साहित्य और जीवन पर निबंध Essay on Literature and Life in Hindi: आज के निबंध में आपका हार्दिक स्वागत हैं आज हम साहित्य व समाज पर स्पीच भाषण निबंध अनुच्छेद यहाँ बता रहे हैं. साहित्य समाज का दर्पण हैं इस विषय पर दिया गया सरल निबंध पढ़े.
साहित्य और जीवन पर निबंध | Essay on Literature and Life in Hindi
हमारे समाज का प्राचीन काल से ही साहित्य के साथ गहरा जुड़ाव रहा है. साहित्य और जीवन का एक गहरा सम्बन्ध रहा है. साहित्य समाज का दर्पण कहा जाता हैं. समाज में कोई कुछ घटित होता है उसका प्रतिबिम्ब साहित्य में स्पष्ट देखा जा सकता हैं. एक साहित्यकार समाज की तात्कालीन परिस्थतियों को आधार बनाकर अपने साहित्य का सृजन करता हैं. इस आधार पर कहा जा सकता है कि साहित्य समाज का महत्वपूर्ण अंग हैं.
मनुष्यों के मिलन से समाज का निर्माण होता हैं. इस तरह समाज व मनुष्य का जीवन परस्पर एक दुसरे के पूरक है, एक के बिना दूसरे का अस्तित्व संभव नहीं हैं. प्राचीन काल के आदि साहित्य वेद, गीता, उपनिषद आदि से लेकर आज के क्षेत्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय साहित्य समाज पर प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालते हैं.
इस तरह कहा जा सकता है कि समाज का साहित्य पर और साहित्य पर समाज का परस्पर प्रभाव पड़ता हैं. यदि किसी दौर के सामाजिक राजनितिक जीवन का अध्ययन करने हो अथवा उसके सम्बन्ध में जानना हो तो उस दौर का साहित्य हमारी मदद कर सकता हैं.
एक अच्छा साहित्य मनुष्य जीवन तथा समाज की उन्नति, उत्थान तथा सुचरित्र के निर्माण में सहायक होता है. मानव मस्तिष्क की परिपक्वता तथा विचारों के प्रस्फुटन में साहित्य का बड़ा महत्व होता हैं.
मनुष्यों के मिलन से समाज का निर्माण होता हैं. इस तरह समाज व मनुष्य का जीवन परस्पर एक दुसरे के पूरक है, एक के बिना दूसरे का अस्तित्व संभव नहीं हैं. प्राचीन काल के आदि साहित्य वेद, गीता, उपनिषद आदि से लेकर आज के क्षेत्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय साहित्य समाज पर प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालते हैं.
इस तरह कहा जा सकता है कि समाज का साहित्य पर और साहित्य पर समाज का परस्पर प्रभाव पड़ता हैं. यदि किसी दौर के सामाजिक राजनितिक जीवन का अध्ययन करने हो अथवा उसके सम्बन्ध में जानना हो तो उस दौर का साहित्य हमारी मदद कर सकता हैं.
एक अच्छा साहित्य मनुष्य जीवन तथा समाज की उन्नति, उत्थान तथा सुचरित्र के निर्माण में सहायक होता है. मानव मस्तिष्क की परिपक्वता तथा विचारों के प्रस्फुटन में साहित्य का बड़ा महत्व होता हैं.
आदर्शवादी गुणों के उद्भव एवं चरित्र में उसके प्रयोग की प्रेरणा साहित्य ही प्रदान करता हैं. इसकी अद्भुत शक्ति का प्रयोग कई इतिहास प्रसिद्ध हस्तियों ने किया, जिसके कारण आज हम उन्हें महापुरुषों के रूप में याद करते हैं.
जीवन का अन्य नाम गतिशीलता है वह विचारों के रूप में जन्म लेकर जीवन को गति प्रदान करती हैं. विचारों के जनक साहित्य ही होते हैं. वर्तमान में हम अपने समाज एवं देश के जीवन, संस्कृति को भ्रमण कर लोगों से जानकर पता कर सकते हैं. मगर पुरा काल के जीवन की झलक केवल उस समय के साहित्य में ही मिल सकती हैं.
आज हम ऋग्वैदिक तथा सिन्धु कालीन समाज के बारे में अध्ययन करते हैं. हमें यह जानकर प्रसन्नता होती है कि उस समय का भारतीय समाज समृद्ध था समाज में समानता, भाईचारे ,न्याय सुलभ थे महिलाओं की स्थिति अच्छी थी. इन समस्त सूचनाओं का स्रोत उस काल का साहित्य ही हैं. जिनके अध्ययन से आज का आधुनिक समाज भी अपने पूर्वजों से प्रेरणा ले सका हैं.
आमतौर पर एक साहित्यकार अपने रचनाओं में वही लिखता है जो उनके जीवन में घटित होता हैं. अथवा देश व समाज में घटित घटनाओं को आधार बनाकर उसकी रचना करता हैं. समूचे वातावरण का प्रभाव साहित्य के केंद्र में पड़ता हैं.
जीवन का अन्य नाम गतिशीलता है वह विचारों के रूप में जन्म लेकर जीवन को गति प्रदान करती हैं. विचारों के जनक साहित्य ही होते हैं. वर्तमान में हम अपने समाज एवं देश के जीवन, संस्कृति को भ्रमण कर लोगों से जानकर पता कर सकते हैं. मगर पुरा काल के जीवन की झलक केवल उस समय के साहित्य में ही मिल सकती हैं.
आज हम ऋग्वैदिक तथा सिन्धु कालीन समाज के बारे में अध्ययन करते हैं. हमें यह जानकर प्रसन्नता होती है कि उस समय का भारतीय समाज समृद्ध था समाज में समानता, भाईचारे ,न्याय सुलभ थे महिलाओं की स्थिति अच्छी थी. इन समस्त सूचनाओं का स्रोत उस काल का साहित्य ही हैं. जिनके अध्ययन से आज का आधुनिक समाज भी अपने पूर्वजों से प्रेरणा ले सका हैं.
आमतौर पर एक साहित्यकार अपने रचनाओं में वही लिखता है जो उनके जीवन में घटित होता हैं. अथवा देश व समाज में घटित घटनाओं को आधार बनाकर उसकी रचना करता हैं. समूचे वातावरण का प्रभाव साहित्य के केंद्र में पड़ता हैं.
राजा महाराजाओं के दौर में साहित्य राज दरबार, शासको की प्रशंसा, युद्ध आदि विषय पर केंद्रित था. पराधीन भारत में महिलाओं, किसानों, क्रांतिकारियों की वेदना को साहित्य में स्पष्ट देखा जा सकता हैं.
इस तरह साहित्य वक्त के साथ साथ चलते हुए सम्पूर्ण मानव इतिहास को भी अपने साथ लिए अगले दौर में प्रवेश करता हैं. साहित्य के कुछ पदों, कविताओं ने शासकों को युद्धों में विजय दिलाई है राजा प्रताप जैसे वीरों को देशभक्ति का संदेश दिया हैं. आजादी के आंदोलन में क्रांतिकारियों को भारत की आजादी के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया हैं.
इस तरह साहित्य न केवल अपने दौर के हालातों को अगली पीढ़ी के लिए इतिहास कलमबद्ध करने की भूमिका निभाता हैं बल्कि अपने काल के समाज की आवश्यकताओं तथा तत्कालीन समस्याओं के प्रति उनकी भूमिका को भी स्पष्ट कर कर्तव्यपालन के लिए प्रेरित करता आया हैं.
राजा महाराजाओं के दौर में कवियों का बड़ा सम्मान था उन्हें राजदरबारी की भूमिका दी जाती थी. ऐसे में वे अपने कर्तव्य के पालन के साथ साथ अपने आश्रयदाता को प्रसन्न करने के लिहाज से बातों को बढ़ा चढ़ा कर भी प्रस्तुत करते थे. कवि भूषण, बिहारी, कालिदास, बाणभट्ट कुछ ऐसे नाम है जो राज दरबारी भी रहे तथा अपने शासकों के पथ प्रदर्शक भी रहे.
जब भारत ब्रिटिश सत्ता के काल में पराधीन था तो परम्परा से चले आ रहे साहित्य की धारा भी अपने कर्तव्य पथ की ओर अग्रसर हुई और साहित्यकारों ने शासकों की प्रशंसा के गान की बजाय जन आंदोलन को प्रेरित करने तथा उस समय की सामाजिक दुर्दशा का बखूबी से वर्णन किया. कई कवि, लेखकों को अपनी लेखनी के लिए जेल तक भी जाना पड़ा, सागरमल गोपा ने समाज सेवक की भूमिका अदा करते हुए जान तक दे दी.
अंत में यह कहा जा सकता है कि समाज और साहित्य को अलग नहीं किया जा सकता हैं. अच्छा साहित्य समाज में आदर्श प्रस्तुत करता है तथा प्रगति की और ले जाता हैं. हम प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के साहित्य को भारतीय समाज का इतिहास कह सकते हैं.
इस तरह साहित्य वक्त के साथ साथ चलते हुए सम्पूर्ण मानव इतिहास को भी अपने साथ लिए अगले दौर में प्रवेश करता हैं. साहित्य के कुछ पदों, कविताओं ने शासकों को युद्धों में विजय दिलाई है राजा प्रताप जैसे वीरों को देशभक्ति का संदेश दिया हैं. आजादी के आंदोलन में क्रांतिकारियों को भारत की आजादी के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया हैं.
इस तरह साहित्य न केवल अपने दौर के हालातों को अगली पीढ़ी के लिए इतिहास कलमबद्ध करने की भूमिका निभाता हैं बल्कि अपने काल के समाज की आवश्यकताओं तथा तत्कालीन समस्याओं के प्रति उनकी भूमिका को भी स्पष्ट कर कर्तव्यपालन के लिए प्रेरित करता आया हैं.
राजा महाराजाओं के दौर में कवियों का बड़ा सम्मान था उन्हें राजदरबारी की भूमिका दी जाती थी. ऐसे में वे अपने कर्तव्य के पालन के साथ साथ अपने आश्रयदाता को प्रसन्न करने के लिहाज से बातों को बढ़ा चढ़ा कर भी प्रस्तुत करते थे. कवि भूषण, बिहारी, कालिदास, बाणभट्ट कुछ ऐसे नाम है जो राज दरबारी भी रहे तथा अपने शासकों के पथ प्रदर्शक भी रहे.
जब भारत ब्रिटिश सत्ता के काल में पराधीन था तो परम्परा से चले आ रहे साहित्य की धारा भी अपने कर्तव्य पथ की ओर अग्रसर हुई और साहित्यकारों ने शासकों की प्रशंसा के गान की बजाय जन आंदोलन को प्रेरित करने तथा उस समय की सामाजिक दुर्दशा का बखूबी से वर्णन किया. कई कवि, लेखकों को अपनी लेखनी के लिए जेल तक भी जाना पड़ा, सागरमल गोपा ने समाज सेवक की भूमिका अदा करते हुए जान तक दे दी.
अंत में यह कहा जा सकता है कि समाज और साहित्य को अलग नहीं किया जा सकता हैं. अच्छा साहित्य समाज में आदर्श प्रस्तुत करता है तथा प्रगति की और ले जाता हैं. हम प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के साहित्य को भारतीय समाज का इतिहास कह सकते हैं.
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