पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर निबंध | Essay on environment and ecology in hindi: नमस्कार मित्रों आपका स्वागत और अभिनंदन इस आर्टिकल पर्यावरण और पारिस्थितिकी माध्यम से हम पर्यावरण और पारिस्थितिकी की मूलभूत जानकारी प्राप्त करने के साथ-साथ इसके सभी अन्य पहलुओं पर भी चर्चा करेंगे.
Essay on environment and ecology in hindi
पर्यावरण और पारिस्थितिकी का अध्ययन वर्तमान बेहद जरूरी हो गया है केंद्रीय और राज्य प्रशासनिक सेवा की परीक्षाओं में इस अध्याय से काफी संख्या में प्रश्न पूछे जा रहे हैं .
इसको मध्य नजर रखते हुए इस निबंध में परीक्षाओं से संबंधित महत्वपूर्ण विषय वस्तु को शामिल करने का प्रयास किया गया है इसके अलावा वर्तमान में पर्यावरणीय असंतुलन से बचने के लिए भी जागरूकता और हमें इसकी जानकारी होना जरूरी है.
पर्यावरण पर निबंध अर्थ परिभाषा (Essay on environment meaning definition in hindi)
पर्यावरण शब्द परि तथा आवरण शब्दों के योग से बना है अर्थात हमारे चारों ओर का परिवेश ही पर्यावरण है जिसमें मिट्टी पानी हवा प्रकाश जल वायु पेड़ पौधे पर्वत पठार मैदान जीव जंतु नदियां आदि को शामिल किया जाता है. विभिन्न प्रकार के जैविक तथा अजैविक कार्बनिक पदार्थ मिलकर पर्यवरण का निर्माण करते है.
संपूर्ण पृथ्वी पर ना तो एक जैसे जीव जंतु है ना ही एक जैसी जलवायु फिर भी यह सभी एक दूसरे से बंधे हुए हैं प्रकृति के नियम सभी जगह एक समान है.
पर्यावरण को जाना ना केवल प्रयाण वेदों के लिए आवश्यक है बल्कि यह हम सब को जाना अति आवश्यक है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति तक इसकी जानकारी पहुंचा कर ही बिगड़ रहे पर्यावरणीय असंतुलन को संतुलित किया जाना संभव है जागरूकता से ही इसके और अधिक विनाश को कम किया जा सकता है.
पर्यावरण को जाना ना केवल प्रयाण वेदों के लिए आवश्यक है बल्कि यह हम सब को जाना अति आवश्यक है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति तक इसकी जानकारी पहुंचा कर ही बिगड़ रहे पर्यावरणीय असंतुलन को संतुलित किया जाना संभव है जागरूकता से ही इसके और अधिक विनाश को कम किया जा सकता है.
पर्यावरण सजीवों को प्रभावित करने वाला सभी जैविक और भौतिक कारकों का मिलाजुला प्रभाव है इसके अंतर्गत वातावरण के भौतिक व रासायनिक कारक जैसे मिट्टी वायु जल प्रकाश अग्नि ताप तथा भौगोलिक स्थिति व जैविक कारक जिनमें सूक्ष्म जीव पेड़ पौधे तथा जीव-जंतुओं को शामिल किया जाता है.
अब हमारे सामने प्रश्न यह उठता है कि आखिर पर्यावरण अध्ययन की हमें आवश्यकता क्यों है इस प्रश्न का उत्तर इस प्रकार दिया जा सकता है. पिछले 100 वर्षों के बाद विश्व के अधिकांश देशों में जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ रही है.
बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु शहरीकरण औद्योगिकीकरण और तकनीकी विकास को बढ़ावा दिया जा रहा है जिसके कारण मानव का प्रकृति में हस्तक्षेप बढ़ रहा है.
विश्व का प्रत्येक देश समग्र या सतत विकास की अवधारणा पर जोर ना देकर अंधाधुंध विकास की होड़ में अपने आप को झोंकना चाहता है जिससे कई पर्यावरणीय समस्याओं ने जन्म लिया है.
विश्व का प्रत्येक देश समग्र या सतत विकास की अवधारणा पर जोर ना देकर अंधाधुंध विकास की होड़ में अपने आप को झोंकना चाहता है जिससे कई पर्यावरणीय समस्याओं ने जन्म लिया है.
जिसका ताजा उदाहरण हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में 30% लोग स्वच्छ जल की पहुंच से दूर है कुछ ऐसे ही प्रतिशत लोगों को बिना खाना खाए सोना पड़ता है.
पर्यावरण प्रदूषण के चलते हिम ग्लेशियर पिघल रहे हैं समुद्र का जल स्तर उत्तरोत्तर भर्ती कर रहा है जिससे दुनिया के 50 से अधिक समुद्री किनारे पर स्थित शहर जलमग्न होने की आशंका जताई जा रही है.
जलवायु परिवर्तन की समस्या में बढ़ोतरी हो रही है जय विविधता कम होती जा रही है मानव प्रकृति के संबंध बिगड़ते जा रहे हैं जिससे अनेक बीमारियों का उद्भव हो रहा है.
जलवायु परिवर्तन की समस्या में बढ़ोतरी हो रही है जय विविधता कम होती जा रही है मानव प्रकृति के संबंध बिगड़ते जा रहे हैं जिससे अनेक बीमारियों का उद्भव हो रहा है.
जिन्होंने मानव को चुनौती दी है इन सभी समस्याओं को मध्य नजर रखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ तथा सभी देश पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए अपना अहम योगदान दे रहे हैं.
प्रतिवर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मना कर तथा कार्यशाला एवं सम्मेलन आयोजित करते हुए पर्यावरण संरक्षण संबंधी जागरूकता को बढ़ाने का कार्य किया जा रहा है.
पारिस्थितिकी पर निबंध अर्थ परिभाषा महत्व (Essay on ecology meaning definition importance in hindi)
पारिस्थितिकी वातावरण और जैविक घटकों के बीच पाए जाने वाले संबंधों को कहा जाता है. सर्वप्रथम 1866 में अर्नेस्ट हैकल द्वारा पारिस्थितिकी को परिभाषित किया गया उनके अनुसार पारिस्थितिकी वह विज्ञान है जिसके तहत सभी जीवो तथा भौतिक पर्यावरण के बीच अंतर संबंधों का अध्ययन किया जाता है.
अतः कहा जा सकता है कि पारिस्थितिकी के अंतर्गत ना केवल पौधों जंतुओं मानव तथा पर्यावरण के अंतर संबंधों का अध्ययन किया जाता है परंतु उसके साथ साथ समाज तथा उसकी भौतिक पर्यावरण के अंतर संबंधों का अध्ययन भी किया जाता है
अतः कहा जा सकता है कि पारिस्थितिकी के अंतर्गत ना केवल पौधों जंतुओं मानव तथा पर्यावरण के अंतर संबंधों का अध्ययन किया जाता है परंतु उसके साथ साथ समाज तथा उसकी भौतिक पर्यावरण के अंतर संबंधों का अध्ययन भी किया जाता है
पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem essay in hindi)
पारिस्थितिकी पारिस्थितिकी तंत्र का एक भाग है जैव मंडल में कई पारिस्थितिकी तंत्र विद्यमान है जीवमंडल से तात्पर्य पृथ्वी के उत्पाद से है जिस पर जीवित प्राणी रहते हैं.
जैसे समुद्र वन मैदान पर्वत 1935 में सर्वप्रथम एजी टांसले द्वारा पारिस्थितिकी तंत्र या ईको सिस्टम शब्द दिया गया तथा इन्होंने जैविक तथा अजैविक घटकों के मध्य अंतर क्रिया से निर्मित इकाई को पारिस्थितिकी तंत्र कहा तथा बताया कि पारिस्थितिकी तंत्र एक प्रकार का खुला तंत्र होता है.
जिसमें ऊर्जा का प्रवाह सतत तथा एक दिशीय होता है इसके अलावा उन्होंने यह भी बताया कि पारिस्थितिकी तंत्र एक क्रियात्मक इकाई होती है.
ओडम के अनुसार जैविक तथा अजैविक घटकों के अंतर संबंधों से निर्मित संरचनात्मक तथा क्रियात्मक इकाई को पारिस्थितिकी तंत्र कहा जाता है. सर्वाधिक विस्तार तथा विशाल एवं स्थाई पारिस्थितिकी तंत्र समुद्री या महासागरीय पारिस्थितिकी तंत्र है.
पारिस्थितिकी तंत्र की विशेषताएं
- पारिस्थितिकी तंत्र एक प्रकार का प्राकृतिक संसाधन तंत्र होता है
- पारिस्थितिकी तंत्र की उत्पादकता इसमें ऊर्जा पर निर्भर करती है और ऊर्जा सूर्य से प्रकाश संश्लेषण के रूप में ग्रहण की जाती है
- पारिस्थितिकी तंत्र को संगठित अथवा व्यवस्थित होता है
- पारिस्थितिकी तंत्र के विभिन्न स्तर ऊर्जा से संचालित होते हैं और ऊर्जा का प्रचार सतत और एक दिशीय होता है.
- पारिस्थितिकी तंत्र एक प्रकार का खुला तंत्र होता है
जैविक समुदाय (Biological community in hindi)
किसी क्षेत्र विशेष में निवास करने वाली विभिन्न प्रजातियों के समूह को जैविक समुदाय कहते हैं जो एक दूसरे से परस्पर क्रिया करती है किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र का विकास जैविक घटकों के साथ-साथ और अजैविक घटकों के अंतर संबंधों से भी होता है.
पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना या घटक (Ecosystem structure or components)
पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना का निर्माण जैविक तथा अजैविक घटकों से मिलकर होता है. जैविक घटक मैं उत्पादक उपभोक्ता तथा अपघटक को शामिल किया जाता है.
वही अजैविक घटकों में भौतिक कारक जैसे तापमान आर्द्रता स्थलाकृति प्रकाश अकार्बनिक जैसे जल वायुमंडलीय गैसे तथा कार्बनिक घटक जैसे प्रोटीन वसा कार्बोहाइड्रेट को शामिल किया जाता है.
जैविक घटक के अंतर्गत उन सभी जीवो को शामिल किया जा सकता है जो प्रकृति में समुदाय के रूप में पाए जाते हैं तथा परस्पर किसी न किसी रूप में अंतरसंबंधित होते हैं इसके अलावा जैविक घटक किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र की पोषक संरचना को भी दर्शाते हैं जैविक घटकों को प्रमुखता तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है.
जैविक घटक के अंतर्गत उन सभी जीवो को शामिल किया जा सकता है जो प्रकृति में समुदाय के रूप में पाए जाते हैं तथा परस्पर किसी न किसी रूप में अंतरसंबंधित होते हैं इसके अलावा जैविक घटक किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र की पोषक संरचना को भी दर्शाते हैं जैविक घटकों को प्रमुखता तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है.
उत्पादक (Manufacturer)
इसके अंतर्गत उन जैविक घटकों को शामिल किया जाता है जो अपना भोजन स्वयं बनाते हैं इसके लिए प्रकाश संश्लेषण तथा रसायन संश्लेषण की प्रक्रिया जिम्मेदार होती है.
हरे पौधे सूर्य के प्रकाश को विकिरण उर्जा के रूप में प्राप्त करके क्लोरोफिल की उपस्थिति में इसे रासायनिक स्थितिज ऊर्जा के रूप में परिवर्तन करते हैं.
जो कार्बनिक यौगिकों के रूप में पादपों के उतको में संचित रहती है इसके अलावा प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के दौरान सहउत्पाद के रूप में ऑक्सीजन की प्राप्ति होती है जिसका उपयोग सभी जीवो के द्वारा किया जाता है
जो कार्बनिक यौगिकों के रूप में पादपों के उतको में संचित रहती है इसके अलावा प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के दौरान सहउत्पाद के रूप में ऑक्सीजन की प्राप्ति होती है जिसका उपयोग सभी जीवो के द्वारा किया जाता है
उत्पादको के अंतर्गत मुख्य रूप से हरे पौधे शैवाल पादप प्लवक डांयटम तथा रसायन संश्लेषित बैक्टीरिया को शामिल किया जाता है जो प्रकाश संश्लेषण द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाते हैं तथा उपभोक्ताओं के लिए भोजन प्रदान करते हैं.
उत्पादकों को परावर्तक भी कहा जाता है क्योंकि यह प्रकाशिक ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तन करने का कार्य करते हैं. पारिस्थितिकी तंत्र में उत्पादकों को प्रथम पोषण स्तर पर रखा जाता है.
उपभोक्ता (Consumer)
ऐसे जैविक घटक जो अपना भोजन स्वयं नहीं बनाते हैं तथा भोजन के लिए उत्पाद को पर निर्भर रहते हैं तथा पोषण स्तर में द्वितीय स्थान रखते हैं उपभोक्ता कहलाते हैं.
उपभोक्ता कई प्रकार के होते हैं यह निर्भर करता है कि वो उत्पादकों से किस प्रकार जुड़े हुए हैं प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से सामान्य तौर पर उपभोक्ताओं को तीन भागों में बांटा जा सकता है.
- प्राथमिक उपभोक्ता उपभोक्ता जो पोषण के लिए पदों पादपों पर निर्भर करते हैं इन्हें परपोषी भी कहा जाता है इसके अलावा इन्हें शाकाहारी भी कहा जाता है तथा यह प्रथम स्तर के उपभोक्ता होते हैं जैसे गाय बकरी हिरण इत्यादि घास खाकर मांस बनाने का कार्य करते हैं. आधुनिक पारिस्थितिकी तंत्र में प्राथमिक उपभोक्ताओं को द्वितीयक उत्पादक भी माना जाता है पारिस्थितिकी तंत्र में प्राथमिक उपभोक्ता दूसरे पोषण स्तर पर पाए जाते हैं
- द्वितीयक उपभोक्ता पारिस्थितिकी तंत्र में द्वितीय स्तर के उपभोक्ता होते हैं जो अपना भोजन प्राथमिक उपभोक्ता या शाकाहारी जीवो से प्राप्त करते हैं वित्तीय उपभोक्ता सामान्य तौर पर मांसाहारी होते हैं मेंढक इसका उदाहरण है
अपघटक (Decomposer)
अपघटक में बैक्टीरिया तथा कवको को शामिल किया जाता है जो विभिन्न कार्बनिक पदार्थों को उनके निर्माण कारी अववयो में परिवर्तित कर देते हैं ये सूक्ष्म जीव अपने पाचक एंजाइम के द्वारा उत्पादक तथा उपभोक्ता ओं के मृत शरीर में पाए जाने वाले जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल कार्बनिक पदार्थों में परिवर्तित कर देते हैं और पुनः यह सरल कार्बनिक पदार्थ पोषक के रूप में उत्पादकों को प्राप्त हो जाते हैं.
अजैविक घटक (Abiotic component)
अजैविक घटक विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्र में पाए जाने वाले जीवो के वर्गीकरण को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जैसे मरुस्थलीय क्षेत्रों में पाई जाने वाली वनस्पति तथा जीव सदाहरित वनों में पाई जाने वाली वनस्पति तथा जीवो से अलग होगी.
इसके अलावा ऊंचाई की तरफ जाते हैं तो वनस्पति तथा जीवो में भिन्नता देखने को मिलती है जैसे ध्रुवीय क्षेत्र में पाए जाने वाले भालू का आकार बड़ा व कान तथा पूंछ छोटे होते हैं जबकि हिमालय क्षेत्र में पाए जाने वाले भालू की कान वह पूछ बड़ी होती है.
पारिस्थितिकी तंत्र के कार्य (structure and function of ecosystem in hindi)
पोषण स्तर: किसी भी परिस्थिति की तंत्र में और श्रंखला के उस बिंदु को पोषण स्तर कहा जाता है जहां पर एक वर्ग के जीवो से दूसरे वर्ग के जीवो में ऊर्जा का स्थानांतरण होता है सामान्य तौर पर आहार श्रंखला चार पोषण स्तर में विभाजित होती है जिसे T1 T2 T3 T4 के द्वारा दर्शाया जाता है.
खाद्य श्रंखला: किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र में आहार तथा ऊर्जा का स्थानांतरण एक वर्ग के जीवो से दूसरे वर्ग के जीवो में क्रमिक रूप से होता है जिसे खाद्य श्रंखला कहा जाता है.
खाद्य श्रंखला: किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र में आहार तथा ऊर्जा का स्थानांतरण एक वर्ग के जीवो से दूसरे वर्ग के जीवो में क्रमिक रूप से होता है जिसे खाद्य श्रंखला कहा जाता है.
इसके अंतर्गत विभिन्न जीव को पोषण स्तर के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़े होते हैं अर्थात एक जीव किसी अन्य जीव का भोजन बन जाता है एक दूसरे को खाने वाले जीवो का अनुक्रमण खाद्य श्रंखला का निर्माण करता है.
इसलिए खाद्य श्रंखला विभिन्न जीवो के मध्य पाया जाने वाला अन्योश्रित संबंध होता है जिसमें एक जीव को दूसरे जीव तथा दूसरे जीव को अन्य जीव को खाए जाने के माध्यम से ऊर्जा का स्थानांतरण होता है.
इसलिए खाद्य श्रंखला विभिन्न जीवो के मध्य पाया जाने वाला अन्योश्रित संबंध होता है जिसमें एक जीव को दूसरे जीव तथा दूसरे जीव को अन्य जीव को खाए जाने के माध्यम से ऊर्जा का स्थानांतरण होता है.
इसमें ऊर्जा का स्थानांतरण 10% नियम के अनुसार होता है जिसके अनुसार निम्न पोषण स्तर से उच्च पोषण स्तर की ओर जाने पर प्राप्त होने वाली ऊर्जा की मात्रा कम होती जाती है खाद्य श्रंखला सामान्य से तीन प्रकार की होती है.
- शाकवर्ती खाद्य श्रंखलाश्रंख
- परजीवी खाद्य श्रंखला
- मृतोपजीवी खाद्य श्रंखला
खाद्य जाल: पारिस्थितिकी तंत्र में अनेक खाद्य श्रंखला आपस में किसी न किसी पोषण स्तर से जुड़कर एक जटिल खाद्य जाल का निर्माण करती है अतः किसी खाद्य जाल की विशालता एवं जटिलता जितनी ज्यादा होगी पारिस्थितिकी तंत्र उतना ही ज्यादा स्थाई तथा संतुलित होगा खाद्य जाल जीवो की बहुदिशीय संबंधों को प्रकट करता है.
इसमें एक जीव के पास अनेक विकल्प होते हैं इसलिए यदि पारिस्थितिकी तंत्र से कोई जीव विलुप्त हो जाए तो खाद्य जाल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि विलुप्त जीव की आपूर्ति अन्य जीवों द्वारा कर दी जाती है
इसमें एक जीव के पास अनेक विकल्प होते हैं इसलिए यदि पारिस्थितिकी तंत्र से कोई जीव विलुप्त हो जाए तो खाद्य जाल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि विलुप्त जीव की आपूर्ति अन्य जीवों द्वारा कर दी जाती है
अतः खाद्य जाल में ऊर्जा का प्रवाह एक दिशा मे होते हुए भी बहुत दिशीय परिपथ से होता है खाद्य जाल का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह पारिस्थितिकी तंत्र के स्थायित्व को बनाए रखने में सहायता करता है.
पारिस्थितिक पिरामिड (ecological pyramids introduction in hindi)
किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र में जब जैविक समुदाय को ग्राफ चित्रण के माध्यम से दर्शाया जाता है तो पिरामिड के आकार में उल्टा या सीधा हो सकता है तो उसे पारिस्थितिकीय पिरामिड कहा जाता है.
अर्थात पारिस्थितिकी तंत्र में उत्पादको तथा विभिन्न उपभोक्ताओं के मध्य संबंध को पोषण स्तर के माध्यम से संख्या जैवभार या ऊर्जा के रूप में दर्शाया जाए तो इसे ही पारिस्थितिकी पिरामिड कहते हैं.
पारिस्थितिकी पिरामिड की अवधारणा 1927 में चार्ल्स एल्टन ने दी इसलिए इससे एल्टोनियन पिरामिड नाम से भी जाना जाता है. पिरामिड का आधार ताल प्रथम पोषण स्तर से बना होता है जिसमें उत्पादकों को शामिल किया जाता है. मुख्य रूप से पिरामिड के तीन प्रकार होते हैं.
उम्मीद करता हूँ दोस्तों पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर निबंध Essay on environment and ecology in hindi का यह निबंध आपकों पसंद आया हो तो अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करें.
पारिस्थितिकी पिरामिड की अवधारणा 1927 में चार्ल्स एल्टन ने दी इसलिए इससे एल्टोनियन पिरामिड नाम से भी जाना जाता है. पिरामिड का आधार ताल प्रथम पोषण स्तर से बना होता है जिसमें उत्पादकों को शामिल किया जाता है. मुख्य रूप से पिरामिड के तीन प्रकार होते हैं.
- संख्या पिरामिड: जब किसी पारिस्थितिकी तंत्र में पाए जाने वाले उत्पादको तथा उपभोक्ताओं के संबंध को उनकी संख्या के आधार पर दर्शाया जाता है तो उसे संख्या पिरामिड कहा जाता है या पिरामिड सीधा तथा उल्टा हो सकता है. संख्या पिरामिड में घास तथा जलीय पारिस्थितिकी तंत्र का पैरामेंट सीधा बनेगा वहीं वृक्ष पारिस्थितिकी तंत्र का उल्टा पिरामिड बनेगा. उल्टा संख्या पिरामिड से तात्पर्य है कि उच्च पोषण स्तर कि ओर संख्या में निरंतर वृद्धि होती जाती है जिसके कारण आधार तल संकुचित तथा शीर्ष विस्तृत हो जाता है.
- जैव भार पिरामिड: जब किसी पारिस्थितिकी तंत्र में पाए जाने वाले उत्पादको तथा उपभोक्ताओं के बीच जैव भार के संबंध का ग्राफीय चित्रण जैव भार पिरामिड कहलाता है. अतः किसी जीवित प्राणी में उपलब्ध कार्बनिक पदार्थों का कॉल सोच को बाहर जैव भार कहलाता है जिसे किलोग्राम प्रति मीटर स्क्वायर के द्वारा दर्शाया जाता है. इसके अंतर्गत पौधों तथा जंतुओं को सम्मिलित किया जाता है इसलिए जैव भार पिरामिड के अंतर्गत प्रत्येक पोषण स्तर पर मौजूद समस्त जीवो को एकत्रित कर उनके शुष्क भार का मापन किया जाता है.इस तरह की पिरामिड में घास पारिस्थितिकी तंत्र का पिरामिड सीधा जलीय पारिस्थितिकी तंत्र का पिरामिड उल्टा तथा वृक्ष पारिस्थितिकी तंत्र का पिरामिड सीधा बनता है.
- ऊर्जा पिरामिड: ऊर्जा पिरामिड हमेशा सीधा होता है क्योंकि पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह एक दिशा में होता है. इसलिए जब प्रथम पोषण स्तर से सर्वोच्च पोषण स्तर की ओर जाते हैं तो शवसन पर क्रिया के दौरान ऊर्जा की कुछ मात्रा कम हो जाती है. अतः ऊर्जा का प्रवाह 10% नियम के अनुसार होता है यह पिरामिड पारिस्थितिकी तंत्र की उत्पादकता को बताता है.
पारिस्थितिक अनुक्रमण (Ecological sequencing in hindi)
यह एक प्रकार की अनुक्रमण प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी क्षेत्र विशेष में पाई जाने वाली वनस्पतियों तथा जंतु समुदाय समय के साथ दूसरे समुदाय में प्रतिस्थापित होता है अर्थात एक समुदाय का स्थान दूसरा समुदाय ले लेता है तो इसे पारिस्थितिकी अनुक्रमण कहते हैं.
इस अनुक्रमण में जैविक तथा अजैविक दोनों घटक शामिल होते हैं. अतः पारिस्थितिकी अनुक्रमण मंद गति से होने वाली दीर्घकालिक प्रक्रिया है जिसमें क्रमिक रूप से जैविक समुदायों का विकास होता है. अनुक्रमण शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1885 में हुल्ट नामक व्यक्ति के द्वारा किया गया जबकि यह अवधारणा 1907 में वार्मिंग तथा क्लीमेंट के द्वारा प्रस्तुत की गई.
अनुक्रमण के अंतर्गत भाग लेने वाले प्रथम जैविक समुदाय नवीन समुदाय का अग्रगामी कहलाता है जबकि अनुक्रम के प्रत्येक परिवर्तन में भाग लेने वाले समुदाय को कर्म समुदाय तथा इस प्रक्रिया के अंत में अपने आप को स्थापित करने वाला समुदाय चरम समुदाय कहलाता है.
पारिस्थितिकी अनुक्रमण मुख्यतः दो प्रकार का होता है प्राथमिक अनुक्रमण तथा द्वितीय अनुक्रमण
इस अनुक्रमण में जैविक तथा अजैविक दोनों घटक शामिल होते हैं. अतः पारिस्थितिकी अनुक्रमण मंद गति से होने वाली दीर्घकालिक प्रक्रिया है जिसमें क्रमिक रूप से जैविक समुदायों का विकास होता है. अनुक्रमण शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1885 में हुल्ट नामक व्यक्ति के द्वारा किया गया जबकि यह अवधारणा 1907 में वार्मिंग तथा क्लीमेंट के द्वारा प्रस्तुत की गई.
अनुक्रमण के अंतर्गत भाग लेने वाले प्रथम जैविक समुदाय नवीन समुदाय का अग्रगामी कहलाता है जबकि अनुक्रम के प्रत्येक परिवर्तन में भाग लेने वाले समुदाय को कर्म समुदाय तथा इस प्रक्रिया के अंत में अपने आप को स्थापित करने वाला समुदाय चरम समुदाय कहलाता है.
पारिस्थितिकी अनुक्रमण मुख्यतः दो प्रकार का होता है प्राथमिक अनुक्रमण तथा द्वितीय अनुक्रमण
पारिस्थितिकी अनुक्रमण 6 चरणों यथा सर्वप्रथम वनस्पति रही क्षेत्र का विकास होता है तथा अग्रगामी समुदाय द्वारा स्थान लिया जाता है.
दूसरे चरण में प्रवास होता है इसके अंतर्गत दूसरे स्थानों से भी नई प्रजातियों का आगमन होता है. तीसरे चरण में आस्थापन के अंतर्गत निकट क्षेत्रों से प्रकीर्णन के विभिन्न माध्यमों के द्वारा अनेक प्रजातियों का नवीन अंकुरण होता है.
चतुर्थ चरण के अंतर्गत प्रतिस्पर्धा संसाधनों को लेकर विभिन्न प्रजातियों के मध्य होती है. पंचम चरण में प्रतिक्रिया होती है जो जैविक तथा अजैविक घटकों के मध्य होती है.
दूसरे चरण में प्रवास होता है इसके अंतर्गत दूसरे स्थानों से भी नई प्रजातियों का आगमन होता है. तीसरे चरण में आस्थापन के अंतर्गत निकट क्षेत्रों से प्रकीर्णन के विभिन्न माध्यमों के द्वारा अनेक प्रजातियों का नवीन अंकुरण होता है.
चतुर्थ चरण के अंतर्गत प्रतिस्पर्धा संसाधनों को लेकर विभिन्न प्रजातियों के मध्य होती है. पंचम चरण में प्रतिक्रिया होती है जो जैविक तथा अजैविक घटकों के मध्य होती है.
छठे चरण को को स्थिरीकरण कहते हैं इसके अंतर्गत जो प्रजाति वातावरण में कारकों के साथ अनुकूलन स्थापित कर लेती है वह प्रजाति अन्य जैविक समुदायों को विस्थापित कर स्वयं चरम समुदाय बन जाती है.
पारिस्थितिकी कर्मता (Ecological worker in hindi)
पारिस्थितिकी तंत्र में जीव-जंतुओं तथा वनस्पतियों की अनेक प्रकार की प्रजातियां तथा उनकी उपजातियां भी पाई जाती है परंतु सभी प्रजातियां एक साथ निवास करने मैं सक्षम नहीं हो पाती
अतः किसी पारिस्थितिकी तंत्र में एक ही प्रकार की जाति के लिए एक स्थानीय क्षेत्र संरक्षित रहता है. जिसके संसाधनों का उपयोग करते हुए वह प्रजाति अपना जीवन यापन करती है तो इसी संरक्षित क्षेत्र को पारिस्थितिकी कर्मता कहा जाता है.
ओडम के अनुसार एक सूक्ष्म आवास स्थान जहां पर एक ही प्रजाति निवास करती है उसे पारिस्थितिकी कर्मता कहते हैं. पारिस्थितिकी कर्मता शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1971 में जोसेफ ग्रीनेल्स ने किया.
पारिस्थितिकी तंत्र में पारिस्थितिकी कर्मता से किसी प्रजाति के स्थान का पता चलता है कोई भी दो अलग अलग प्रजातियों का एक ही पारिस्थितिकी निकेत नहीं हो सकता.
संकेतक प्रजाति (Signal species)
ऐसी प्रजातियां जो पर्यावरण परिवर्तन के लिए अत्यधिक संवेदनशील होती है उन्हें संकेतक प्रजाति कहा जाता है इसके अंतर्गत वनस्पति व जीव जंतुओं को शामिल किया जाता है.
संकेतक प्रजाति पारिस्थितिकी तंत्र की हानि से तुरंत प्रभावित होती है जिसके कारण इसे चेतावनी के रूप में काम में लिया जाता है जैसे जल में प्रदूषण के स्तर को ज्ञात करने के लिए मछली शेवाल कवक तितली इत्यादि.
फाउंडेशन प्रजाति (Foundation Species)
वे प्रजातियां जो दूसरी प्रजातियों के निर्माण व संरक्षण में अपनी अहम भूमिका का निर्वहन करती है जैसे प्रवाल भित्ति का निर्माण अन्य प्रजातियों के लिए निवास का कार्य करती है.
अंब्रेला प्रजाति (Umbrella species)
ऐसी विशाल वनस्पतियां या जैविक समुदाय जिस पर अनेक प्रजातियां निर्भर होती है तो उसे अंब्रेला प्रजाति कहा जाता है जैसे पौधों पर अनेक प्रजातियां निर्भर करती है.
जैव संचय (Bio harvesting)
एक ऐसी प्रक्रिया जिसके तहत जैव अनिम्नीकरण रासायनिक प्रदूषणको का संचयन किसी एक पोषण स्तर पर होता जाए तो इसे जैव संचयन कहा जाता है.
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