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बाल गंगाधर तिलक पर निबंध | Essay on Bal Gangadhar Tilak in Hindi

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक पर निबंध | Essay on Bal Gangadhar Tilak in Hindi- हमारे देश की आजादी की जंग की शुरुआत करने वाले तथा देश के महान स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक को गांधीजी भी अपना गुरु मानते थे. तथा उनकी धारणाओं का अनुसरण करते थे. आज हम बाल गंगाधर तिलक के बारे में जानेंगे.

बाल गंगाधर तिलक पर निबंध | Essay on Bal Gangadhar Tilak in Hindi

बाल गंगाधर तिलक पर निबंध | Essay on Bal Gangadhar Tilak in Hindi
Bal Gangadhar Tilak in Hindi

बाल गंगाधर तिलक एक महान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सैनिक, राजनीतिज्ञ, और साहित्यकार थे, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अपने विचारों और क्रियाओं के माध्यम से लोगों को स्वतंत्रता के लिए जागरूक किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की आग को जलाया। इस निबंध में, हम बाल गंगाधर तिलक के जीवन, कार्य, और उनके महत्व के बारे में विस्तार से जानेंगे।

दोस्तों आज हम आपको लाल-बाल-पाल के सदस्य और कॉंग्रेस के विभाजन के बाद 1907 में बने गरम दल के सदस्य थे. इन्होने देश की आजादी के लिए संघर्ष किया. उन्होंने गांधीजी की राह पर न चलकर देश को आजादी दिलाने में अपना योगदान दिया.

बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के एक छोटे से गाँव चिंचपोखली में हुआ था। उनके पिता का नाम पांडुरंग पंत तिलक था और वे एक वकील थे। तिलक ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पुणे और मुंबई में पूरी की, और फिर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने भारतीय संस्कृति और विद्वानों के काम को अपनी शिक्षा का हिस्सा बनाया और संघर्षपूर्ण प्रकृति के साथ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया।

लोकमान्य तिलक कट्टरपंथी नेता तथा एक लोकप्रिय नेता के रूप में सामने आए. इन्होने जीवनभर देश की आजादी की जंग लड़ी इस दौरान इन्हें जेल भी जाना पड़ा. 

बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई, 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में हुआ था. तिलक को बचपन में उन्हें केशव तथा बाल के नाम से जानते थे. आज हम उन्हें लोकमान्य तिलक के नाम से जानते है.

बाल गंगाधर तिलक एक महान नेता, लेखक तथा समाज सुधारक थे. ये पेशे से एक वकील भी थे. ये एक देशभक्त क्रांतिकारी भी थे. इन्होने कौंग्रेस के साथ मिलकर कार्य भी किया.

लोकमान्य तिलक जी ने स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा. का नारा देकर अंग्रेजी सरकार का विरोध किया. 1 अगस्त, 1920 को इस महान देशभक्त की मौत हो गई.

तिलक जी उग्र दल के प्रमुख व्यक्ति थे. जिस कारण इनका देश की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान रहा. लेखक वेलेंटाइन चिरोल ने बाल गंगाधर को अशांति का जन्मदाता कहा.

1890 के वर्ष में लोकमान्य तिलक ने Indian National Congress की पार्टी में भाग लिया. इस पार्टी में महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल तथा लाला लाजपतराय प्रमुख थे.

लोकमान्य तिलक जी का मानना था, कि अंग्रेजो का बहिष्कार कर इन्हें देश से भगाया जा सकता है. इनकी वस्तुओ को न खरीदकर, इनके कार्यो को न करके तथा इनका सहयोग न कर हम इन्हें भगा सकते है.

इस धारणा के अनुसार महात्मा गांधी ने देश में स्वदेशी अपनाओ की बात कई तथा देश में सभी लोगो ने स्वदेशी अपनाकर अंग्रेजी वस्तुओ का बहिष्कार शुरू किया.

1916 के साल में तिलक जी ने All India Home Rule League की स्थापना की. इसके बाद हिन्दू मुस्लिम एकता की धारणाओं से प्रेरित तिलक जी को हिन्दू धर्म की ओर से तथा जिन्ना को मुस्लिमो की ओर से कौंग्रेस का प्रतिनिधित्व करवाया.

ये एक लेखक तथा पत्रकार भी थे. इन्होने गीता रहस्य तथा  आर्कटिक होम नामक किताबे भी लिखी. तथा केसरीऔर मराठा नामक पत्रों का सम्पादन भी किया. कई सालो तक जेल की सजा भी काटी.

अपने राज्य में हिन्दू धर्म के प्रमुख पर्वो में से एक गणेश चतुर्थी का प्रसार प्रचार किया. तथा हिन्दुओ के शोषण के खिलाफ आवाज उठाई. कहा धार्मिक ग्रंथो पर बल देना होगा.

आज भी बाल गंगाधर तिलक के विचारों से हमारा देश विकास कर रहा है. उन्होंने स्वदेशी अपनाने की अपील की. देश आज आत्मनिर्भर बनने की ओर अग्रसर हो रहा है.आज भी हमे तिलक जी से कुछ न कुछ सिखने को मिलता है.

Essay on Bal Gangadhar Tilak in Hindi

स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है इसे मैं लेकर रहूंगा। ऐसी विचारधारा वाले थे हमारेेेेे बाल गंगाधर तिलक। बाल गंगाधर तिलक एक महान देशभक्त तथा उग्र राष्ट्रवादी व्यक्ति भी थे।

इन्होंनेेेे जीवन भर स्वराज्य के लिए संघर्ष किया। यह केवल एक स्वतंत्रता सेनानी नहीं थे यह एक महान दार्शनिक विचारक तथा अच्छी मानसिकता वाले व्यक्ति थे।

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को रत्नागिरी जिला महाराष्ट्र में हुआ। इनका जन्म एक सुसंस्कृत परिवार में हुआ। इनका संपूर्ण परिवार शिक्षा से निपुणता। इनके दादा जी उच्च पद के विद्वान थे तथा इनके पिताजी गंगाधरशिराव जी शिक्षक के पद पर कार्यरत थे।

दादा जी बचपन में ही बाल गंगाधर तिलक को देशभक्ति की अनेक कहानियां सुनाते थे। जिनका प्रभाव बाल तिलक पर पड़ा। वे बचपन से ही एक महान देशभक्त बनना चाहते थे। 

शिक्षा के मामले में पिताजी ने इन्हें गणित मराठी संस्कृत का ज्ञान करवा दिया। देशभक्त होने के नाते लोकमान्य तिलक अंग्रेजों से घृणा करने लगे। तथा हमेशा सभी को अंग्रेजो के खिलाफ तैयार करते थे.

इनका बचपन रत्नागिरी में ही बीता। लोकमान्य तिलक की माता का नाम पार्वतीबाई था जो कि एक धार्मिक महिला थी इनका प्रभाव लोकमान्य तिलक के जीवन पर दिखाई पड़ता है। बचपन के कुछ ही सालों में गंगाधर राव जी का ट्रांसफर पूना में हो जाता है तथा संपूर्ण परिवार पूना चला जाता है।

पुणे के स्कूल में 1866 में बाल गंगाधर तिलक ने पूना विद्यालय में दाखिला लिया। लेख शिक्षा में पहले से ही काफी होनहार थे। होनहार के साथ-साथ पर आदर्श विद्यार्थी साहसी तथा पराक्रमी विद्यार्थी भी थे।

वे कभी सत्य का साथ नहीं छोड़ते थे। वह हमेशा कठिन सवालों को हल किया करते थे। उनका मानना था कि कठिन सवालों को हल करने से सरल सवालों का हाल अपने आप ही हो जाता है।

इन्हें बचपन में केशव तथा बलवान के नाम से जाना जाता था। मात्र 10 वर्ष की अल्पायु में ही माता पार्वती बाई का देहांत हो गया। इसके बाद ढक्कन कॉलेज में इन्होंने स्नातक तक की शिक्षा पूर्ण की। शिक्षा को हथियार के रूप में उपयोग करने के लिए बालगंबाल तिलक ने केसरी नामक पत्रिका का संपादन शुरू किया इसका उद्देश्य लोगों को शिक्षा के प्रति जागरूक करना था।

साल 1981 में बाल गंगाधर तिलक कांग्रेस पार्टी से जुड़े तथा उन्होंने सबसे पहले आर्मी के नियमों मैं बदलाव करने का प्रस्ताव रखा। गंगाधर तिलक सामुदायिक सभाओं के माध्यम से लोगों को देश स्वराज्य के लिए प्रेरित करते थे।

स्वराज्य के लिए सक्रिय रूप से लोगों को जागरूक करने तथा अंग्रेजों को देश से खदेड़ने की लगातार प्रयास के कारण बाल गंगाधर तिलक को 1897 मैं तथा 1908 में जेल जाना पड़ा। 1960 में जब तलक को 6 साल की सजा सुनाई गई तो इस बार उन्हें मांडले जेल में कैद कर लिया गया था।

मांडले जेल में रहकर लोकमान्य तिलक ने भागवत गीता को पढ़कर उसके रहस्य के बारे में जानकर एक पुस्तक लिखी जिसका नाम गीता का रहस्य था। जेल से रिहा होने के बाद गंगाधर तिलक ने होमरूल लीग की स्थापना भी की।

उसी साल कांग्रेस और मुस्लिम लोगों के बीच सामंजस्य बैठाने में गंगाधर तिलक ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
इसके बाद महात्मा गांधी के नेतृत्व में किए गए असहयोग आंदोलन में गंगाधर तिलक ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।

लाला लाजपत राय बाल गंगाधर तिलक तथा बपिन चंद्र पाल के संगठन ने अंग्रेजी सरकार को काफी प्रभावित किया इसलिए इन्हें लाल पाल पाल के नाम से संबोधित किया गया। असहयोग आंदोलन के दौरान तिलक ने संपूर्ण देश में अंग्रेजों का बहिष्कार कर उनके अधीन में कार्य न करने के लिए प्रेरित किया।

गंगाधर तिलक के अनुसार स्वराज्य वह है जिसमें सभी लोगों को समानता दी जाती है तथा सभी के हित में सभी के कल्याण के लिए तथा सभी को मध्य नजर रखते हुए कानून व्यवस्था बनाई जाए तथा उसका पालन किया जाए।

देश के मसीहा देशभक्त वकील राजनेता शिक्षक के रूप में कार्य करने वाले केशव बाल गंगाधर तिलक 1 अगस्त 1920 को इस संसार को अलविदा कह गए। लोकमान्य तिलक के इस अहम योगदान को हम कभी भूल नहीं सकते है।

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक पर निबंध

महान देशभक्त लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी का जन्म 23 जुलाई 1856 को रत्नागिरी जिला जो कि वर्तमान में महाराष्ट्र राज्य में सम्मिलित है मैं हुआ था। तिलक का जन्म मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ जोकि शिक्षा की दृष्टि से निपुण था।

बाल गंगाधर तिलक के बचपन का नाम केशव गंगाधर तिलक था इन्हें प्यार से बाल तथा केशव के नाम से बुलाते थे। इनके पिता जी का नाम गंगाधर राव तथा माता का नाम पार्वती बाई था। इनके पिताजी एक प्रसिद्ध विद्वान शिक्षक थे।

लोकमान्य तिलक बचपन से ही देशभक्त थे वह बड़े होकर स्वतंत्रता आंदोलनों में भाग लेने लगे और एक कट्टरपंथी नेतृत्वकर्ता के रूप में उन्होंने हमारे देश को आजाद कराने के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया लोकमान्य तिलक की धारणाएं महात्मा गांधी के समक्ष थी।

कुछ ऐसी धारणा है जिनमें महात्मा गांधी भी गंगाधर तिलक का अनुसरण करते नजर आते थे। गंगाधर तिलक जब 10 वर्ष की आयु के थी उस समय उनकी माता पार्वती बाई का देहांत हो गया तथा 16 वर्ष की आयु में उनके पिता का भी देहांत हो गया।

बाल गंगाधर तिलक का विवाह 16 वर्ष की आयु में सत्यभान भाई के साथ संपन्न हुआ। उस समय वे पुणे में डेक्कन कॉलेज से बीए की डिग्री के लिए पढ़ाई कर रहे थे डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने मुंबई में शिक्षा ग्रहण कर लॉ की डिग्री भी प्राप्त की।

गंगाधर तिलक ने कुछ समय तक अध्यापन का कार्य भी किया तथा कुछ समय के लिए पत्रकारिता का भी कार्य किया उन्होंने अपने कुछ साथियों की सहायता लेकर 1884 में डेक्कन सोसायटी की स्थापना की। जो इनका सबसे अच्छा कार्य था।

एक अंग्रेज राइटर ने बाल गंगाधर तिलक को भारतीय अशांति का पिता कहा। वे हमेशा चरमपंथियों कि चाहता करते थे। यह कैसी नामक पत्रिका के माध्यम से देश के लोगों को जागरूक करने के लिए हमेशा इसका संपादन करते थे।

केसरी पत्रिका का निरंतर संपादन करने के कारण बाल गंगाधर तिलक को 6 वर्ष के लिए मांडले जेल में कैद कर लिया गया। तिलक 1960 से 1914 तक जेल में रहे इस समय उन्होंने गीता का अध्ययन कर गीता के राज्यों के बारे में लिखा तथा एक पुस्तक का संपादन किया जिसका नाम गीता रहस्य रखा।

गंगाधर तिलक की यह पुस्तक काफी लोकप्रिय हुई इस पुस्तक को देश में अनेक लोगों ने खरीदा सदा गीता के रहस्य के बारे में पड़ा इस पुस्तक से जो भी पैसे प्राप्त हुए गंगाधर तिलक ने उन्हें खुद रखने की बजाय स्वतंत्रता आंदोलनों में दान करने को दे दिया। इस प्रकार उन्होंने आर्थिक सहायता भी की।

कांग्रेस पार्टी से जोड़ने से पहले तिलक हिंसात्मक रूप से देश की आजादी चाहते थे लेकिन जब से वह कांग्रेस की पार्टी में जुड़े उसके बाद उनका प्रभाव गांधी जी से पड़ा जिस कारण उनकी धारणा बदली और उन्होंने भी अहिंसा का रास्ता चुना।

महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक की जोड़ी ने अंग्रेजों के लिए मुश्किल खड़ी कर दी। तिलक ने देश के नागरिकों को स्वतंत्रता आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रेरित किया उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन को परिभाषित करते हुए इसे कर्म योग बताया जिसका शाब्दिक अर्थ होता है क्रिया का योग।

बाल गंगाधर तिलक स्वामी विवेकानंद के समकालीन भी थे उन्होंने स्वामी विवेकानंद के साथ भी काफी समय तक कार्य किया विवेकानंद से काफी प्रभावित थे और विवेकानंद का निधन होने के बाद उन्होंने काफी दिन तक शौक भी रखा।

लोकमान्य तिलक ना केवल राजनैतिक सुधार करना चाहते थे बल्कि वे हर प्रकार की प्रणाली में सुधार चाहते थे इसलिए उन्होंने सामाजिक सुधार की ओर भी ध्यान दिया। उनका मानना था कि सामाजिक सुधार से सभी सुधारों को किया जा सकता है।

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक एक ऐसे व्यक्ति थे जो देश के लिए हर क्षेत्र में अपना सब कुछ समर्पित करने के लिए तत्पर रहें 1 अगस्त 1920 को इनका देहांत हो गया यह एक स्वतंत्रता सेनानी एक पत्रकार के रूप में एक अध्यापक एक समाज सुधारक तथा एक लेखक के रूप में भी इन्होंने कार्य किया।

लोकमान्य तिलक के देहांत को आज 100 वर्ष से भी अधिक समय हो गया है लेकिन हम उनके साहस, देशभक्ति और राष्ट्रवादी भावनाओं को भुला नहीं पाए हैं। आज हमारे लिए लोकमान्य तिलक प्रेरणा का साधन बने हुए हैं।

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