मंगल पांडे पर निबंध | Essay on Mangal Pandey in Hindi
आजादी की लड़ाई के शूरवीर कहे जाने वाले मंगल पांडे जी का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा नाम के गांव में हुआ था। इनके पिता जी का नाम दिवाकर पांडे और इनकी माता जी का नाम अभय रानी था। मंगल पांडे जाति से ब्राह्मण समुदाय से तालुकात रखते थे।
मंगल पांडे साल 1849 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के द्वारा बनाई गई आर्मी में भर्ती हुए और इन्हें पहली पोस्टिंग 34वी बंगाल नेटिव इन्फेंट्री में पैदल सेना में सिपाही के तौर पर मिली।
भारतीय लोगों के प्रति अंग्रेजों के क्रूरता भरे व्यवहार से मंगल पांडे के मन में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ नफरत के बीज पनपने लगे और इसके पश्चात जब अंग्रेजी कंपनी की सेना की बंगाल इकाई में एनफील्ड p.53 राइफल में नई कारतूस का इस्तेमाल किया जाना प्रारंभ हुआ तो मंगल पांडे के द्वारा इन कारतूस का इस्तेमाल करने से मना कर दिया गया।
जिसके पीछे वजह यह थी कि कुछ लोगों ने ऐसी खबर फैला दी थी कि इन कारतूस को तैयार करने में सूअर और गाय की चर्बी का इस्तेमाल किया गया है। इस प्रकार से हिंदू और मुसलमान दोनों ही सैनिकों के लिए यह धर्म का विषय बन गया।
इस अफवाह की वजह से हिंदू और मुसलमान दोनों ही लोगों के मन में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भयंकर आक्रोश पैदा हो गया। इसके पश्चात साल 1857 में 9 फरवरी के दिन जब यह कारतूस भारतीय सैनिकों को बांटे गए तो उन्होंने इसे इस्तेमाल करने से मना कर दिया जिसमें सबसे आगे मंगल पांडे थे।
मंगल पांडे की मनाही से गुस्साए हुए अंग्रेज अफसर ने मंगल पांडे के हथियार उनसे छीन लिए और उनसे वर्दी उतारने के लिए भी कह दिया परंतु मंगल पांडे अपनी बात से जरा भी नहीं हटे और मंगल पांडे के द्वारा अंग्रेजी अधिकारी पर हमला कर दिया गया।
इस प्रकार से मंगल पांडे ने 1857 में अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बैरकपुर छावनी में 29 मार्च को बजा दिया गया। मंगल पांडे के द्वारा आगे बढ़े हुए अंग्रेजी अधिकारी की हत्या भी कर दी गई। इसके बाद मंगल पांडे ने एक और क्रूर और अत्याचारी अंग्रेजी अधिकारी लेफ्टिनेंट बोब की भी हत्या कर दी गई।
इस घटना के पश्चात अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा मंगल पांडे को गिरफ्तार कर लिया गया और कोर्ट मार्शल का मुकदमा चला कर के उन्हें साल 1857 में 6 अप्रैल के दिन फांसी की सजा सुना दी गई और 8 अप्रैल साल 1857 में उन्हें फांसी दे दी गई।
मंगल पांडे को फांसी देने के सिर्फ 1 महीने के पश्चात ही उत्तर प्रदेश के मेरठ की सैनिक छावनी में 10 मई को भयंकर बगावत हो गई और देखते ही देखते पूरे भारत देश में अंग्रेजों के खिलाफ लोगों का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। लोगों ने सामूहिक रूप से कई अंग्रेज अधिकारियों को मौत के घाट उतार दिया।
हालांकि अंग्रेजो के द्वारा जल्दी ही इस विद्रोह पर काबू कर लिया गया परंतु जिंदा रहते हुए मंगल पांडे के द्वारा आजादी की जो चिंगारी जलाई गई थी वह आज भी जल रही है। मंगल पांडे और मंगल पांडे जैसे अन्य लोगों की वजह से ही आज हम खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं। इसके लिए हम सभी भारत माता के सपूतों को बारंबार नमन करते हैं और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं।