्रता अर्थात जीवन निर्वाह्मूल्ज साधनों के अभाव के विश्लेषण के दो परिपेक्ष्य माने जाते हैं.
पुरातन मत
- दैवकृत और पूर्वजन्म के कर्मों का फल है.
- धनी व्यक्ति भाग्य के कारण धनी है व गरीबी योग्यता के अभाव में
आधुनिक मत
- कार्य क्षमताओं का अभाव व प्रेरणा को कमी
- अकेला व्यक्ति ही उत्तरदायी नहीं बल्कि सामाजिक व्यवस्था भी इसका कारक हैं.
डेविड इलेश ने गरीबी के तीन कारण बताए हैं व्यक्ति, संस्कृति और सामाजिक संरचना.
- व्यक्ति- यह सिद्धांत गरीबी का कारण स्वयं व्यक्ति में अंतर्निहित मानता है. सफलता असफलता व्यक्तिगत घटना है. निर्धनता का दोषी स्वयं व्यक्ति ही है अर्थात वह अकुशल, आलसी, पहल करने की क्षमता का अभाव, शारीरिक मानसिक क्षमताओं का अभाव आदि हो सकता हैं. यह सिद्धांत गरीबी को प्रकार्यात्मक मानते हुए योग्य व्यक्तियों की योग्यता का मापदंड मानता है जैसे कि मैक्स वेबर व्यक्तिगत सद्गुण मानता हैं. स्पेंसर, कार्नेज, लेन इसके समर्थक हैं.
- गरीब की संस्कृति या उपसंस्कृति- ओस्कर लविस इस विचारधारा के प्रवर्तक है. इस धारणा के अनुसार आर्थिक परिवर्तनों के बावजूद गरीब अपनी संस्कृति के कारण ही निर्धन बना रहता हैं. यह संस्कृति उन मूल्यों व व्यवहारों को बढ़ावा देती है जिससे गरीबी बनी रहे. अतः लेविस के अनुसार यह विशेष प्रकार की संस्कृति है जो पीढ़ी दर पीढ़ी गरीबी को हस्तांतरित करती है और निर्धन व्यक्तियों को औद्योतक विकास की मुख्य धारा से अलगावित रखती हैं.
- सामाजिक संरचना- रुढ़िवादी धारणा के विपरीत उदारवादी, आमूल परिवर्तनवादी व समाजशास्त्री गरीबी का कारण सामाजिक सरंचना या अन्यायपूर्ण सामाजिक व्यवस्था को मानते हैं. इस विचारधारा के अनुसार निम्न शैक्षणिक स्थिति, प्रशिक्षण का अभाव, दीर्घकालीन बेरोजगारी, हमारी आर्थिक व्यवस्था व संस्थाएं गरीबी को बनाए रखती है. वर्ग विशेष के निहित स्वार्थ सामाजिक व आर्थिक परिवर्तन में बाधा डालते हैं.
गरीबी पर निबंध | Essay on Poverty in Hindi
गरीबी एक ऐसी व्यक्ति की वह स्थति होती है. जिस स्थिति में व्यक्ति दो समय का भोजन तथा पहनने के लिए कपडे तथा रहने के लिए घर नहीं जुटा पाता है. ऐसी स्थिति को गरीबी की संज्ञा दी जाती है.
संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य एवं कृषि संगठन के प्रथम निदेशक लार्ड बायड ओर पहले पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने 1945 में गरीबी रेखा की अवधारणा प्रस्तुत की थी. उनके अनुसार 2300 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन कम से कम उपभोग करने वाले व्यक्ति को गरीब माना गया.
निर्धनता का आशय Meaning of poverty: निर्धनता दो अर्थों में प्रयुक्त की जाती हैं.
निरपेक्ष निर्धनता: इसके अनुसार निर्धनता वह स्थिति है, जिससे व्यक्ति अपनी न्यूनतम आधारभूत आवश्य कताओं जैसे खाना, कपड़ा, स्वास्थ्य सुविधा आदि की पूर्ति भी नहीं कर पाता हैं.
सापेक्ष निर्धनता: इसका अभिप्रायः आय की असमानता से हैं. यह अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक असमानता या क्षेत्रीय आर्थिक असमानताओं का बोध कराती हैं. उदाहरण के लिए यदि एक देश की प्रति व्यक्ति आय दूसरे देश के प्रति व्यक्ति आय से कम हैं तो पहले देश को दूसरे देश की तुलना में गरीब माना जाएगा.
भारत में योजना आयोग ने गरीबी की निरपेक्ष अवधारणा पर बल दिया हैं. भारत में निर्धनता सामान्यतः स्वीकृत परिभाषाएं उचित जीवन की स्तर की अपेक्षा न्यूनतम जीवन स्तर को प्राप्त करने पर बल देती हैं. योजना आयोग ने गरीबी रेखा का आधार कैलोरी ऊर्जा को माना हैं.
निर्धनता का मापन (Poverty measurement)
भारत में निर्धनता के मापन के दो आधार निर्धारित किये गये हैं. न्यूनतम कैलोरी उपभोग और प्रति व्यक्ति प्रतिमाह व्यय. योजना आयोग द्वारा गठित विशेष्यज्ञ दल टास्क फ़ोर्स ओन मिनिमम नीड्स एंड कंजमशन डिमांड के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र मे प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 2400 कैलोरी तथा शहरी क्षेत्र में प्रति व्यक्ति 2100 कैलोरी का पोषण प्राप्त न करने वाला व्यक्ति गरीबी रेखा अर्थात निर्धनता रेखा से नीचे यानि गरीब माना जाता हैं.
उपभोग के इस न्यूनतम स्तर को प्राप्त करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति प्रतिमाह व्यय राशि 1993- 94 की कीमतों के आधार पर 229 रू तथा शहरी क्षेत्रों के लिए 264 रू निर्धारित की गई हैं.
वर्तमान में यह सीमा ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 356 रू तथा शहरी क्षेत्रों के लिए 538 रूपये प्रतिमाह निर्धारित की गई हैं. योजना आयोग द्वारा राष्ट्रीय सेम्पल सर्वे संगठन के 61 वें दौर निर्धनता दर 26.10 के स्थान पर अब 21.8 प्रतिशत रह गई हैं.
भारत में निर्धनता के कारण (Causes of Poverty in India)
अल्प विकास, जनसंख्या वृद्धि की उच्च दर, निम्न उत्पादकता, पूंजी निर्माण की धीमी गति, निम्न स्तरीय प्रोद्योगिकी, आर्थिक असमानता, कृषिगत उत्पादन में धीमी वृद्धि, कीमत वृद्धि की प्रवृत्ति, बेरोजगारी एवं अर्द्ध बेरोजगारी, सामाजिक बाधाएं और श्रम की गतिशीलता का अभाव आदि गरीबी के मुख्य कारण रहे हैं.
अन्त्योदय योजना (Antyodaya Scheme)
1977-78 में जनता पार्टी सरकार द्वारा राजस्थान में गरीबों में से भी निर्धनतम लोगों के उत्थान के लिए शुरू की गई योजना जिसमें उन्हें ऋण व अनुदान देकर आय सृजक सम्पतियाँ उपलब्ध कराई.
हमारे देश में पंचम पंचवर्षीय योजना में निर्धनता उन्मूलन को योजना के प्रमुख उद्देश्यों के रूप में स्वीकार किया गया. तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व इंदिरा गाँधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया.
निर्धनता उन्मूलन योजनाएँ (Poverty alleviation schemes)
स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना: केंद्र व राज्य सरकार की 75:25 भागीदारी इस योजना का मुख्य उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे चयनित परिवारों को साख व अनुदान द्वारा आय सृजक सम्पतियाँ उपलब्ध करवाकर उन्हें गरीबी रेखा से ऊपर उठाना था.
इसके अंतर्गत स्वरोजगार की चयनित मुख्य गतिविधियों में क्लस्टर बनाने, गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को स्वयं सहायता समूहों के रूप में संगठित करने, व्यक्तिगत लाभार्थियों का चयन करने, उनके प्रशिक्षण अवसंरचना, प्रोद्योगिकी, साख व विपणन के क्षेत्रों को विकसित किये जाने का प्रावधान हैं.
इस योजना के माध्यम से गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले परिवारों को उनकी अभिरुचि एवं उनकी आवश्यकतानुसार आर्थिक संसाधन उपलब्ध करवाकर तकनीकी व प्रबंधकीय कुशलता का प्रशिक्षण देना.
तथा उपयुक्त तकनीकी अवसरंचना एवं विपणन हेतु सुविधाएं उपलब्ध करवाकर अधिक से अधिक स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जाएगे. जिससे वे गरीबी की रेखा को पार कर सके. इस योजना का क्रियान्वयन राज्य के सभी जिलों में जिला परिषद द्वारा किया जा रहा हैं.
Essay On POVERTY IN INDIA
किसी भी व्यक्ति को अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा न कर पाने की क्षमता नहीं होती है, तो उसे हम गरीबी कहते है. हमारे दैनिक जरूरतों में कपडे भोजन आवास तथा खाद्य सामग्रिया शामिल है.
गरीबी का जीवन व्यतीत करना आज के समय में बड़ी ही जटिल कार्य है. हर कदम पैसो की जरुरत पड़ती है. पर रोजगार न मिलने या कम मिलने के कारण ही गरीबी फैलती है.
हमारे देश गरीबी की दृष्टि से बहुत पीछे है. इस देश में आज भी १५% से अधिक गरीब लोग निवासित है. जो समय पर भोजन नहीं कर पाते है. पर देश को अमीर देशो में गिना जा रहा है. जिससे गरीबो का शोषण हो रहा है.
देश में बढती महंगाई गरीबो के लिए खतरा बन रही है. वाही उघयोगपतियो के लिए वरदान साबित हो रही है. गरीब लोगो को मजदूरी के लिए घर तक छोड़ना पड़ता है. कई बार गरीब लोग गाँवो को छोड़कर शहर में नौकरी की तलास के लिए बसते है.
गरीबी का सबसे बड़ा कारण कारण शिक्षा का अभाव है. आज के लोग शिक्षित बनकर ऑनलाइन या ऑफलाइन अपनी जॉब ढूंढ लेते है. तथा रोजगार की प्राप्ति करते है.
अनपढ़ लोगो को आज के इस युग में जीने का तरीका नहीं आता है. हमारे देश के अधिकतर लोग ग्रामीण इलाको में रहते है. जिनकी आर्थिक स्थिति काफी कमजोर है. पर कुछ चंद लोगो की वजह से भूखे रहने वालो को भी अमीर बोल दिया जाता है.
बढती जनसख्या के कारण लोगो में प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है. तथा जो शिक्षित वर्ग के लोग है. उन्हें अशिक्षित की उपेक्षा नौकरी कम ही दी जाती है. अनपढ़ की अयोग्य बता दिया जाता है.
मशीनीकरण से हर कार्य आज किया जाता है. जिस कारण लेबर की जरुरत ही नहीं पड़ती है पर जब कभी पड़ती है, तो सभी को रोजगार मिल पाना जरुरी नहीं है. कई लोग वंचित रह जाते है.
कृषि हमारे देश के ८०% लोगो के आमदनी का साधन है. ये एक ऐसा व्यवसाय है, जो जीवन निर्वाह में गरीबो की सहायता करता है. तथा इस कार्य को करके गरीब अपनी स्थिति में सुधार ला सकता है.
लेकिन पिछले कुछ समय से कृषि तकनीको में समस्याए सामने आ रही है. लोग मिटटी को अधिक उपजाऊ बनाने के लिए उसमे रासायनिक खाद का प्रयोग करते है. जो हानिकारक है.
जिस वर्ष अच्छी फसल होती है. तथा अच्छी उपज होती है. उस समय किसान की स्थिति में सुधार हो जाता है. क्योकि वह भोजन का इंतजाम कर लेता है. लेकिन जब चार महीनो की मेहनत पर प्राकृतिक आपदा पड़ जाए.
तो गरीबो को ये आपदा ओर भी मार देती है. जिस समय बाढ़ भूकंप आते है. व्यापक गरीबी फैलती है. महंगाई बढती है. कुछ पैसो में बैची जाने वाली किसानो की सामग्री दुगुने दामो में खरीदनी पड़ती है.
हमें गरीबी से बचने के लिए अधिकाधिक लोगो को रोजगार का प्रबंधन करवाना चाहिए. जिससे सभी लोग आत्मनिर्भर होकर कमाई कर सके तथा अपना जीवन आसानी से निर्वाह कर सकें.
इसके समाधान के लिए कई योजनाए चलाई जा रही है. जिसमे 100 दिन का रोजगार ग्रामीण रोजगार योजना भी शामिल है. जो गरीबो का काफी राहत पहुंचाती है.
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