सत्य की हमेशा जीत होती हैं पर निबंध | Satya ki jeet essay in hindi truth always wins: नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत है आज हम सत्य सर्वदा विजयी होता है अथवा सत्य की सदा जीत होती हैं इस विषय पर निबंध स्पीच यहाँ बता रहे हैं.
Satya ki jeet essay in hindi
"सत्यमेव जयते", अर्थात सत्य की सदैव जीत होती है।
झूठ कुछ समय के लिए सुखदायक हो सकता है इसका लाभ मिल सकता हैं मगर यह अधिक समय तक टिका नहीं रहेगा. असत्य बोलने वाले व्यक्ति के शारीरिक हावभाव दर्शाने लगते है कि यह इन्सान झूठ कह रहा हैं.
साँच शाप न लागे, साँच काल न खाय।
साँचहि साँचा जो चले, ताको कहत न शाय।।
झूठ बोलने वाले लोग अक्सर कपकपी के साथ चिल्लाहट के साथ बात करते हैं. वह सत्यवादी धीर गम्भीर तथा शांत स्वर में आत्मविश्वास के साथ अपनी बात कहता हैं.
सत्यवादी व्यक्ति किसी भी असाधारण कार्य को कर सकता हैं जबकि झूठ बोलने वाला अपना छोटा मोटा काम तो एक बार के लिए निकाल लेता हैं मगर दूसरी बार उसकी तरफ कोई नहीं देखेगा. झूठ बोलने वाले व्यक्ति पर लोग कभी भरोसा नहीं करते है भले ही वह सत्य ही क्यों न बोलने लग जाए.
समाज में हम ऐसे कई लोगों को देखते है जो आमतौर पर गिडगिडाते एवं स्वयं को पीड़ित दिखाते हुए सहायता मांगते हैं. इस तरह के लोग झूठे एव मक्कार होते है जबकि उनका तर्क होता है कि उसकी कोई नहीं सुनता अथवा कोई मदद नहीं करता. असल में लोग उसी की बात को तरजीह देते है या सुनते है जो सत्य वचन कहता हैं.
यदि एक व्यापारी किसी वस्तु का दाम पांच गुना बताकर झूठ के सहारे अपनी दुकान चलाता हैं. तो ऐसे में एक दिन के लिए उसे कई गुना फायदा मिल जाता हैं मगर अगले सवेरे कोई ग्राहक उसकी ड्योढ़ी पर नजर नहीं आता हैं.
आज के दौर में सत्यवादी बनकर रहना उतना कठिन नहीं है जितना इसे बढ़ा चढ़ाकर बताया जाता हैं. सत्य और ईमानदारी की राह पर चलने के गुण यदि बचपन में विकसित कर लिए जाए तो बड़ा होने पर उसका चरित्र ऐसा ही बन जाता हैं.
सत्यवादी व्यक्ति किसी भी असाधारण कार्य को कर सकता हैं जबकि झूठ बोलने वाला अपना छोटा मोटा काम तो एक बार के लिए निकाल लेता हैं मगर दूसरी बार उसकी तरफ कोई नहीं देखेगा. झूठ बोलने वाले व्यक्ति पर लोग कभी भरोसा नहीं करते है भले ही वह सत्य ही क्यों न बोलने लग जाए.
समाज में हम ऐसे कई लोगों को देखते है जो आमतौर पर गिडगिडाते एवं स्वयं को पीड़ित दिखाते हुए सहायता मांगते हैं. इस तरह के लोग झूठे एव मक्कार होते है जबकि उनका तर्क होता है कि उसकी कोई नहीं सुनता अथवा कोई मदद नहीं करता. असल में लोग उसी की बात को तरजीह देते है या सुनते है जो सत्य वचन कहता हैं.
यदि एक व्यापारी किसी वस्तु का दाम पांच गुना बताकर झूठ के सहारे अपनी दुकान चलाता हैं. तो ऐसे में एक दिन के लिए उसे कई गुना फायदा मिल जाता हैं मगर अगले सवेरे कोई ग्राहक उसकी ड्योढ़ी पर नजर नहीं आता हैं.
आज के दौर में सत्यवादी बनकर रहना उतना कठिन नहीं है जितना इसे बढ़ा चढ़ाकर बताया जाता हैं. सत्य और ईमानदारी की राह पर चलने के गुण यदि बचपन में विकसित कर लिए जाए तो बड़ा होने पर उसका चरित्र ऐसा ही बन जाता हैं.
सत्य बोलने वाला इन्सान अकेला पड़ सकता है, परेशानियों का सामना करना पड़ सकता हैं मगर अंत में उसी की जीत होती हैं. क्योंकि सत्य की सदा जीत होती है.