कवि सूरदास पर निबंध | Essay on Surdas in Hindi- हिंदी काव्य के अनेक सितारों में सबसे प्रमुख नाम सूरदास जी का आता है, जिन्होंने अपने अनुपम लेखो से सम्पूर्ण जगत पर अमित छाप छोड़ी है. आज हम हिंदी कवि सूरदास के बारे में विस्तार से जानेंगे.
सूरदास पर निबंध Essay on Surdas in Hindi
हिंदी काव्य जगत के कविवर सूरदास जी ने अपने लेखो में सभी को मोहित किया, सूरदास जी के लेखो में जनमानस की चमक बढती है. सूरदास जी को तुलसीदास जी का समक्ष माना जाता है.
सूरदास को हिंदी साहित्य का सूर्य कहा जाता है. सूरदास जी ने कृष्ण भक्ति पर अनेक लेख लिखकर कृष्ण भक्ति में अपना अमूल्य योगदान दिया. सूरदास जी का जन्म विवादपूर्ण रहा है.
सूरदास हिन्दी भाषा की शाखा के भक्तिकाल धारा के सगुण भक्ति के कृष्ण भक्त के महान कवि थे। हिन्दी साहित्य में भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य उपासक तथा ब्रजभाषा के श्रेष्ठ कवि सूरदास हिन्दी भाषा के साहित्य के सूर्य कहे जाते थे.
सूरदास जी हिन्दी साहित्य में भक्तिकाल के समय के एक सुप्रसिद्ध एवं महान कवि थे। सूरदास भगवान श्री कृष्ण के भक्त तथा ब्रजभाषा के महान कवि माने जाते हैं। उनकी रचनाएं दिल को छू जाती हैं।
सूरदास जी बहुत विद्वान कवि थे, आज भी सूरदास जी की लोकप्रियता तथा उनके पाठको की संख्या में कमी नही है. सूरदास जी मथुरा के बीच गऊघाट पर आकर रहने लगे थे। सूरदास जी के पिता, रामदास सारस्वत एक प्रसिद्ध गायक थे।
सूरदास के बारे में 10 लाइन
- सूरदास भक्तिकाल के प्रमुख कवि थे, ये सगुण भक्ति धारा के कृष्ण भक्त थे.
- सूरदास जी का जन्म 1478 ईस्वी को दिल्ली के पास सीही में हुआ था. एक मान्यता के अनुसार रेणुका में.
- मान्यता के अनुसार ये जन्म से अंधे थे,पर इस पर आज भी मतभेद बना हुआ है.
- ये ब्रज भाषा के प्रमुख कवि थे, इन्हें हिंदी साहित्य के सूर्य कहा जाता है.
- सूरदास जी के गुरु महाप्रभु वल्लभाचार्य जी थे. जिनके अष्टछाप कवियों में सूरदास प्रमुख थे.
- सूरदास जी आजीवन अविवाहित रहे थे.
- इनकी रचनाए ब्रज भाषा में प्रकाशित हुई जिसमे सूरसागर, सूरसारावली,साहित्य-लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो प्रमुख थी. सुर सागर इनकी सबसे लोकप्रिय रचना थी.
- अपनी रचनाओ में सूरदास जी ने कृष्ण के बालरूप और वात्सल्य रस का सुंदर, मनोहर और स्वाभाविक रूप का चित्रण किया है.
- सूरदास जी का देहांत 1583 ईस्वी में परसौली में हुआ.
- महान कवि सूरदास जी ने 12 अध्यायों में से 11 संक्षिप्त रूप में व 10वां स्कन्ध में अपनी रचनाए की.
महाकवि सूरदास जी के जन्म से लेकर अनेक मान्यताए है. जिसमे सबसे प्रचलित मान्यता के अनुसार सूरदास जी का जन्म 1478 ई. को मथुरा के निकट रुनकता रेणुका क्षेत्र में हुआ.
दूसरी मान्यता के अनुसार सूरदास जी का जन्म 1483 ईस्वी में दिल्ली के पास सीही में हुआ था. सूरदास जी चन्द्र वरदायी वंश से माने जाते है. सूरदास जी में सभी कवियों से एक बात भिन्न थी, कि सूरदास जी ऐसे कवि थे, जो जन्मसिद्ध अंधे थे.
महाकवि सूरदास जी वल्लभाचार्य के अष्ट शिष्यों में सबसे प्रमुख थे. सूरदास जी ने जीवनभर रचनाओ की रचना करते रहे और लगभग 1 लाख रचनाए की. सूरदास जी की मृत्य 1583 में पारलौसी में हुई.
सूरदास जी के लाखो रचनाओ में वर्तमान ,में पांच प्रसिद्ध रचनाए मिलती है. जिसमे सूर सागर, सूर सारावली, साहित्य लहरी, नल दमयन्ती और ब्याहलो सबसे प्रमुख ओर लोकप्रिय रचनाए है.
तुलसीदास जी और सूरदास जी समक्ष थे. ओर तुलसीदास जी को भगवान राम का भक्ति कवि माना जाता था. और सूरदास जी को कृष्ण भक्त कवि माना जाता था. सूरदास जी के लेखन में भक्ति की लहर नजर आती थी.
सूरदास जी अंधे होने के कारण उन्होंने अपने परिवे का बोझ बनकर रहने की बजाय लेखन के कार्य को अपने जीवन का पेशा बनाया. सूरदास जी लेखन के साथ साथ गायन भी करते थे. वे अपनी मधुर वाणी से सभी का मन मोह लेते थे.
सूरदास की मधुर वाणी सुनाने के लिए सभी लोग आ जाते थे. सूरदास जी कृष्ण लीला का हमेशा जप करते रहते थे. वे कृष्ण के बड़े भक्त थे. वे हमेशा कृष्ण जी की भक्ति में ही लीन रहते थे.
सूरदास जी जब मथुरा भ्रमण के लिए गए उस समय उनका मिलन गुरु बल्लभाचार्य जी से हुआ. सूरदास जी के प्रभावी पदों को पढ़कर महान गुरु वल्लभाचार्य जी प्रेरित हो उठे और सूरदास जी को अपना शिष्य बना लिया.
सूरदास जी ने वल्लभाचार्य जी को ख़ुशी ख़ुशी अपना गुरु स्वीकार किया. और उनके आठ शिष्यों में से एक शिष्य बन गए. सूरदास जी की कृष्ण लीला संवाद सुनने के लिए वल्लभाचार्य जी तक सभी तरसते थे.
संत कबीर दास की तरह ही सूरदास जी भी लम्बी आयु तक इस संसार में रहे और अनेक लेख लिखे. सूरदास जी ने अपने 105 साल के लम्बे जीवन में लाख से अधिक रचानाए की जिसमे सूरसागर सूरसारावली जैसे रचनाए आज भी प्रसिद्ध है.
सूरदास जी ने कृष्ण भगवान जी के बचपन से लेकर उनके आजीवन सभी भागो को पदों से व्यक्त किया. उन्होंने कृष्ण जी के हर पद को बड़े मन से चित्रण किया जिस कारण ये पद वास्तविकता का आभास कराती है.
केवल कृष्ण जी के पदों में ही नहीं बल्कि उनकी सभी रचनाओ में भी वास्तविकता का अनुभव होता है. तथा उनकी रचनाओ में प्रेम प्रकट होता है. और उनके भावो को पहचाना जा सकता है.
महाकवि सूरदास जी कृष्ण के महान भक्त होने के कारण उनका मानना था. कि वे कृष्ण भक्ति के कारण ही उत्कृष्ट रचनाए कर पाते है. मेरा जीवन कृष्ण भगवान को समर्पित है.
कविवर सूरदास जी की रचनाओ से लोगो में आज भी प्रेरणा की नई उमंग का उदय होता है. सूरदास आज भी लाखो लोगो के लिए प्रेरणा का साधन बने हुए है. उनका जीवन हमे भक्ति से जोड़ता है.
सूरदास जी सहित्य काव्यात्मक भाषा ब्रज भाषा है. जिसमे उन्होंने अपने लेखो को प्रस्तुत किया था. खासकर सूरदास जी मुहावरों में ब्रज का सबसे अधिक इस्तेमाल करते थे. ब्रज के साथ साथ सूरदास जी की काव्यभाषा के पदों में लक्षणा और व्यजना शब्द का मिश्रण भी मिलता है.
सूरदास जी का प्रसिद्ध काव्य सूरसारावली में द्रश्तिकुट पद है. जिसमे अधिकांश व्यजना शब्द शक्ति का प्रयोग मिलता है. सूरदास जी की भाषा शैली अन्य कवियों से काफी भिन्न रही है. पर भाव सामान ही रहे है.
सूरदास जी की काव्य भाषा में काफी भाषाओ का प्रयोग मिलता है. उन्होंने कई भाषाओ में लेखन का कार्य किया जिसमे प्रमुख रूप से अनुप्रास, यमक, श्लेष, उपमा, उत्प्रेक्षा तथा रूपक अलंकारो का प्रयोग अधिक मिलता है.
सूरदास की काव्य विशेषता
- सूरदास जी की अधिकांश रचनाए कृष्ण जी के बालपन से जुडी है. जिसमे माखन चुराने के समय के पद भी शामिल है.
- महाकवि सूरदास जी के अनुसार कृष्ण भक्ति मोक्ष का सबसे श्रेष्ठ तरीका है.
- सूरदास जी ने कृष्ण जी की चंचलता और अभिलाषाओ की रचना की है.
- सूरदास जी की रचनाओ में कृष्ण जी का चित्रण मिलता है.
- कविवर सूरदास जी अनेक भाषाओ के ज्ञाता थे, उन्होंने अपने लेखन में भाव पक्ष तथा कला पक्ष को काफी महत्व दिया था.
- सूरदास जी के पदों में प्रेमभाव करुणानिधि और दयाभाव देखने को मिलता है.
- सूरदास जी की रचनाओ में वास्तविकता का आभास होता है.
- सूरदास के लेखन में पुराने आख्यानो और कथनों का उल्लेखनीय योगदान रहा है.
- सूरदास की रचनाओ में प्राकृतिक सुंदरता और पशुधन का विशेष स्थान है.
- कविवर के पदों में कूट पद अवश्य मिलते है.
- सूरदास जी का मुख्य वर्ण्य विषय कृष्ण भगवान की लीला का गायन था.
रचनाएँ
सूरदास जी पांच प्रमुख ग्रन्थ है. जिसमे अनेक रचनाए विलिन है.
- सूरसागर
- सूरसारावली
- साहित्य-लहरी
- नल-दमयन्ती
- ब्याहलो
सूरसागर ग्रन्थ में लोग मान्यताओ के अनुसार इस ग्रन्थ में लाख से अधिक पद बताए जा रहे है, पर इसमे लगभग 10 हजार पद ही है. नागरी प्रचारिणी सभा के द्वारा प्रकाशित की गई कुछ हस्तलिखित पुस्तकों के आधार पर कविवर के 16 ग्रंथों का उल्लेख किया जाता है.
नागरी प्रचारिणी की पुस्तकों में सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो और दशमस्कंध टीका, नागलीला, भागवत्, गोवर्धन लीला, सूरपचीसी, सूरसागर सार, प्राणप्यारी इत्यादि ग्रन्थ शामिल है.
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