वसुधैव कुटुम्बकम पर निबंध | Vasudhaiva Kutumbakam Essay In Hindi- नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत है, आज के आर्टिकल में जिसमे हम सम्पूर्ण पृथ्वी को अपना परिवार मानने वाली धारणा वसुधैव कुटुम्बकम् के बारे में निबंध के माध्यम से इसके अर्थ महत्व और इसकी प्रासंगिकता को जानेंगे.
वसुधैव कुटुम्बकम पर निबंध | Vasudhaiva Kutumbakam Essay In Hindi
यह सोच हमें बताती है, कि हम सभी मानव है. तथा सभी एक ही प्रजाति है, चाहे किसी भी धर्म हो या किसी भी देश का हो पहली पहचान इंसानियत होती है. हम सभी की पहली पहचान ही मानव ही है.
हमें इससे जुड़े रहकर सभी को अपने मानकर इस दुनिया में जीवन यापन करने की इस धारणा को हम वसुधैव कुटुम्बकम के नाम से जानते है, जो भारतीय संस्कृति की पहचान है.
वसुधैव कुटुम्बकम हमारी संस्कृति भाषा का शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ सम्पूर्ण पृथ्वी हमारा परिवार है, होता है. वसुधा पृथ्वी को कहते है. तथा कुटुंब यानी परिवार होता है. अर्थात पृथ्वी के सभी जीवो के साथ परिवार भाव से रहना ही वसुधैव कुटुम्बकम है.
हिन्दू दर्शन में भी इसका विशेष महत्व होता है. हम मानव जाति समुद्र की तरह है. तथा हर व्यक्ति एक बूंद की तरह इसमे मिला रहता है. पर हम एक दुसरे को ऊँचा नीचा , गरीब-अमीर या छोटा-बड़ा कहते है.
वास्तव में सभी एक ही है. सभी का निर्माता एक ही है. सभी एक ही माटी के पुतले है. हम भाग्यशाली है, कि हमारे देश की संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम को विशेष महत्व देती है. तथा सभी को परिवार की तरह मिलकर रहने का सभी को सन्देश देती है. इसलिए तो हमारे देश को विश्वगुरु कहा जाता है.
Essay on Earth as a Family In Hindi
वसुधैव कुटुम्बकम् यह दुनिया के सबसे पुराने सनातन धर्म का एक मूल संस्कार और विचारधारा है, जो सम्पूर्ण पृथ्वी को अपना एक परिवार की तरह जोड़कर देखती है. तथा सभी में समानता का भाव प्रदर्शित करती है.
यह कथन सनातन धर्म के धार्मिक ग्रन्थ महा उपनिषद तथा इसके अलावा भी इसका कई ग्रन्थों में लिपिबद्ध वर्णन मिलता है. जो हमें एक बनाए रखने की धारणा को प्रतिपादित करती है.
वसुधैव कुटुम्बकम् का शाब्दिक अर्थ होता है, धरती ही परिवार है (वसुधा एव कुटुम्बकम्)। अर्थात यह सम्पूर्ण भूमि हमारा एक परिवार है. तथा हम सभी इसके सदस्य है. जो मिलकर रहते है.
वसुधैव कुटुम्बकम् यह वाक्य आपको भारत की संस्कृति में ही देखने को मिलता है. इसे भारतीयों द्वारा प्रोत्साहित किया जा रहा है. यह वाक्य आपको भारत में संसद से लेकर हर कार्यालय में मिल जाएगा.
अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम् ।उदारचरितानां तु वसुधैवकुटुम्बकम् ॥
आपने इस मन्त्र को भी कई जगह पढ़ा होगा यह महा उपनिषद् का एक मन्त्र है. जिसका हिंदी भाषा में अर्थ होता है. कि अपना और पराया है, यह मेरा है, यह मेरा नहीं है. ऐसी गणना करना छोटे छित वाले लोगो का काम है.
जो उदार हृदय वाले लोग होते है, उनके लिए तो पूरी धरती ही अपना परिवार होती है. यह मन्त्र आज से हजारो साल पहले लिखे गए जिसमे वसुधैव कुटुम्बकम् का वर्णन मिलता है. यही हमारी सोच रही है.
यह सोच हमें एक मानव की संख्या मात्र बताती है. और इस दुनिया के सभी निवासियों को अपने जैसा ही मानती है. ना कोई गरीब-अमीर ना कोई छोटा-बड़ा और ना कोई उच्च वर्ग का और ना ही कोई निम्न वर्ग का.
हमें मानवता के तौर पर सभी को देखने का भाव है. वसुधैव कुटुम्बकम. सभी को अपने परिवार की तरह प्यार से अपना मानना तथा एक दुसरे की सहायता करना ही वसुधैव कुटुम्बकम है.
वसुधैव कुटुम्बकम एक ऐसा विचार है, जो भारतीयों के मन में आज से हजारो साल पहले आ गया था. यह एक उपदेश की तरह है, जो सभी को एकता के सूत्र में बाँधने में सहायता करता है.
यह जीवन में सही दिशा दिखाता है. आज के समय में धर्म, जाति, पंथी या वर्ग के आधार पर हो रहे भेदभाव को दूर करके अपने जीवन की वास्तविकता सभी को समझाने के लिए यह विचार सहायक है.
जब भी हम कोई कार्य करते है. तो सभी के साथ मिलकर यदि उसके करें, तो वो ओर भी बेहतर ढंग से तथा रोचक होगा. हर कार्य में अपना लाभ न देखकर होने वाली हानिया भी देखे. हमारे स्वार्थ से हमारे परिवार को कोई नुकसान तो नही.
वनों को काटना भी हमारे लिए वसुधैव कुटुम्बकम के इस उपदेश का खंडन करने जैसा है, क्योकि पशु पक्षियों का जीवन बर्बाद कर रहे है, हम. यह भी हमारे परिवार का ही हिस्सा है.
हमें केवल वसुधैव कुटुम्बकम को एक उपदेश तक ही सिमित नहीं रखना है. हमें इसकी पालना करते हुए. सभी को अपने परिवार के सदस्य की तरह मानकर जीवन जीना है. दुसरो को भी इसके लिए प्रोत्साहित करना है.
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