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बेईमानी पर निबंध | essay on dishonesty in hindi

बेईमानी पर निबंध | essay on dishonesty in hindi: नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत हैं आज हम जानेगे कि बेईमानी क्या है लोग क्यों ईमानदारी की बजाय बेईमानी को अपनाते हैं इस निबंध स्पीच में हम बेईमानी के बारे में विस्तार से जानेगे.

बेईमानी पर निबंध | essay on dishonesty in hindi

आज हम एक ऐसे दौर में जी रहे है जहाँ नैतिक मूल्यों का कोई महत्व नहीं रह गया हैं. मनुष्य को जो कर्म करने चाहिए अर्थात जो एक व्यक्ति के कर्तव्य, धर्म या दायित्व है उन्हें निभाने को ही हम ईमानदारी कह देते हैं. जबकि अपने कर्मों को निस्वार्थ रूप से बेहतर से बेहतर करने का कोई मूल्य नहीं रह गया हैं.

कलियुग अपनी पराकाष्टा पर हैं, मानवता लोगों के कुकर्मों से त्रस्त होकर कुछ करने की आश में जीवित हैं. व्यक्ति बस प्रशंसा का मुरीद नजर आता हैं. 

आज का माजरा यह बन चूका हैं कि एक इन्सान कभी झूठ न बोले, समय पर काम पर जाकर अपने काम में थोडा बहुत ध्यान क्या धर ले समाज उसे ईमानदार की उपमा परोसने में देरी नहीं करता हैं. वही यदि एक कामगार या अफसर अपने पद पर कार्य करते कोई रिश्वत न माने तो उसे देवता समझ लिया जाता हैं.

दुनिया का कोई भी देश बेईमानी, छल कपट तथा भ्रष्टाचार जैसी बुराइयों में लिप्त नजर आता हैं. आजादी के बाद के 70 वर्षों में भारत में व्यवसायियों और राजनेताओं के सैकड़ों बड़े घोटाले सामने आ चुके हैं. खेल, राजनीति, रक्षा, सेना, फिल्म कोई भी क्षेत्र उठाकर देख ले बस बेईमानी और छल कपट का अपार साम्राज्य नजर आता हैं. 

समाचार पत्रों में आए दिन ऐसे किस्से पढ़ने सुनने को मिल जाते हैं. हर कोई जानता है बेईमानी की आदत बुरी है यह एक पाप हैं इन्सान का अंत में पकड़ा जाना भी निश्चित हैं. 

पकड़े जाने के बाद बदनामी, इज्जत आबरू भी कौड़ी के भाव बिक जानी हैं. मगर फिर भी लोग ऐसा करने से बाज नहीं आते हैं. बस लालच की बुरी बला और आंशिक सुख के स्वप्न उन्हें बेईमानी की ओर धकेल देते हैं जिससे वह ताउम्रः निकल नहीं पाता हैं.

मानव के इस बेईमानी के स्वभाव को मनोवैज्ञानिक ने भी परखने और इसके कारण जानने की चेष्टा की हैं. उन्होंने अपने शोध के परिणाम में एक बात आम पाई जो थी, जीतने की ललक. अक्सर लोग औरों अथवा अपनों से जीतने, आगे निकलने अथवा स्पर्धा की चाह में छल कपट और बेईमानी के सहारे आगे निकलने का यत्न करते हैं.

इसका एक उदाहरण हम अपने बचपन के दिनों में पा सकते हैं. अक्सर वे बच्चें जो अधिक अंक लाने की स्पर्धा में होते हैं वे नकल करने लगते हैं उनका उद्देश्य यही होता है कि वह अपने साथी अथवा पूरी क्लाश में सर्वाधिक अंक हासिल करे. 

इसके लिए उस छात्र के पास दो विकल्प होते है या तो वह ईमानदार बनकर अधिक मेहनत करे अथवा बेईमानी का रास्ता चुनकर पर्ची बनाकर नकल कर अधिक नम्बर प्राप्त कर ले.

दूसरा रास्ता अधिक सरल लगता है इस कारण बहुत से छात्र स्पर्धा के चलते बेईमानी की राह चुन लेते हैं. बहुत बार लोग उस समय बेईमानी करने पर उतारू हो जाते हैं जब उन्हें आपसी सहयोग या उकसावा भी मिले. 

साझे बेईमानों के बीच माल का बंटवारा ईमानदारी से होता है तथा अपनी चोरी के राज भी गुप्त बनाए रखने की साझी जिम्मेवारी भी उठाई जाती हैं. आजकल के बड़े घोटालों के पीछे आपसी सहयोग एक बड़ा कारण रहा हैं.

बदलते विश्व के साथ अब व्यापार और पोलिटिक्स में भी बेईमानी के नयें नयें तौर तरीके सामने आ रहे हैं. नई तकनीक को अब इसका हथियार बनाया जा रहा हैं. मिडिया हो या कंटेट का क्षेत्र यहाँ भी जमकर नकल का कारोबर चल रहा हैं.

भले ही हमारी मान्यता में कर्मों का फल अगले जन्म में मिलने की बात कही जाती हैं. मगर आजकल तो बेईमानी फ्रोड धोखाधड़ी करने वालों के कर्मों का हिसाब तो इसी जन्म में हो जाता हैं. 

अमूल्य इस जीवन में लोगों के साथ मधुर सम्बन्ध बनाएं, सत्य और प्रिय वचन बोले तथा ईमानदारी से धन कमाकर जीवन निर्वहन करे तो निश्चय ही सुख की प्राप्ति की जा सकती हैं.