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हल्दीघाटी युद्ध पर निबंध | Essay On Battle Of Haldighati In Hindi

नमस्कार हल्दीघाटी युद्ध पर निबंध Essay On Battle Of Haldighati In Hindi में हम अकबर व महाराणा प्रताप के बीच हुए हल्दी घाटी के युद्ध पर निबंध, भाषण, अनुच्छेद पैराग्राफ लेकर आए हैं. छोटी कक्षाओं के छात्र स्टूडेंट्स इस निबंध की मदद से इस ऐतिहासिक युद्ध के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकेगे.

हल्दीघाटी युद्ध पर निबंध | Essay On Battle Of Haldighati In Hindi

नमस्कार मित्रों। हल्दीघाटी युद्ध पर निबंध में हम  हल्दीघाटी युद्ध की पृष्ठभूमि ,हल्दीघाटी युद्ध के कारण, हल्दीघाटी युद्ध के परिणाम, हल्दीघाटी युद्ध का महत्व तथा महाराणा प्रताप की शौर्य गाथा और अकबर की  मेवाड़ नीति, प्रताप का स्वाभिमान इत्यादि सभी पहलुओं पर चर्चा कर रहे हैं.

विश्व इतिहास भारतीय इतिहास के बिना अधूरा है. भारत का इतिहास राजस्थान   के इतिहास के बिना अधूरा है. उसी प्रकार राजस्थान का इतिहास मेवाड़ के इतिहास के बिना अपरिपूर्ण है .मेवाड़ का इतिहास हल्दीघाटी के युद्ध  के बिना अधूरा है. मेवाड़ के इतिहास में हल्दीघाटी का युद्ध  राजस्थानी शौर्य तथा स्वाभिमान का दर्पण है.

राजस्थान की धरती यहां के शासकों के त्याग,  बलिदान, शौर्य ,पराक्रम  की साक्षी रही है. लहू से छनी धरती वीरों के बलिदानों की गाथा बयां करती है.

हल्दीघाटी का युद्ध भारत के इतिहास में अपनी अमिट छाप बनाए हुए हैं . हल्दीघाटी का युद्ध कारण तथा परिणाम की बजाए इसके महत्व तथा स्वाभिमान की कहानी के लिए जाना जाता है.

हल्दीघाटी नामक स्थान वर्तमान में राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित कृष्ण भक्ति स्थल नाथद्वारा से लगभग 11 किलोमीटर पश्चिम में स्थित हैं. हल्दीघाटी का विश्व प्रसिद्ध और अनोखा युद्ध 18/ 21 जून 1576 को मुगल शासक अकबर के सेनापति मानसिंह तथा राजस्थान के गौरव महाराणा प्रताप की सेना के बीच लड़ा गया.

 हल्दीघाटी युद्ध के कारण

राजपूत राज्यों के प्रति अकबर की नीति आक्रामक ना होकर सुलह ए कुल की नीति का सहारा लिया. अकबर द्वारा आयोजित 1570 के नागौर दरबार में राजस्थान की अधिकांश शासकों ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली.

नागौर दरबार के बाद भी जिन रियासतों ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की तथा मुगलों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित नहीं किए उनमें मेवाड़ प्रमुख रियासत थी .

दूसरी और महाराणा उदयसिंह के बाद मेवाड़ का शासक महाराणा प्रताप बनते हैं. महाराणा प्रताप स्वतंत्रता प्रिय शासक होने के साथ-साथ संघर्षी तथा स्वाभिमानी भी थे.

महाराणा प्रताप चाहते तो मुगलों की अधीनता स्वीकार कर विलासिता पूर्ण जिंदगी दूसरे शासकों की तरह गुजार सकते थे। परंतु महाराणा प्रताप को उनके स्वाभिमान ने ऐसा करने नहीं दिया. 

परिणाम स्वरूप महाराणा प्रताप ने दर-दर की ठोकरें खाकर अपने स्वाभिमान को जिंदा रखते हुए मेवाड़ की स्वतंत्रता के लिए संपूर्ण जीवन का बलिदान कर दिया. प्रताप ने अपना प्रतिरोध जारी रखा. इसके लिए उन्होंने छापामार युद्ध पद्धति का सहारा लिया.

अकबर ने प्रताप को मनाने के लिए 4  शिष्मंटडल भी भेजें꫰ परंतु प्रताप ने अधीनता स्वीकार नहीं की तब  युद्ध अनिवार्य हो गया था.मेवाड़ रियासत गुजरात तथा दिल्ली मार्ग में होने के कारण अकबर इसे अपने साम्राज्य में मिलाना चाहता था.

अकबर यह जानता था कि महाराणा प्रताप के पास ना तो ज्यादा संसाधन है और ना ही बड़ी सेना.इससे अकबर का मनोबल सातवें आसमान पर था जिसने भी आक्रमण करने को बल प्रदान किया.अकबर धर्म सहिष्णु शासक था फिर भी वह किसी हिंदू राजा को स्वतंत्र रूप में नहीं देख सकता था.

हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप का साथ भील जनजाति में भी दिया। भील जनजाति में प्रताप की का नाम से प्रसिद्ध थे तथा उनका बहुत सम्मान करते थे. 

भील योद्धा लड़ाई के लिए जाने जाते थे अर्थात लड़ाके थे. इसके अलावा भी लड़ाके पहाड़ी क्षेत्रों के बारे में अच्छी तरह से वाकिफ थे तथा दुश्मन सेना को छापामार युद्ध पद्धति के द्वारा छक्के छुड़ाने के काबिल थे.

भील जनजाति के अलावा ग्वालियर के तनवर, मथुरा के राठौड़ प्रताप का हल्दीघाटी युद्ध में सहयोग कर रहे थे.

हल्दीघाटी का युद्ध

हल्दीघाटी का घमासान युद्ध प्रताप की सेना तथा अकबर की सेना के बीच लड़ा गया. अकबर की सेना का नेतृत्व आमेर के  कछवाहा वंशीय मानसिंह कर रहे थे. 

मानसिंह मर्दाना नाम के हाथी पर सवार था. महाराणा प्रताप के घोड़े का नाम चेतक था. युद्ध का बिगुल बजा.आसमान में गर्जना हुई तथा तलवारों व भालों की आवाज खनखन  और झनझनाहट से ओतप्रोत वीरों के साहस को बढ़ा रही थी.

हल्दीघाटी युद्ध के परिणाम

अधिकांश इतिहासकारों ने हल्दीघाटी के युद्ध को और निर्णायक घोषित किया. प्रत्यक्ष युद्ध रुक चुका था लेकिन संघर्ष अभी भी जारी था. प्रताप ने अपनी स्थिति को संभालने के लिए अपनी राजधानी को भी परिवर्तन कर दिया. 

प्रताप ने पहाड़ी क्षेत्र को अपना स्थान बना कर संघर्ष जारी रखा. प्रताप ने अकबर की व्यस्तता का फायदा उठाते हुए अपने प्रदेशों को पुनः धीरे-धीरे प्राप्त करना शुरू कर दिया.

प्रताप ने अपनी अंतिम सांस तक अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की. जब जब इतिहास में युद्ध का वर्णन होगा तब तब महाराणा प्रताप के शौर्य त्याग बलिदान एवं स्वाभिमान तथा स्वामी भक्त चेतक घोड़े को याद किया जाता रहेगा. 

महाराणा प्रताप घायल होने के बाद उनकी रक्षा में चेतक ने महत्वपूर्ण योगदान दिया . चेतक युद्ध में पूर्ण रूप से घायल हो गया परंतु अपने स्वामी को सुरक्षित स्थान तक पहुंचाने के बाद मर गया . चेतक का स्मारक हल्दीघाटी युद्ध स्थल के पास ही बनाया गया.

हल्दीघाटी के युद्ध ने राजस्थानी शासकों के असीम धैर्य तथा साहस का परिचय दिया. हल्दीघाटी युद्ध  ने यह साबित कर दिया कि स्वतंत्र प्रवृत्ति  तथा स्वाभिमान के लिए  राजस्थानी शासक अपना सब कुछ न्योछावर कर सकता है.

अकबर का युद्ध स्थल में प्रत्यक्ष रूप से महाराणा प्रताप का सामना ना करना इस तथ्य को साबित करता है कि अकबर महाराणा प्रताप से इस युद्ध के बाद डरने लगा था.

हल्दीघाटी युद्ध ने मातृभूमि की रक्षा के लिए बलिदान देने वाले योद्धाओं के प्रतीक के रूप में हल्दी घाटी स्थल स्थापित हो गया.

हल्दीघाटी के युद्ध  ने राजपूतों में आपसी फूट तथा अनबन को उजागर किया। यह भी साबित किया कि मातृभूमि की रक्षा के लिए भी राजपूत शासक कभी एक नहीं हो सकते.

हल्दीघाटी युद्ध का महत्व

हल्दीघाटी का विश्व प्रसिद्ध युद्ध भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इसके राजनीतिक आर्थिक तथा सामाजिक परिणाम भले ही ज्यादा खास ना रहे हो. 

परंतु हल्दीघाटी युद्ध को युगो युगो तक याद किया जाएगा. क्योंकि यह युद्ध मातृभूमि की रक्षा के लिए लड़ा गया. प्रताप ने स्वाभिमान के चलते सर्वोच्च त्याग और बलिदान दिया.

यह युद्ध प्रादेशिक स्वतंत्रता के लिए जाना जाता है. प्रताप संसाधनों के अभाव में तथा विषम परिस्थितियों होने के बावजूद भी संघर्ष करता रहा अंत तक उसने हार नहीं मानी. इसलिए  हल्दीघाटी का युद्ध विश्व के सभी युद्धों में अनोखा है.