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परोपकार पर निबंध ESSAY ON PAROPKAR IN HINDI

नमस्कार दोस्तो आज का हमारा लेख परोपकार पर निबंध | ESSAY ON PAROPKAR IN HINDI है। इस लेख के माध्यम से हम आपको परोपकार से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त कराएंगे। 

परोपकार पर निबंध ESSAY ON PAROPKAR IN HINDI

परोपकार पर निबंध ESSAY ON PAROPKAR IN HINDI
परोपकार व्यक्ति की मानसिक भावना होती है. ये भावना निस्वार्थ होती है. इस भावना को सिखाने वाला कोई नहीं होता है. ये खुद बी खुद आती है. मानवता करुना को ही हम परोपकार कह सकते है.

इस शब्द का शाब्दिक अर्थ दूसरो का भला या दूसरो के हित में निस्वार्थ भाव से कार्य करना ही परोपकार है. हम मानव का सबसे बड़ा धर्म एक दुसरे की सहयता करना होता है.

हर पल हमें किसी न किसी की जरुरत पड़ती है. इसलिए हमें हमेशा दूसरो की सहायता करनी चाहिए. जिससे हमें जरुरत पड़ने पर सहायता मिलेगी. परोपकार का अर्थ धन का दान ही नहीं होता है.

किसी प्यासे को पानी पिलाना भी एक परोपकार होता है. हमारा देश एक ऐसा देश है. जहा भाईचारा और लोगो का आपसी मिलाव बहुत प्रसिद्ध है. यहाँ सबसे अधिक परोपकारी उपलब्ध है.

हम मनुष्य को सबसे बुद्धिमान इसलिए बनाया जाता है. कि हम दूसरो की सहायता कर सकें. वर्ना जीवन तो जानवर भी जीते है. लेकिन वे करुणा और प्रेम का भाव नहीं समझते है.

हमें जीवन में हमेशा दूसरो की सहायता कर परोपकारी बनना चाहिए. तथा आधुनिका समाज को परोपकारी बनकर समाज का भला करने के लिए प्रेरित करना चाहिए. 

किसी भी व्यक्ति का मदद करना बिना किसी रिश्वत के या सभी के प्रति कल्याणकारी सोच भी परोपकार के अंतर्गत आती है. परोपकारी बनने पर हमें खुद के कर्म पर गर्व होता है. जो एक भावना का चमत्कार होता है.

हमें हमेशा दूसरो के प्रति सकारात्मक सोचना चाहिए. आधुनिक लोग मतलबी बनते जा रहे है. जिस कारण वे हमेशा अपने कार्य में फौक्स करते है. अन्य सभी को नजरअंदाज कर देते है. पर जरुरत होने पर पुकारते है.

इसे हम परोपकार नहीं कह सकते है. यानी बिना किसी उदेश्यों के सहायता करना ही परोपकार है. परोपकार की भावना का अध्ययन हम प्राचीन धर्मग्रंथो में करते आए है.

हमारी संस्कृति भी एक दुसरे की सहायता करने के लिए प्रेरित करती है. इसलिए हमें अपनी संस्कृति का अनुसरण कर एक दुसरे की सहायता करनी चाहिए.

इस जीवन में हमें तीर्थ यात्राओं से अधिक पूण्य किसी भी व्यक्ति की सहयता करने से मिलता है. इस जीवन में परोपकार ही सबसे सर्वोपरि है. यथा संभव हमें लोगो की सहायता करते रखना चाहिए.

Essay on Philanthropy in Hindi

मनुष्य जीवन मे सबसे महवपूर्ण कार्य परोपकर होता है। हमारे समाज मे परोपकार को सबसे बड़े धर्म का दर्जा दिया गया है। परोपकार से बढ़कर कोई धर्म नहीं है।

मनुष्य जीवन का श्रेष्ठ धर्म परोपकार होता है। भगवान ने कुछ इस प्रकार से हमारी रचना की है। जिससे हमे एक दूसरे की एसएचके जरूर है। इसलिए हम परोपकार पर ध्यान देते है।

परोपकार दो शब्दो से मिलकर बना है। पर+उपकार। जिसका शाब्दिक अर्थ होता है। दूसरों का भला करना। या इसे हम दूसरों की सहायता करना भी कह सकते है।

व्यक्ति निस्वार्थ से किसी दूसरे का भला करता है। तो उसे परोपकार कहते है। किसी दूसरे पर अपना सर्वस्व समर्पण कर देना ही परोपकार है। जीव-जगत मे मनुष्य के पास परोपकार करने का सबसे बड़ा अवसर होता है।

दूसरा का उपकार परोपकार होता है। परंतु अपने यश,प्रसिद्धि तथा अपने किसी भी प्रकार के स्वार्थ भाव से की गई सहायता को परोपकार की श्रेणी मे शामिल नहीं किया जा सकता है।

जब कोई व्यक्ति निस्वार्थ भाव से कष्ट सहते हुए किसी दूसरे का भला करता है। तो उसे परोपकार कहा जाता है।परोपकार एक व्यक्ति के प्रति ही नहीं बल्कि परोपकार हर सजीव के साथ किया जा सकता है।

हमारे जीवन मे हमारे लिए सबसे बड़ा परोपकार प्रकृति करती है। प्रकृति हमारे लिए शुद्ध ऑक्सीज़न देती है। वृक्ष हमे फल देते है। नदी हमे जल देती है। जिसे पीकर हम अपना जीवन व्यतित करते है।

सूर्य हमे रोशनी देता है। प्रकृति की देन के कारण ही हमारा जीवन संभव है। प्रकृति हमे जीवन मे सबकुछ देती है। इसके बदले मे हम इसे कुछ भी नहीं देते है। और उल्टा प्रकृति को ठेश पहुंचाते है। उन्हे प्रदूषित करते है।

एक व्यक्ति की पहचान परोपकार होता है। जिस समाज मे परोपकार की भावना ज्यादा होती है। वह समाज हमेशा सुखी रहता है। तथा मिलकर रहता है। 

परोपकार मनुष्य की स्वभाव होता है। कई लोग परोपकार के लिए अपने जीवन को खतरे मे डाल देते है। समाज मे जो व्यक्ति परोपकार करता है। उसे अच्छा व्यक्ति माना जाता है।

मनुष्य जीवन मे कई लोगो ने परोपकार के लिए अपना सर्वस्व लूटा दिया। महाराज शिवि ने एक पक्षी के लिए अपने हाथो को बलिदान कर दिया मात्र एक अबोल पक्षी के लिए इसी प्रकार गुरु गोविंद सिंह अपने धर्म की रक्षा के लिए अपने परिवार सही अपना बलिदान दे दिया था। आज तक लोगो के कल्याण के लिए कई लोगो ने बलिदान भी दिया है। 

हमारी संस्कृति मे बच्चो को बचपन से ही परोपकार का गण दे दिया जाता है। परोपकार हमारे संस्कृति का अभिन्न अंग है। हमारे देश मे परोपकार को सबसे बड़ा मानव धर्म माना जाता है।

हमे किसी भी परस्थिति मे दूसरा का परोपकार करना चाहिए। किसी भी प्रकार की हौड के दौर पर भी हमे परोपकार को नहीं भूलना चाहिए। व्यक्ति कितना भी धनी क्यो न हो।

उसे परोपकार करना नहीं भूलना चाहिए। व्यक्ति मे यदि परोपकार की भावना मर गई तो मानव जीवन व्यर्थ है।आज के जमाने के लोग अपने कार्य मे हर समय व्यस्त रहते है। इसलिए वे खुद को भी समय नहीं दे पते है।

इस परस्थिति मे वे दूसरों का उपकार कैसे करे? हमे हर परस्थिति मे अपने परोपकार को जारी रखना है। तो हम अपने परोपकार को खुद का लाभ समझकर चले तो हम किसी भी परस्थिति मे दूसरों का भला कर सकते है। 

परोपकार करने से मन को शांति मिलती है। हमे बहुत अच्छा महसूस होता है। हम इंटरनेट के माध्यम से भी किसी का भी भला कर सकते है। जैसे किसी का देता सुरक्षित करवाना आदि। 

परोपकार के बारे मे ग्रंथो मे लिखा गया है। कि भगवान मानुषी को धनी तथा निर्धनि क्यो बनाता है? दरअसल भगवान व्यक्ति कि परीक्षा लेते है।

कि इस व्यक्ति के पास ये वसु पर्याप्त होने पर क्या ये व्यक्ति किसी का भला करता है। या नहीं परोपकार धन,सम्पदा,बल और बुद्धि से किया जाता है। भगवान ने हमे  एक दूसरे की सहायता के लिए बनाया है। 

परोपकार एक ऐसी भावना होती है. जो धारण करने वाला व्यक्ति कल्याणकारी होता है. परोपकार वह होता है. जो अपने हित-अहित के बारे न सोचते हुए किसी दुसरे की सहयता करना.

हमारी संस्कृति को पवित्र संस्कृति माना जाता है. हमारी इस संस्कृति जन्म से ही बच्चा परोपकार के गुण सिख जाता है.

बडो का आदर करना,छोटो के साथ प्रेम से रहना आदि संस्कार हमारी संस्कृति में बचपन से ही सिखाये जाते है. हमें अपनी संस्कृति को बरक़रार रखने के लिए परोपकार की भावना को नहीं छोड़ना चाहिए.

परोपकार सबसा बड़ा पूण्य है. पर लोग अपने स्वार्थ के लिए एक-दुसरे की सहायता के बजाय एक दुसरे को पीछे रहने का प्रयास करते है. अपने स्वार्थो में आकर परोपकार जैसी भावना को भूल जाते है. जो कि हमारी संस्कृति के लिए बहुत हानिकारक है.

आज हर कार्य पैसो के बल पर किया जा रहा है. इसलिए लोग एक दुसरे की जरुरत नहीं रखते है. जो हमारे भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है. परोपकार तीर्थ यात्राओ पूजा-अर्चना से बढ़कर है.

जो व्यक्ति कार्य को करने में समर्थ नहीं है. उस व्यक्ति की सहायता करके उसका वह कार्य पूर्ण करवाना परोपकार है. अन्यथा जो कार्य कर सकता है. उसकी सहायता हम करे या न करे वह कार्य को करने में समर्थ है.

इसलिए वह हमारे द्वारा दी गई सहायता को महसूस नहीं करता है.और जिसको जरुरत होती है.वह जिन्गदी भर उसके परोपकार को नहीं भूलता है. 

आज के वैज्ञानिक ज़माने में मोबाइल फोन,टीवी,कम्प्यूटर के चलते लोग इन्टरनेट पर ही व्यस्त रहते है. पता ही नहीं लगता समय निकल जाता है. इस परस्थिति में लोग खुद का ख्याल नहीं रख पते है.

वे दुसरे की सहायता कैसे करने में सक्षम होंगे. इसलिए हमें परोपकार को अपनी दिनचर्या में शामिल कर लेना चाहिए. आपने भी सोचा होगा. कि भगवान कई लोगो को धनी बनाता है. तो कई लोगो को गरीब इसका क्या कारण है? 

भगवान लोगो का इम्तिहान लेने के लिए उन्हें गरीब तथा अमीर बनाते है. और परोपकार के आधार पर उन्हें अगले जन्म में गरीब-अमीर बनाया जाता है.

इसलिए जो धनी व्यक्ति है. उन्हें आर्थिक रूप से गरीबो की सहायता करनी चाहिए. पर ऐसा नहीं है. कि सहायता या परोपकार सिर्फ अमीर लोग ही कर सकते है.

परोपकार गरीब लोग भी करने में सक्षम होते है. परोपकार पैसो से नहीं बल्कि बल-बुद्धि से भी किया जा सकता है. 

तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान। कहि रहीम पर काज हित, संपति संचहि सुजान।।

रहीम जी ने लिखा है. कि वृक्ष जो होते है. वे कभी स्वय का फल नहीं खाते है. और सरोवर कभी अपना जल नहीं पीती है.

इन पक्तियों के माध्यम से रहीम से कहना चाहते है. कि जो दूसरो की सहायता करें.यानि परोपकार करें. वही व्यक्ति सज्जन होता है. उसके पास परोपकार रूपी धन होता है.

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