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अकबर महान पर निबंध | Essay on Akbar the Great in Hindi

अकबर महान पर निबंध Essay on Akbar the Great in Hindi: नमस्कार दोस्तों आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन हैं. मुगल सम्राट अकबर के विषय में जानकारी इस निबंध, भाषण, स्पीच, अनुच्छेद में दी गई हैं. जिन स्टूडेंट्स को अकबर के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं इस निबंध (एस्से) की मदद ले सकते हैं.

अकबर पर निबंध Essay on Akbar the Great in Hindi

जब हम इतिहास पढ़ते हैं तो अमूमन हमें इतिहास के शासकों के बारें में पढ़ाया जाता हैं. कुछ शासक बुरे होते थे तो कुछ प्रजा को पुत्रवत मानकर उनके साथ बेहद स्नेहिल व्यवहार रखते थे. अक्सर उन्हें जनता के दिलों में बसनें वाले महान सम्राट की उपाधि दी जाती थी. 

भारत के महान प्राचीन शासकों में चन्द्रगुप्त मौर्य, महाराणा प्रताप, शिवाजी, पृथ्वीराज चौहान आदि का नाम भी लिया जाता हैं. आधुनिक इतिहास के एक शासक अकबर को हमारे इतिहासकारों ने महिमामंडित कर एक महान शासक और भारत के निर्माता की उपाधि भी दी.

मुगल शासकों में अकबर का शासन श्रेष्ठ कहा जा सकता हैं. वह अन्य क्रूर मुगल एवं उसके पूर्ववर्ती शासकों की तुलना में काफी उदार था. 

उसकी महानता और शूरता के कारण उसे यूनान के सिकन्दर, फ़्रांस के नेपोलियन, स्पेन के फिलिप सैकंड और फ़्रांस के लुइ सोलहवें के साथ ही हमारे अतीत के शिरोमणि सम्राट अशोक और चन्द्रगुप्त मौर्य के जनकल्याण के कार्यों के साथ अकबर की तुलना कर उसे महान शासन बताया जाता हैं.

अकबर को इतिहास के एक अनोखे रत्न के रूप में साहसी सैनिक, वीर योद्धा, सफल सेनानायक, महान् योद्धा, प्रजावत्सल शासक, कलाप्रेमी, साहित्यानुरागी, उदार, सहिष्णु और सभी धर्मों को समान मानने वाले एक शासक के रूप में दिखाया जाता हैं. दिल्ली के सल्तनत काल से ब्रिटिश शासन के अंत तक अकबर के शासन को प्रजा के सुख और सम्रद्धि का काल माना जाता हैं.

मुगल खानदान से सम्बन्ध रखने वाला अकबर बाबर का पौत्र एवं हुमायूँ का पुत्र था. इसका पूरा नाम जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर था. 

इसका जन्म वर्तमान पाकिस्तान में स्थित अमरकोट के दुर्ग में 15 अक्टूबर 1942 को हुआ था. इसकी माँ का नाम हमीदाबानू बेगम था. हुमायूं के देहांत के पश्चात उनके जीवन में कठिनाइयों का एक लम्बा दौर चला था. 

हुमायूं के निधन के बाद राजनैतिक विद्रोह की आंशका से बचने के लिए प्रधानमंत्री बैरम खान ने सूझ बूझ से काम लेते हुए. हुमायूं के निधन की खबर को लगभग 17 दिन तक छिपाएं रखा. 

इसी अवधि के दौरान 14 फरवरी 1556 के दिन अकबर का राज्याभिषेक कर उसे मुगल सल्तनत का अगला सम्राट घोषित कर दिया गया. बैरम खान इस राज्य का प्रधानमंत्री नियुक्त हुआ.

जब अकबर ने राजगद्दी सम्भाली तो उसके सामने कई बड़ी समस्याएं थी, जिन्हें उसे अपने शुरूआती दौर में ही निपटना जरुरी था. 

अपने पिता हुमायूं से विरासत के रूप में मिले दिल्ली, पंजाब और उसके आसपास के छोटे से राज्य की सुरक्षा करना सबसे बड़ा प्रश्न था. एक संगठित सेना के अभाव तथा शक्तिशाली राजपूत प्रतिस्पर्धियों का सामना करना बड़ी समस्या थी. 

अकबर उम्र में भी मात्र तेरह वर्ष का था, उसे अपनों द्वारा धोखा देने का भय भी बराबर बना हुआ था. आंतरिक व बाहरी परिस्थितियों में घिरे होने के बावजूद उसके लिए एक शुभ संकेत था,.

बैरम खान का जो संरक्षक और राज्य के प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त होकर शासन की समस्त जिम्मेदारियों को निभाता था. बैरम खान के सहयोग से ही उसने शाहअबुल माली को बंदी बनाया, जो अकबर का सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी था. अकबर के जीवन की पहली विजय पानीपत के युद्ध में 1556 अफगानी हेमू के खिलाफ मिली.

इस तरह अकबर ने काबूल को मुक्त कराया और 1560 ईसवीं के बाद अकबर ने मालवा पर विजय हासिल की और इसके बाद अपने विजय यात्रा अफगानों, जौनपुर के सामन्त खानजमां पर विजय, मेड़ता, गोंड़वाना, चित्तौड़, रणथंभौर, कालिंजर, मारवाड़, बीकानेर, गुजरात, बिहार, बंगाल, मेवाड़ आदि तक राज्य विस्तार में सफलता पाई.

इसके पश्चात इन्होने उत्तर पश्चिमी कांधार क्षेत्र, काबुल और बलूचिस्तान पर विजय हासिल कर भारत की सभी सीमाओं को अपने अधिकार क्षेत्र में कर लिया.

अकबर का 1562 आमेर के राजपूत राजा भारमल की बेटी जोधाबाई के साथ विवाह हुआ. यह अकबर की तीसरी पत्नी थी. अकबर और जोधाबाई का प्रसंग काफी लोकप्रिय रहा. 

अकबर का पुत्र एवं उत्तराधिकारी जहाँगीर इन्ही जोधाबाई का पुत्र था. जोधाबाई का असली नाम हीरा कुँवारी था. 1623 में जोधाबाई की मृत्यु के साथ ही इसे अकबर की कब्र के ठीक पास ही दफनाया गया. 

सम्राट अकबर का विश्वासमित्र & प्रधानमन्त्री और संरक्षक बैरम खान जब एक धार्मिक यात्रा के दौरान मारा गया तो अकबर ने उसकी पत्नी सलीमा से विवाह कर लिया. 

इतिहास के वृतांतों में पढ़ने को मिलता हैं कि अकबर के हरम में कुल पांच हजार स्त्रियाँ थी, जिनमें अधिकतर हिन्दू थी. ऐसा दावा किया जाता हैं कि उन्हें अपने धर्म के अनुसार जीवन जीने की स्वतंत्रता थी.

मगर जोधाबाई का इस्लाम की रिवायत के अनुसार नाम रखना और कब्र में दफन करना ही बताता हैं कि अकबर को महान उदार और सहिष्णु बताने वाले दावे कितने सही हैं. अपनी दक्षिण नीति के में अकबर ने अहमदनगर और असीरगढ़ तक अपने राज्य का विस्तार किया.

अकबर के लिए लम्बे समय तक दिल्ली पर शासन स्थापित करने के लिए राजपूत शासकों के साथ अच्छे सम्बंध होना जरुरी था. सूझबूझ और कूटनीति को काम लेते हुए उसने कुछ राजाओं का दमन किया तो कुछ के साथ मैत्री पूर्ण सम्बन्ध स्थापित किये तो कुछ के साथ वैवाहिक सम्बन्ध भी बनाए. 

अकबर ने राजपूत नीति के तहत देशी राजाओं के दुर्ग को पराजित कर उन्हें जागीर में वह रियासत दे दी. इस तरह उन राजाओं की शक्ति को अपने हित में प्रयोग कर विद्रोही राजपूत के खिलाफ अभियान में कुछ हद तक सफलता अर्जित की.

इसे सभी मुगल शासकों में सबसे अधिक सहिष्णु माना जाता हैं. कट्टर इस्लामी नीति का त्याग कुछ हद तक किया मगर जजिया जैसे कर फिर से गैर मुस्लिमो पर लगा दिए गये. 

अन्य धर्मों को मानने वालों को अपने तौर तरीके से पूजा उपासना करने की सिमित स्वतंत्रता प्राप्त थी. हिन्दू मुस्लिम समन्वय के लिए अकबर ने दीन ए इलाही नामक नयें पंथ चलाया.

उसने अपने दरबार में कई राजपूत सामंतों को उच्च पदों पर आसीन किया, कई सैन्य एवं असैन्य कार्यों में हिन्दू लोगों नियुक्त किया. सामाजिक सुधार की दिशा में कई कदम उठाते हुए.

अकबर ने बाल विवाह, कन्या वध, बहु पत्नी, मद्यपान, शराब वृत्ति, गोवध पर भी आंशिक प्रतिबंध लगाकर समाज में कुरीतियों के प्रति जागृति पैदा करने का प्रयास किया. उसने वैश्यावृत्ति पर रोकथाम के लिए शैतानपुर नगर की स्थापना की तथा वहां दरोगा को भी नियुक्त किया.

हिन्दू मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने के लिए अकबर ने हिन्दुओं के त्यौहार रक्षाबन्धन, दिवाली आदि को नौरोज की तरह एवं शिवरात्रि को शबेबरात की तरह मनाने पर जोर दिया. 

अकबर ने हिन्दू अनुयायियों के खान पान और उनके रिवाजों को अधिक सहिष्णु बनाने की दिशा में कई अन्य उपाय भी किये. मुस्लिमों के लिए मस्जिदों की तरह हिन्दुओं के लिए संस्कृत पाठशालाएं खोली गई. फ़ारसी अनुवादकों की मदद से हिन्दू ग्रंथों का अरबी और फ़ारसी में भी अनुवाद करवाया.

सम्राट अकबर कला के प्रेमी भी थे. इनके शासनकाल में चित्रकला, संगीत और स्थापत्य कला के बड़े पारखी माने जाते थे. हिन्दू और मुस्लिम शैलियों के समन्वय की कई ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण भी करवाया गया. 

इन महलों एवं इमारतों में फतेहपुर सिकरी, रानी जोधाबाई का महल और आगरा का किला उल्लेखनीय हैं. इन स्थलों में हिन्दू एवं ईरानी शैली के चित्र भी देखने को मिलता हैं.

अकबर के दरबार में विद्वानों और कला प्रेमियों को बड़ा सम्मान दिया गया था. दरबार के नौ रत्नों में शेख फैजी, अबुलफजल, मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी, बीरबल, राजा टोडरमल, अब्दुल रहीम खानखाना, मानसिंह, तानसेन आदि की शोभा बढ़ाते थे. कई हिन्दू संगीत की हस्तियाँ भी अकबर के दरबार में थी जो तानसेन, रामदास, बैजू बावरा आदि मुख्य थे.

इन्होने कई सिक्के भी चलाए जिनमें कुछ मुस्लिम पद्धति के तो कुछ हिन्दू पद्धति के राम सीता के सिक्के भी चलाए. सम्राट अकबर के शासन की एक बड़ी देन राज्य में एकता और समरसता थी. 

इसके लिए उन्होंने एक तरह की कर प्रणाली, राजस्व प्राणी, समान सुविधाएं उद्योग और कृषि व व्यापार में समानता स्थपित की. माना जाता हैं कि अकबर के समय प्रजा सुख सम्पन्न थी, लोग खुशहाल थे. बताया जाता हैं अकबर की वार्षिक आय तीन सौ करोड़ से अधिक थी.

निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता हैं कि मध्यकाल के सुशासन के शासकों में अकबर भी एक थे. उन्होंने कूट नीति और दूरदर्शिता का परिचय देते हुए राज्य के लोगों के हित में कई ऐतिहासिक नीतियाँ बनी जो कालान्तर में भी अन्य शासकों द्वारा अपनाई गई. आमजन को धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रताए देकर राज्य को सुसंगठित रूप दिया.